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पैगंबर मोहम्मद कार्टून विवाद: फ्रांस का बहिष्कार या तुर्की का ‘गेम प्लान’

फ्रांस में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने पर टीचर सामुएल पाटी की हत्या के बाद फ्रांस और तुर्की आमने सामने हैं. फ्रेंच राष्ट्रपति अभिव्यक्ति की आजादी का झंडा बुलंद कर रहे हैं तो तुर्क राष्ट्रपति इस्लाम का. लेकिन क्या यह मामला इतना सीधा है?

फ्रांस के विरोध और दुनिया भर के इस्लामिक मुल्कों में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून को लेकर उपजी नाराजगी पर आए हैं उससे पहले एक अहम बात समझती जरूरी है. फ़्रांस के ख़िलाफ़ मुस्लिम देशों की नाराज़गी संसद से सड़क तक देखी जा रही है. पहले कुछ देशों ने फ़्रांस के सामान के बहिष्कार की बात कही थी. अब पाकिस्तान और ईरान की संसद तक इसकी गूँज सुनाई दे रही है. कुवैत, जॉर्डन और क़तर की कुछ दुकानों से फ़्रांस के सामान हटा दिए गए हैं. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने टीवी पर प्रसारित संदेश में फ़्रांस में बने सामानों का बहिष्कार करने की अपील की. बांग्लादेश में भी मंगलवार को हज़ारों की तादाद में लोग विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरे. यही हाल इराक़, लीबिया और सीरिया का भी था.

फ्रांस के बहिष्कार से क्या फर्क पड़ेगा?

लेकिन क्या यह सारा विरोध सिर्फ पैगंबर मोहम्मद के कार्टून को लेकर ही है या फिर इसका कोई और मतलब है. मुस्लिम देशों का सारा विरोध पैग़ंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाने वाले फ़्रांस के एक शिक्षक की हत्या के बाद राष्ट्रपति मैक्रों की टिप्पणी को लेकर शुरू हुआ है. मैक्रों ने कहा था कि इस्लाम संकट में है. उन्होंने शिक्षक की हत्या को ‘इस्लामी आतंकवादी’ हमला कहा था. लेकिन फ़्रांस के सामान के बहिष्कार से क्या हासिल होगा? क्या ये महज़ सांकेतिक विरोध है, या फिर मुस्लिम देशों के बीच की लड़ाई का हिस्सा है? यह समझने के लिए हमें फ्रांस और इस्लामिक देशों के बीच होने वाले व्यापार को समझना होगा.

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की अप्रैल 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक़ फ़्रांस का निर्यात चार चीज़ों पर ज़्यादा निर्भर करता है. पहला हवाई जहाज़ और विमानन से जुड़े सामान, दूसरा परिवहन उपकरण, जिसमें ऑटो सेक्टर शामिल हैं, तीसरा कृषि क्षेत्र से जुड़े सामान और चौथा फ़ैशन, लग्ज़री गुड्स इंडस्ट्री. बीते दो सालों से फ़्रांस की ओर से दूसरे देशों को निर्यात करने वाले सामान में काफ़ी कमी देखने को मिली है.

जानकार मानते हैं कि फ्रांसीसी सामान का बहिष्कार करने से फ्रांस की अर्थव्यवस्था को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा. पश्चिमी यूरोप में सबसे ज़्यादा मुसलमान फ़्रांस में ही रहते हैं. फ़्रांस में तक़रीबन 50 लाख मुस्लिम आबादी है. और यह मुसलमान जानते हैं कि सामान के बहिष्कार की मुस्लिम देशों की अपील आर्थिक नुक़सान पहुँचाने के इरादे से कम और सांकेतिक ज़्यादा है. फ्रांस के मुसलमान यह भी जानते हैं कि फ्रांस और तुर्की के बीच पहले से ही विवाद रहा है. फ़्रांस और तुर्की के रिश्ते आज से नहीं, बल्कि सालों से ख़राब चल रहे हैं. उनके बीच आपसी हितों की लड़ाई पहले से चल रही है.

फ्रांस और तुर्की के अपने-अपने हित

फ़्रांस यूरोपीय यूनियन में तुर्की की एंट्री का हमेशा से विरोध करता रहा है. इसके अलावा पूर्वी भूमध्यसागर में तुर्की के तेल और गैस के भंडार खोजने के अभियान को लेकर भी फ़्रांस ने तुर्की का विरोध किया है. लीबिया में चल रहे गृहयुद्ध में भी फ़्रांस और तुर्की एक दूसरे के आमने-सामने है. इस्लाम के नाम पर फ़्रांस का विरोध तो अब शुरू हुआ है. इसलिए इन बहिष्कारों का ताज़ा विवाद से सरोकार कम दिखता है. तो कुल मिलाकर पैगंबर मोहम्मद के नाम पर हो रहा यह विरोध और बहिष्कार तुर्की और फ्रांस के बीच आपसी अदावत का नतीजा है आस्था का नहीं.

लेकिन फिर भी फ्रांस में सब कुछ ठीक नहीं है. फ्रांस में 2015 में भी शार्ली हेब्दो पत्रिका के दफ्तर पर हमला कर आतंकवादियों ने वहां मौजूद कर्मचारियों की हत्या कर दी थी. पत्रिका ने पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छापा था. इसके बाद भी देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और यूरोपीय संघ के तमाम बड़े नेताओं ने इन प्रदर्शनों में हिस्सा लिया. इसके पहले स्वीडन में भी इस तरह के कार्टून और उनके लिए हत्या और विरोध प्रदर्शन दुनिया देख चुकी है. अब शिक्षक की मौत के बाद फ्रांस एक बार फिर वैसे हालात देखना नहीं चाहता और इसीलिए टीचर की हत्या पर फ्रांस में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और बड़ी संख्या में लोगों ने टीचर के समर्थन में प्रदर्शन किया.

एक शिक्षक की मौत के बाद बढ़ा विवाद है

आनन फानन में टीचर सामुएल पाटी को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भी दिया गया. राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों खुद भी इसमें बढ़ चढ़ कर सामने आए और सामुएल पाटी को श्रद्धांजलि देते वक्त यह ऐलान किया कि फ्रांस अपने रुख से पीछे नहीं हटेगा. राष्ट्रपति ने साफ कहा कि उनका देश कार्टून बनाना बंद नहीं करेगा और देश के लिए अभिव्यक्ति की आजादी सर्वोपरि है.

पैगंबर के कार्टूनों पर इस्लामी देशों में विरोध प्रदर्शन और यूरोपीय देशों का अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में लामबंद होने में नया इस बार यह है कि इस्लामी देशों की तरफ से विरोध की कमान तुर्की ने अपने हाथ में ले ली है तो दूसरी तरफ फ्रांस के राष्ट्रपति अभिव्यक्ति की आजादी को हर तरह से सबसे अहम बताने में जुटे हैं. तुर्की के विरोध करने के बाद शार्ली हेब्दो पत्रिका ने तो तुर्की के राष्ट्रपति का भी एक कार्टून अपने कवर पेज पर छाप दिया. तुर्की ने इस पर आक्रामक रुख दिखाया और इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने की बात कही है.

तुर्की की क्या है ख्वाहिश?

तुर्की, उस्मानिया साम्राज्य के पतन को एक बहुत बड़ी त्रासदी के रूप में देखता है. उसे लगता है कि इस घटना के बाद मुस्लिम समाज पूरी दुनिया में निर्बल और बदहाल हो गया. इसलिए वो चाहता है कि ख़िलाफ़त की पुनर्स्थापना के साथ मुसलमान अपने खोए हुए सुनहरे दिन फिर से हासिल कर लेंगे. उस्मानिया साम्राज्य में ख़लीफ़ा प्रमुख शासक हुआ करता था. ख़िलाफ़त की पुर्नस्थापना का मतलब है कि फिर से तुर्की में ख़लीफ़ा के पद को स्थापित करना. यही तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन की ख़्वाहिश है.

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