क्या अखिलेश की ‘रथयात्रा’ में शामिल होंगे चाचा शिवपाल, सपाइयों के लिए ये है शुभ समाचार
अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ‘रथयात्रा’ शुरू कर दी है. उन्होंने यात्रा के पहले ही दिन उन लोगों का दिल जीतने की कोशिश की जिनकी आबादी प्रदेश में 4 फ़ीसदी है.
विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश का यह दांव निषाद वोट बैंक की सियासत से जोड़ कर देखा जा रहा है. यूपी में निषाद, मल्लाह और कश्यप वोट बैंक करीब 4 फीसदी हैं. यूपी में समाजवादी पार्टी की रणनीति भी ओबीसी वोट बैंक को एकजुट करने की है. इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को उन्नाव दौरा किया.
अपने इस दौरे में अखिलेश यादव ने यह साफ संकेत दिए कि उनका चुनाव प्रचार आक्रामक रहने वाला है. और हो सकता है कि भविष्य में जिन पार्टियों के साथ सपा गठबंधन करेगी वह भी उनकी इस रथयात्रा में उनके साथ दिखाई दें. लेकिन सबकी नजर है शिवपाल सिंह यादव पर…क्योंकि कहा यह जा रहा है कि चाचा की पार्टी के साथ अखिलेश गठबंधन कर सकते है.
गठबंधन किन शर्तों पर होगा इसके बारे में अभी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन सपा से जुड़े सूत्रों के हवाले से यह खबर जरूर मिल रही है कि आने वाले समय में शिवपाल और अखिलेश एक मंच पर एक साथ दिखाई दे सकते हैं. अब यह साथ किस शक्ल में होगा यह बहुत जल्द लोगों को बता दिया जाएगा.
कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव अपने वोटरों के मन की बात पर गौर करते हुए चाचा के साथ रिश्तो को मजबूत करने की दिशा में सोच रहे हैं. और इसीलिए अपनी रथयात्रा में वह एक पड़ाव ऐसा भी चाहते हैं जिसमें उनके साथ चाचा शिवपाल भी दिखाई दें. अपनी रथ यात्रा के पहले दिन सपा प्रमुख ने उन्नाव में हुंकार भरी.
अखिलेश के लिए क्यों जरूरी थी उन्नाव की सभा?
उन्नाव में अखिलेश यादव निषाद समुदाय के बड़े नेता रहे मनोहर लाल की 85वीं जयंती के कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान अखिलेश यादव ने मनोहर लाल की एक मूर्ति का अनावरण किया और उन्नाव तक रथ यात्रा निकालकर बीजेपी को एक संदेश देने का प्रयास किया.
विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश का यह दांव निषाद वोट बैंक की सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है. यूपी में निषाद, मल्लाह और कश्यप वोट बैंक करीब 4 फीसदी हैं.
मनोहर लाल साल 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में मत्स्य पालन मंत्री रहे थे. मनोहर लाल तब चर्चित हुए थे जब 1994 में फूलन देवी की रिहाई को लेकर वे अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे और निषाद के अधिकारों की मांग करने लगे. मनोहर लाल ने ही सबसे पहले रेती में खेती का मुद्दा उठाया था. मनोहर लाल को निषाद-बिंद-मल्लाह-कश्यप और लोध जातियों को एकजुट करने के लिए भी जाना जाता है.
यूपी की सियासत में 2018 से निषाद वोट बैंक को निर्णायक समझा जाने लगा. साल 2018 में गोरखपुर उपचुनाव में निषाद पार्टी और सपा के गठबंधन के बाद बीजेपी चुनाव हार गई और सपा से प्रवीण निषाद गोरखपुर से सांसद बन गए. गोरखपुर योगी आदित्यनाथ की परंपरागत सीट थी. इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने निषाद पार्टी से गठबंधन कर लिया.
पूर्वी यूपी और मध्य यूपी के कई जिलों में निषाद वोट बैंक का अच्छा खासा प्रभाव है. पूर्वी यूपी में तो कई सीटों पर हार-जीत निषाद मतदाता ही तय करते हैं. इसीलिए विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और सपा में निषाद वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए होड़ लगी हुई है.
पिछड़ी जातियों को जोड़ने के लिए शिवपाल की मदद लेंगे अखिलेश?
कहा जा रहा है के मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री बनने के लिए जिस गठजोड़ को तैयार किया था उसका गुणा गणित शिवपाल सिंह यादव से बेहतर कोई नहीं जानता. और 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव को वह गणित समझना होगा. और इसमें कोई दो राय नहीं है कि शिवपाल सिंह यादव इसमें अखिलेश यादव की मदद कर सकते हैं.
ओबीसी और अन्य पिछड़ी जातियों को समाजवादी पार्टी से जोड़ने के लिए मुलायम सिंह यादव ने जो प्लानिंग की थी उसी के तहत अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश यादव चाचा शिवपाल को साथ लेकर अपनी गोटियां बिछाएंगे. आगामी चुनाव सपा प्रमुख के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है और न सिर्फ प्रतिष्ठा का बल्कि अस्तित्व का भी…लिहाजा अहम के चक्कर में अखिलेश अब चाचा से और ज्यादा दूर नहीं जाएंगे.
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