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टीकाकरण अभियान का तीसरा चरण शुरू, क्या खत्म होगा कोरोना वायरस या कमजोर नीति अभी और लेगी जानें

टीकाकरण अभियान का तीसरा चरण शुरू, क्या खत्म होगा कोरोना वायरस या कमजोर नीति अभी और लेगी जानें

टीकाकरण अभियान महत्वपूर्ण बिंदु

कोवीशील्ड कोरोना वायरस से बचाव के लिए एस्ट्रा जेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित वैक्सीन है जिसके भारत में उत्पादन का लाइसेंस एसआईआई को मिला हुआ है.

कंपनी ने राज्य सरकारों के लिए इसका दाम 400 और निजी अस्पतालों के लिए 600 रुपये रखा है.

अभी तक एसआईआई देश में यह वैक्सीन केंद्र सरकार को ही दे रही थी थी और इसकी कीमत 150 रु रखी गई गई थी.

देश में ही विकसित कोवैक्सिन का उत्पादन कर रही भारत बायोटेक

वह राज्य सरकारों को इसे 600 रु प्रति डोज के हिसाब से बेचेगी जबकि निजी अस्पतालों के लिए इसकी कीमत 1200 रु होगी.

भारत में अब तक करीब 14 करोड़ लोगों का टीकाकरण हो चुका है और इसमें लगभग नौ फीसदी लोगों को कोवैक्सिन लगाई गई है.


विपक्षी पार्टियां और कई राज्यों की सरकारें वैक्सीन के अलग-अलग दामों का विरोध कर रही हैं. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि ये वैक्सीन कारगर हैं भी या नहीं. लोगों में वैक्सीन आने के बाद भी डर है. पूरी तरह से भरोसा नहीं हो पा रहा है.

टीकाकरण अभियान पर किसने क्या कहा?

‘मैं केंद्र को एक चिट्ठी लिखकर कहूंगी कि वो राज्यों और निजी अस्पतालों के लिए कीमत के इस फर्क को लेकर दखल दे. कीमतें अलग-अलग क्यों होनी चाहिए? क्या ये व्यापार करने का वक्त है? नहीं, ये लोगों की जान बचाने का वक्त है.’

ममता बनर्जी

‘कीमत पर फिर मोलभाव होना चाहिए.’- जयराम रमेश


राज्यों को मिलकर इस मोलभाव के लिए एक समिति बनानी चाहिए जो वैक्सीन निर्माताओं से बात करे और एक उचित दाम तय करे.

पी चिदंबरम


अगर जरूरत पड़े तो कई दवाओं और चिकित्सीय उपकरणों की तरह वैक्सीन के दाम की भी एक सीमा तय कर दी जाए और मौजूदा हालात को देखते हुए यह 150 रु ही हो.

अरविंद केजरीवाल

टीकाकरण अभियान पर स्वास्थ्य मंत्रालय की सफाई

बीते शनिवार यानी 24 अप्रैल को एक ट्वीट में कहा गया कि कोविड-19 की दोनों वैक्सीनों के लिए भारत सरकार का खरीद मूल्य 150 रु प्रति डोज ही है और भारत सरकार जो वैक्सीन खरीद रही है वह राज्यों को मुफ्त में दी जाती रहेगी.

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केंद्र सरकार से आपूर्ति पाने वाले सभी टीकाकरण केंद्रों पर मुफ्त टीके की सुविधा होगी. ये टीके स्वास्थ्यकर्मियों, अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर्मचारियों और 45 साल से ऊपर की उम्र वाले लोगों को लगेंगे. उधर, जो आधा कोटा राज्यों और निजी अस्पतालों के लिए तय किया गया है, उसका इस्तेमाल 18 साल से ऊपर के लोगों के टीकाकरण में किया जाएगा. अब यह राज्य सरकारों पर निर्भर करता है कि वे यह टीका मुफ्त में लगाती हैं कि इसका पैसा लेती हैं. जैसे दिल्ली ने यह काम मुफ्त में करने का ऐलान किया है. निजी अस्पताल 600 या 1200 रु में वैक्सीन लेंगे और इस लागत पर अपना मुनाफा जोड़कर आखिरी कीमत तय करेंगे जिसके लिए फिलहाल कोई नियम या सीमा नहीं है.

यह है चैलेंज


कोरोना वायरस की तीसरी लहर को रोकने के लिए यह जरूरी है कि देश की 75 फीसदी आबादी का टीकाकरण अगले तीन महीने के भीतर हो जाए. इसके लिए रोज दो करोड़ लोगों को टीका लगना जरूरी है. अभी यह आंकड़ा 40 लाख का है. यही रफ्तार रही तो विश्लेषकों के मुताबिक 75 फीसदी टीकाकरण का काम अगले साल की गर्मियों तक ही निपट पाएगा. और महाराष्ट्र सहित कई राज्य वैक्सीन की कमी की शिकायत कर रहे हैं.

टीकाकरण का अनुभव पर यहां हो गई चूक


भारत ने एसआईआई और भारत बायोटेक, दोनों को जो ऑर्डर दिया वह देश की जरूरत के हिसाब से काफी कम था. यह ऑर्डर करीब 11 करोड़ डोज का ही था. जानकारों के मुताबिक कम डोज खरीदने के पीछे सरकार की योजना यह थी कि पहले उस वर्ग का टीकाकरण किया जाएगा जो सबसे ज्यादा जोखिम में है. यानी स्वास्थ्यकर्मियों, कोरोना से जंग के अग्रिम मोर्चे पर तैनात दूसरे कर्मचारियों और 65 साल से ऊपर की उम्र वालों का. लेकिन पर्याप्त जागरूकता न हो पाने से से लोगों में वैक्सीन के प्रति हिचक दिखी. इसका परिणाम यह हुआ कि टीकाकरण अभियान के शुरुआती छह हफ्तों में लक्षित समूह के सिर्फ 40 फीसदी हिस्से को ही वैक्सीन लग सकी. यहां तक खबरें आईं कि वैक्सीन की कई वायल्स बेकार हो गईं.

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