हरसिमरत कौर के इस्तीफे से मोदी सरकार की सेहत पर कितना फर्क पड़ेगा?
“मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के ख़िलाफ़ इस्तीफ़ा दे दिया है. किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर गर्व है.”
ये शिरोमणि अकाली दल की नेता और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कृषि विधेयक के ख़िलाफ़ केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद किए गए ट्वीट की भाषा है. इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है की मोदी सरकार के मंत्री भी पीएम कि नीतियों से नाखुश हैं. हरसिमरत कौर ने पीएम को सौंपे अपने इस्तीफ़े में लिखा है कि कृषि उत्पाद की मार्केटिंग के मुद्दे पर किसानों की आशंकाओं को दूर किए बिना भारत सरकार ने बिल को लेकर आगे बढ़ने का फ़ैसला लिया है. शिरोमणि अकाली दल किसी भी ऐसे मुद्दे का हिस्सा नहीं हो सकती है जो किसानों के हितों के ख़िलाफ़ जाए. इसलिए केंद्रीय मंत्री के तौर पर अपनी सेवा जारी रखना मेरे लिए असभंव है.
‘ये अकालियों का नाटक है ‘
आपको बता दें कि मोदी सरकार की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल सरकार की ओर से पेश किए गए कृषि विधेयकों का विरोध कर रही है. उसने इस मामले में अपने सांसदों को इन विधेयकों के ख़िलाफ़ वोट करने को कहा है. सरकार ने कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन विधेयक लोकसभा में सोमवार को पेश किया था. हालांकि द ट्रिब्यून अखबार के मुताबिक पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हरसिमरत कौर के इस्तीफ़े पर कहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल को छोड़ने का हरसिमरत कौर का फ़ैसला शिरोमणि अकाली दल के लंबे समय से चले आ रहे नाटक का एक हिस्सा है. वो कृषि बिल पर केंद्र सरकार की ओर से पड़े थप्पड़ के बावजूद अब भी सतारूढ़ गठबंधन का हिस्सा बने हुए हैं.
वो विधेयक जिसका है विरोध?
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, किसानों (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में पेश किया, जो इससे संबंधित अध्यादेशों की जगह लेंगे. उन्होंने सदन में इन विधेयकों को पेश करते हुए कहा कि इन विधेयकों की वजह से किसानों को लाभ होगा. लेकिन विपक्ष इसको लेकर हमलावर है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मसले पर ट्वीट किया है, “किसान ही हैं जो ख़रीद खुदरा में और अपने उत्पाद की बिक्री थोक के भाव करते हैं. मोदी सरकार के तीन ‘काले’ अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं ताकि न तो उन्हें MSP व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी ज़मीन पूँजीपतियों को बेच दें. मोदी जी का एक और किसान-विरोधी षड्यंत्र.”देश भर के किसान संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि नए क़ानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूँजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुक़सान किसानों को होगा.
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