मिशन 2022 की तैयारियों में लगे समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव क्या चुनाव हार रहे हैं? पहले जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव और उसके बाद ब्लॉक प्रमुख का चुनाव के नतीजे क्या सपा की हार के संकेत हैं?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और इस समय बीजेपी में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे के रूप में उतरे योगी आदित्यनाथ ने अपनी पहली चाल चल दी है और दूसरी की तैयारी भी पूरी कर चुके हैं. योगी आदित्यनाथ ने रविवार को हुए एक कार्यक्रम में लगातार बढ़ती जनसंख्या की वजह से बनी समस्याओं को गिनाया और कहा, “बढ़ती हुई जनसंख्या समाज में व्याप्त असमानता समेत प्रमुख समस्याओं का मूल है.” समझने वाले समझते हैं की जनसंख्या का मुद्दा उठाकर योगी आदित्यनाथ किसे टारगेट कर रहे हैं? और इसीलिए ‘दो बच्चा नीति’ चर्चा में है.
योगी आदित्यनाथ की चाल
लेकिन ‘दो बच्चा नीति’ योगी आदित्यनाथ की दूसरी चाल है. पहले चाल में तो उन्होंने पंचायत चुनाव को टारगेट किया. जनसंख्या कानून की चर्चा होने से पहले योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के ब्लॉक प्रमुख चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी की जीत की को लेकर सुर्खियों में थे. चुनाव नतीजों के एलान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने बधाई दी. पीएम मोदी ने जीत का श्रेय योगी आदित्यनाथ सरकार की ‘नीति और योजनाओं को दिया.’ इस चुनाव के दौरान प्रदेश के कई ज़िलों से हिंसा की ख़बरें और महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी की घटनाएं सामने आईं थीं. लेकिन इससे सीएम योगी को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.
चुनाव के खेल अखिलेश से आगे निकले सीएम योगी?
योगी आदित्यनाथ की नजर 2022 पर है और वो 2022 जीतने की रणनीति में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से काफी आगे दिखाई देते हैं. क्योंकि जिस तरह की घटनाएं पंचायत चुनाव में सामने आए उस पर विपक्ष सत्ता पक्ष को घेरने में उतना कामयाब नहीं हुआ जितना कभी बीजेपी के पक्ष में रहते हुए हुआ करती थी. सवाल ज़िला पंचायत अध्यक्ष पद पर चुनाव के दौरान भी उठे जहां 75 में से 67 पर बीजेपी ने जीत हासिल की. समाजवादी पार्टी ने तब भारतीय जनता पार्टी पर ‘सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग’ का आरोप लगाया लेकिन विपक्ष की शिकायतें भारतीय जनता पार्टी की जीत के दावों और योगी आदित्यनाथ को देश भर के बीजेपी नेताओं की ओर से मिलती बधाइयों के शोर के पीछे छुप गईं.
समस्याओं से उबरे सीएम, अब टक्कर होगी
उत्तर प्रदेश का माहौल देखकर ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ जो कोरोना की दूसरी लहर में मची तबाही के बाद बैकफुट पर चले गए थे दोबारा से फ्रंट फुट पर आ गए हैं और अखिलेश यादव फिर से बैकफुट पर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं. सिर्फ़ दो महीने पहले कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज पर कई सवाल उठ रहे थे. सरकार के मंत्री और बीजेपी के कई नेता ही शिकायत कर रहे थे. गंगा और दूसरी नदियों में बहती लाशें और नदी किनारे लाशों को दफ़न करने का मुद्दा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाया हुआ था. इसी दौरान हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में बीजेपी के पिछड़ने की चर्चा ज़ोरों पर थी. भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व योगी आदित्यनाथ से नाख़ुश बताया जा रहा था और केंद्रीय नेताओं के लगातार लखनऊ दौरे के बीच सरकार में बदलाव की अटकलें हावीं थीं. लेकिन अब ऐसा लगता है योगी आदित्यनाथ ने इन सब चीजों से पार पाली है.
अखिलेश की क्या है परेशानी?
अखिलेश यादव की मुश्किल भी यही है. मौजूदा परिस्थितियों को देखकर ऐसा लगता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव हार रहे हैं. क्योंकि फिलहाल परसेप्शन की लड़ाई में योगी आदित्यनाथ अखिलेश यादव से आगे दिखाई देते हैं. इसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि विपक्ष की मुख्य पार्टी होते हुए भी जरूरी मुद्दों पर समाजवादी पार्टी योगी सरकार को घेर नहीं पाई. अखिलेश यादव की राजनीति सिर्फ ट्विटर और फेसबुक तक ही सिमटी हुई दिखाई देती है.
जिला पंचायत अध्यक्ष का जो चुनाव है उसमें सत्तापक्ष जीतता है. ये कोई छिपी हुई बात नहीं है. यह अप्रत्यक्ष इलेक्शन है, मैनेज किया जाता है लेकिन इसी चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने अपने दर्जनभर ज़िला अध्यक्षों को हटा दिया. वजह ये थी कि वो जिन जीते हुए सदस्यों को अपना बता रहे थे, उन्हें साथ नहीं रख पाए. उत्तर प्रदेश का माहौल देखकर ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुक़ाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही माना जा रहा है लेकिन अभी ‘अखिलेश यादव ने सही मायने में टक्कर देने के तेवर नहीं दिखाए हैं. अहम प्रश्न यही है कि अखिलेश तेवर कब दिखाएंगे?
क्या सुस्त पड़ गए हैं सपा प्रमुख?
अखिलेश यादव योगी आदित्यनाथ के मुकाबले कम सक्रिय दिखाई देते हैं. अगर आप थोड़ा सा पीछे जाएं तो दूसरी लहर में खुद इन्फेक्टेड होने के बाद जब योगी आदित्यनाथ 14 दिन के क्वैरंटाइन से निकले तो उन्होंने 40-45 ज़िलों का दौरा कर लिया. बाकी सभी पार्टियों के नेताओं को मिला दें तो पांच ज़िलों में भी नहीं गए. तो इसका भी तो असर होगा. केवल ये उम्मीद करना कि हम सरकार की कमियों को गिना देंगे और जनता फिर हमको वोट दे देगी ऐसा तो होता नहीं है. अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की लड़ाई बड़ी होगी. आगे नज़र 2024 पर भी है. बीजेपी की भी और दूसरी पार्टियों की भी.
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