Uttarakhand news: उत्तराखंड में इन दिनों राज्य के लिए एक सख़्त भू-क़ानून की माँग तेज़ हो गई है. तमाम सोशल मीडिया पर लोग इस माँग को लेकर पोस्ट कर रहे हैं.
uttarakhand news: मनोरम और खूबसूरत कुदरती नजारों के बीच उत्तराखंड के युवा जगह-जगह आपको हाथों में तख्तियां लिए ‘उत्तराखंड माँगे भू-क़ानून’ का स्लोगन दोहराते मिल जाएंगे. यह इसलिए है क्योंकि उत्तराखंड में भी ज़मीनों को लेकर हिमाचल प्रदेश की तरह एक सख़्त क़ानून लाया जाए. अब आप सोच रहे होंगे कि अचानक उत्तराखंड में यह मांग उठी क्यों?
उत्तराखंड में क्यों न्यूज़ बना भू-क़ानून ?
इसके लिए आपको थोड़ा पीछे चलना होगा. दरअसल बॉलीवुड अभिनेता मनोज वाजपेई जून के महीने में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में एक ज़मीन ख़रीदने के लिए आए थे. 25 जून को उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने ख़ुद एक ट्वीट के ज़रिए इसकी जानकारी दी. उन्होंने बॉलीवुड अभिनेता मनोज वाजपेई के साथ अपनी तस्वीर शेयर करते हुए लिखा था, “हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध कलाकार मनोज वाजपेई लमगड़ा के कपकोट में ख़रीदी भूमि की रजिस्ट्री के लिए अल्मोड़ा पहुँचे.
उन्होंने भूमि ख़रीदने की सभी औपचारिकताएं पूरी कर मेरे ‘मल्ला महल’ निरीक्षण कार्यक्रम में मुझसे मुलाक़ात की और बताया कि अल्मोड़ा में पर्यटन विकास के लिए उनसे जो भी सहयोग होगा, वह करेंगे.” इस तस्वीर को कई लोगों ने रीट्वीट किया और यहीं से #उत्तराखंडमाँगेभू_क़ानून ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर भू-क़ानून को लेकर आवाज़ें उठने लगीं. सोशल मीडिया से शुरू हुआ यह कैंपेन अब प्रदेश के सड़कों तक पहुँच गया है और सभी राजनीतिक पार्टियां भी भू-क़ानून की वकालत करती हुई नज़र आ रही हैं.
भू-क़ानून पर क्या कहती है उत्तराखंड सरकार?
देवभूमि में यह मुद्दा गरमाने के बाद उत्तराखंड की सरकार ने दो बातें स्पष्ट तौर पर कही हैं. पहला उन्होंने कहा है कि लोगों को खुद अपनी जमीन बेचने से बचना चाहिए और दूसरा यह कि सरकार इस मामले में ज्यादा कुछ कर नहीं सकती. भू-क़ानून की माँग को ख़ारिज करते हुए सुबोध उनियाल कहते हैं, “चुनाव सामने हैं इस वजह से कुछ लोग जिनकी ज़मीन खिसक चुकी है वह भू-क़ानून पर लोगों को भड़का कर अपनी ज़मीन तलाशने का काम कर रहे हैं.”
वो आगे कहते हैं, “उत्तराखंड डेवलपिंग स्टेट है, नया राज्य है इसका औद्योगिकीकरण होना है. बहुत ज़्यादा कंज़रवेटिव होना भी उचित नहीं होगा. स्थानीय स्तर पर जागरूकता होनी चाहिए. मैंने कई बार लोगों से अपील भी की है कि अगर कोई आदमी होटल इंडस्ट्री खोलना चाहता है तो उसको ज़मीन बेचने की बजाय उसके साथ मिलकर काम करें, यह ज़्यादा हितकारी होगा.”
Uttarakhand latest news update : भू-क़ानून क्या सोच रहे हैं पहाड़ी लोग?
भू-क़ानून को लेकर प्रदर्शन कर रहे पहाड़ी लोग भले ही इस कानून के पक्ष में दिखाई दे रहे हो और उनकी दलील भी ठीक हो लेकिन सरकार फिलहाल उनकी मांगे मानती हुई नहीं नजर आ रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर इसी तरह से पहाड़ की जमीनें बेची जाती रही तो 1 दिन ऐसा आएगा कि पहाड़ियों के पास जमीन नहीं बचेगी. जानकार कहते हैं, उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की जो माँग थी उसके पीछे सिर्फ़ आर्थिक कारण नहीं थे, यहां सांस्कृतिक पहचान का भी सवाल था. जब उत्तराखंड राज्य आंदोलन चला था तो उसमें यह सवाल भी था कि राज्य तो हमें मिल जाएगा लेकिन हमारी ज़मीनें सुरक्षित कैसे रहेंगी, बाहर के लोग आएंगे और हमारी सारी ज़मीनें ख़रीद लेंगे. इससे वहां की डेमोग्राफ़ी बदलेगी जिसकी वजह से हमारी संस्कृति भी बदल जाएगी.
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हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में बने भू कानून
1971 में पंजाब से अलग होकर हिमाचल प्रदेश एक अलग राज्य बना था. इसके बाद हिमाचल प्रदेश में अन्य राज्यों के लोगों द्वारा तेज़ी से ज़मीनें ख़रीदी जाने लगीं. इसलिए साल 1972 में एक क़ानून बना जिसके तहत हिमाचल प्रदेश के लोगों की ज़मीनों को ख़रीदने के लिए सख़्त नियम बनाए गए थे. इस क़ानून के अनुसार कोई भी ग़ैर-कृषक व्यक्ति या ऐसा व्यक्ति जो हिमाचल का नहीं है वह हिमाचल में कृषि भूमि नहीं ख़रीद सकता. हिमाचल का किसान भी अपनी ज़मीन किसी दूसरे ग़ैर-कृषक व्यक्ति को बेच या लीज़ पर नहीं दे सकता है. सिर्फ़ हिमाचल का किसान ही वहां ज़मीन को ख़रीद सकता है.
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