पूर्वोत्तर हिंसा में 6 जवानों की मौत के जिम्मेदार होम मिनिस्टर अमित शाह क्यों हैं?
पूर्वोत्तर हिंसा के बाद गृह मंत्री अमित शाह सवालों के घेरे में हैं. हालांकि वो जवाब देना पसंद नहीं करते लेकिन असम और मिजोरम के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद उन्हें नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.
देश का पूर्वोत्तर इलाका आजादी के लंबे समय बाद भी अलग-थलग नजर आता है. यह इलाका अक्सर किसी बड़ी घटना या उग्रवाद की वजह से ही सुर्खियों में आता है. ताजा मामला भी इसका अपवाद नहीं है. लंबे अरसे से असम और मिजोरम के बीच जारी सीमा विवाद रविवार को इतना भड़क गया कि न सिर्फ दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री आमने-सामने आ गए, दोनों राज्यों की पुलिस भी भिड़ गई और इसमें असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई. इसके अलावा हिंसक झड़पों में पचास से ज्यादा लोग घायल हो गए.
पूर्वोत्तर हिंसा का अपनी तरह का यह पहला मामला
यूं तो असम का इलाके के कई राज्यों के साथ दशकों से सीमा विवाद रहा है. लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हिंसा और मौतों का यह पहला मामला है. दरअसल देश की आजादी के बाद असम ही इलाके का इकलौता राज्य था. उसके बाद धीरे-धीरे प्रशासनिक सहूलियत को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर अलग राज्यों का गठन किया जाता रहा. लेकिन उस समय दोनों पक्षों से विचार-विमर्श किए बिना सीमा का जिस तरह निर्धारण किया गया था, वही विवाद की मूल वजह है.
यही वजह है कि कभी मिजोरम के साथ विवाद भड़कता है, तो कभी मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के साथ. अब तक सत्ता में रहने वाली राजनीतिक पार्टियों ने भी इस गंभीर समस्या की ओर से चुप्पी साधे रखी है. दरअसल, आजादी के बाद से ही असम, नागालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्यों में उग्रवाद की समस्या ने जिस गंभीरता से सिर उठाया, उससे बाकी तमाम मुद्दे हाशिए पर चले गए. केंद्र और राज्यों का पूरा ध्यान उग्रवाद पर ही लगा रहा. हालांकि उग्रवाद पर अंकुश लगाने में कितनी कामयाबी मिली, इस पर सवाल हो सकते हैं.
पूर्वोत्तर की राजनीतिक पार्टियां अपने हितों को साधने में लगी रहीं
ऐसा नहीं है कि पूर्वोत्तर में हो रही हिंसा को खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन इसके लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है वह यहां किसी के पास नहीं है. क्योंकि केंद्र सरकार वहां अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में लगी हुई है गृह मंत्रालय अपने राजनीतिक उद्देश्यों के हिसाब से काम कर रहा है और गृहमंत्री स्वयं भी पूर्वोत्तर के मसलों पर सुस्त रवैया रखते हैं.
साठ के दशक से चल रहा है विवाद
- 1962 के बाद असम से काट कर कई नए राज्यों के गठन का सिलसिला शुरू हुआ था.
- नागालैंड के साथ असम की करीब 512 किलोमीटर लंबी सीमा है
- दोनों राज्यों के बीच वर्ष 1965 के बाद से सीमा विवाद को लेकर हिंसक झड़पें होती रही हैं.
- 1979 और वर्ष 1985 में हुई दो बड़ी हिंसक घटनाओं में कम-से-कम 100 लोगों की मौत हुई थी.
- इस विवाद की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में चल रही है.
इसी तरह असम और अरुणाचल प्रदेश बीच सीमा पर सबसे पहले वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी. उसी समय से दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण और हिंसा भड़काने के आरोप लगाते रहते हैं. असम और मेघालय सीमा पर भी अक्सर हिंसक झड़पों की खबरें आती रहती हैं.
असम-मिजोरम सीमा विवाद हो या असम-मेघालय सीमा विवाद, इन दोनों राज्यों और असम के बीच अक्सर झड़प होती रही है. खासकर बीते दो-तीन वर्षों के दौरान इनकी फ्रीक्वेंसी काफी बढ़ गई है. दरअसल, जब असम से काट कर मिजोरम या मेघालय का गठन किया गया, तो इलाके में आबादी बहुत कम थी और सीमावर्ती इलाका जंगल से घिरा था.
पूर्वोत्तर में हिंसा की बड़ी वजह बढ़ती आबादी है. आबादी के बढ़ते दबाव ने लोगों की जरूरतों को बढ़ाया और जब जमीन कम पड़ने लगी तो जमीन का मुद्दा उठने लगा. यहां की सरकारों की उदासीनता यह रही है कि उन्होंने शुरुआती दौर में ही इसे सुलझाने की बजाय इस ओर से आंखें मूंदे रही. मिजोरम पुलिस के हाथों असम पुलिस के छह जवानों की मौत इसी उदासीनता का नतीजा है.
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