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आंदोलन कर रहे किसानों को कृषि कानून रद्द करने से कम कुछ भी मंजूर नहीं

भारत की 2.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा लगभग 15 फ़ीसदी है और देश की कुल आबादी एक अरब 30 करोड़ में से आधे लोगों की आजीविका खेती-किसानी से ही चलती है. फिर भी किसानों को अपने हक के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है.

सरकार और किसानों के बीच पांचवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा ही खत्म हो गई. किसान कृषि कानूनों को रद्द करने से कम पर राजी नहीं है और सरकार ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है. अब दोनों पक्ष छठे दौर की बातचीत के लिए बुधवार 9 दिसंबर को मुलाक़ात करेंगे. हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली को पड़ोसी राज्यों से जोड़ने वाली कई सड़कों पर डटे हुए हैं. आज विरोध प्रदर्शन का 11वां दिन है और अभी आंदोलन कितने दिन और चलेगा कहना मुश्किल है. किसानों का कहना है कि इस क़ानून का असर उनकी आजीविका पर पड़ेगा. किसान अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.

दिल्ली जाने वाली हर सड़क पर किसान

हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली को पड़ोसी राज्यों से जोड़ने वाली कई सड़कों पर डटे हुए हैं. किसानों ने कई सड़कों को बंद कर दिया है और कई जगहों पर राष्ट्रीय राजमार्ग को भी अवरुद्ध कर दिया है. किसान लगातार अपनी मांगे दोहरा रहे हैं और कह रहे हैं कि जब तक कृषि कानून रद्द नहीं होता वह मोर्चे से नहीं हटेंगे. उधर मोदी सरकार का कहना है कि नए कृषि क़ानूनों से अनाज ख़रीदने के पुराने तरीकों में सुधार होगा और किसान अपनी उपज अच्छी कीमत पर अपनी इच्छानुसार बेच सकेगा. कौन कितना सही है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि किसान संगठनों का कहना है कि सरकार यह तीनों कानून बिना राय मशवरे के लेकर आई है और इसलिए इन को लेकर इतना हंगामा हो रहा है.

सिर्फ हां और ना में जवाब चाहते हैं किसान

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार शनिवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में पांच घंटे चली बातचीत के बात वरिष्ठ किसान नेता जगजीत सिंह धालीवाल ने कहा, “किसानों ने सरकार को स्पष्ट कर दिया है कि वो चाहते हैं कि तीनों कृषि क़ानून वापस लिए जाएं.” बैठक के बाद विज्ञान भवन से बाहर निकले किसान नेताओं के मुताबिक, केंद्र सरकार का कहना है कि वो उन्हें 9 दिसंबर को एक प्रस्ताव भेजेगी. किसान नेता उस प्रस्ताव पर किसानों के बीच चर्चा के बाद उसी दिन बैठक में हिस्सा लेकर अपनी बात रखेंगे. वहीं बातचीत में शामिल रहे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि दोनों पक्षों के बीच अगले दौर की बातचीत बुधवार को होगी. उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के हितों को लेकर गंभीर है और वो किसानों के मुद्दों पर विचार कर रही है.

कृषि कानूनों को लेकर किसानों में इतना डर क्यों?

भारत की 29 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 15 फीसदी है और ये क्षेत्र देश की 130 करोड़ की आबादी में से आधी आबादी को रोज़गार देता है. किसानों का डर है कि नए कृषि क़ानून से नियंत्रित मंडी की व्यवस्था को पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर किसानों से धान और गेहूं खरीदना सरकार बंद कर देगी, जिसका असर ये होगी कि किसानों को सीधे तौर पर निजी व्यापारियों को अपने उत्पाद बेचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. किसानों की मांगों में से एक महत्वपूर्ण मांग ये है कि सरकार इन क़ानूनों को वापिस ले और एमएसपी पर सरकार खरीद जारी रखे. किसान संगठन हजारों किसानों के साथ इस बार सरकार के साथ आर-पार के मूड में हैं.

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