चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियों को ओबीसी की याद बहुत आ रही है और इसलिए जातीय जनगणना का शिगूफा छेड़ दिया गया है. सभी राजनीतिक दल अन्य पिछड़ा वर्ग को अपने पाले में घसीट ने के लिए तैयार बैठे हैं.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जातीय जनगणना का राग छेड़ दिया तो बिहार में कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव ने जातीय जनगणना कुछ जरूरी बताते हुए सरकार को लपेट लिया. लालू यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा, “अगर 2021 जनगणना में जातियों की गणना नहीं होगी तो बिहार के अलावा देश के सभी पिछड़े-अति पिछड़ों के साथ दलित और अल्पसंख्यक भी गणना का बहिष्कार कर सकते हैं. जनगणना के जिन आँकड़ों से देश की बहुसंख्यक आबादी का भला नहीं होता हो, तो फिर जानवरों की गणना वाले आँकड़ों का क्या हम अचार डालेंगे?”
चुनाव से पहले बीजेपी भी डाल रही ओबीसी को चारा
ओबीसी की बखत इस समय बढ़ गई है सिर्फ अखिलेश यादव या लालू प्रसाद यादव ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी ओबीसी को बीजेपी के पक्ष में मोड़ने के लिए एक बड़ी बात कही. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास ये हमारा कर्तव्य है. इसलिए मैं आप सभी से निवेदन करूंगा कि एकाग्रचित तरीके से सभी जातियां निकालिए. कौन सी पिछड़ी जाति छूट गई है, कौन सी पिछड़ी जाति को जोड़ना है, कौन सा प्रदेश कमजोर रह गया जिसको हमें जोड़ना है. विपक्ष पर निशाना साधते हुए नड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने क्रीमी लेयर का स्तर 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये किया है. पहले की सरकारों को इसका ख्याल क्यों नहीं आया? नीट में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी प्रधानमंत्री मोदी जी ने की है.
ओबीसी वर्ग के केंद्रीय मंत्रियों के सम्मान समारोह में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कहा केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में 27 OBC मंत्री बने हैं. आज भारत के मंत्रिमंडल में 35% मंत्री ओबीसी वर्ग से हैं. मंत्रिमंडल विस्तार में सभी जातियों का प्रतिनिधित्व देने का और सभी राज्यों को जोड़ने का प्रयास हुआ है. मंत्रिमंडल में 12 एससी और 8 एसटी मंत्री बने हैं. 11 महिलाएं मंत्री बनी हैं, युवाओं की भी संख्या अधिक है.
जातीय जनगणना से बनेंगे नए राजनीतिक समीकरण
जातीय जनगणना सियासी तौर पर किसे फायदा पहुंचाएगी इसको लेकर जानकारों के अलग-अलग मत हैं. लेकिन अगर आंकड़ों में देखें तो ओबीसी जातियों के लिए इस समय 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है जो उनकी जनसंख्या में भागीदारी के आधार पर तय गई है. ये जनसंख्या 1931 में हुई जातिगत जनगणना में सामने आई थी. 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी. 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया था. 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.
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इसी बीच साल 1990 में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, उसकी एक सिफ़ारिश को लागू किया था. ये सिफ़ारिश अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की थी. इस फ़ैसले ने भारत, ख़ासकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया. जानकारों का मानना है कि भारत में ओबीसी आबादी कितनी प्रतिशत है, इसका कोई ठोस प्रमाण फ़िलहाल नहीं है. लेकिन, अगर ये ठोस आधार निकल आता है तो क्षेत्रीय दलों को राजनीति का नया आधार मिल सकता है.
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