कश्मीर में जिसे नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीडीपी का अभूतपूर्व “गुपकार” गठबंधन बनाया है. इस साझा मुहिम की शुरुआत अगस्त 2019 में हुई थी जिसमें यहां की 6 मुख्य पार्टियां शामिल थीं.
2019 में जब इस अभियान की घोषणा हुई थी तब इसका लक्ष्य पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे और अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेद 370 को बचाना और राज्य के विभाजन को रोकना था लेकिन अब यह दोनों ही चीजें हो चुकी हैं. गुपकार घोषणा के अगले दिन ही केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा ही खत्म कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.
गठबंधन में शामिल पार्टियों ने 2019 की गुपकार घोषणा को बरकरार रखा है और इस गठबंधन को नाम दिया है “पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डेक्लेरेशन.” एनसी और पीडीपी के अलावा इसमें सीपीआई(एम), पीपल्स कांफ्रेंस (पीसी), जेकेपीएम और एएनसी शामिल हैं.
बीते एक साल में जम्मू और कश्मीर में जो बदलाव आए हैं वो प्रशासनिक तौर पर पूरी तरह से लागू हो चुके हैं. ऐसे में यह स्पष्ट नजर नहीं आता कि ये पार्टियां पुरानी व्यवस्था की बहाली का लक्ष्य कैसे हासिल करने की उम्मीद रखती हैं. इनके अभियान में भी किसी काम की योजना के बारे में नहीं बताया गया है.
गुपकार गठबंधन की क्या है योजना?
अभी इन पार्टियों का लक्ष्य है जम्मू, कश्मीर और लद्दाख इलाकों में जनता के बीच जाना, उनसे संवाद स्थापित करना और फिर उनके समर्थन से आगे की योजना बनाना. अभियान की घोषणा करते हुए जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कहा,
“हमारी लड़ाई एक संवैधानिक लड़ाई है. हम चाहते हैं कि भारत सरकार जम्मू और कश्मीर के लोगों को उनके वो अधिकार वापस लौटा दे जो उनके पास पांच अगस्त 2019 से पहले थे.”
अब्दुल्ला ने यह भी कहा, “जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया था हम उसे फिर से लौटाए जाने के लिए संघर्ष करेंगे.” 2019 की ‘गुपकार घोषणा’ वाली बैठक की तरह यह बैठक भी अब्दुल्ला के श्रीनगर के गुपकार इलाके में उनके घर पर हुई.
कश्मीर के लोगों को उम्मीद है गुपकार गठबंधन से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हर तरह के लॉकडाउन में पड़े जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक गतिविधि की वापसी हुई है. अब कश्मीर मुद्दे पर “केंद्र का विरोध और बढ़ेगा” और “मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण की संभावना भी बढ़ेगी.
कांग्रेस ने बनाई नए गठबंधन से दूरी
गुपकार घोषणा और गुपकार घोषणा 2.0 में एक फर्क यह भी है कि इस बार कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं हुई है. 2019 में अब्दुल्ला के निवास पर हुई बैठक में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ताज मोहिउद्दीन शामिल हुए थे. शायद कांग्रेस कश्मीर के मुद्दे पर झिझक रही है क्योंकि उसे लगता है अगर वह इस गठबंधन के साथ जाएंगे तो देश के बाकी हिस्सों में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि कश्मीर की स्थानीय पार्टियों का एक साथ आना घाटी के लिए अच्छे संकेत जरूर है लेकिन गठबंधन अपने मकसद में कितना कामयाब होगा यह कहना अभी थोड़ा मुश्किल है.
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