Site icon Rajniti.Online

संसद में सवालों से क्यों बचना चाहती है मोदी सरकार?

14 सितंबर से शुरू होना है और इस बार कोविड-19 के प्रबंधन की जरूरतों को देखते हुए कई बदलाव किए गए हैं. लोक सभा और राज्य सभा दोनों सदनों की कार्यवाही अलग अलग शिफ्ट में होंगी. लेकिन इस बार विवाद इस बात को लेकर हो रहा है कि सरकार प्रश्नकाल नहीं करा रही है.

नए नियमों का सबसे बड़ा शिकार हुआ है प्रश्न काल. विपक्ष के कई सांसदों का कहना है कि प्रश्न काल को इस सत्र के लिए पूरी तरह से हटा ही दिया गया है. प्रश्न काल भी एक घंटे का होता है और अमूमन इसी से रोज दोनों सदनों की कार्यवाही शुरू होती है. इसमें सांसद अलग अलग सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों और विभागों से जुड़े लिखित और मौखिक सवाल सरकार से पूछते हैं और संबंधित मंत्रियों के लिए सवालों का जवाब देना अनिवार्य होता है. इन सवालों के माध्यम से सरकार से जुड़ी अहम जानकारी सामने आती है और यह विधायिका द्वारा कार्यपालिका के काम की समीक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन है.

सूचना के अधिकार कानून के लागू होने से पहले यह सरकार से जानकारी निकलवाने का एकमात्र साधन हुआ करता था. अमूमन सांसदों को सवाल का नोटिस 15 दिन पहले देना पड़ता है, ताकि संबंधित विभाग सवाल से जुड़ी पूरी जानकारी इकट्ठा करके प्रस्तुत कर सके. सांसद प्रश्न काल के दौरान पूरक प्रश्न भी पूछते हैं और उनके जवाब अगर मंत्री के पास नहीं हुए तो वो बाद में जवाब पता करके सवाल पूछने वाले सांसद को बताने का आश्वासन देता है. आश्वासन पूरा ना होने पर सांसद मंत्री की शिकायत भी कर सकते हैं.

सांसद भी प्रश्न काल को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और शायद इसीलिए इस सत्र से प्रश्न काल को पूरी तरह से हटा देने के निर्णय का विपक्ष के सांसद विरोध कर रहे हैं. अब मोदी सरकार सवालों से क्यों बचना चाहती है यह तो समझ से परे है लेकिन इतना जरूर है कि बिना सवालों के लोकतंत्र कैसा? करोना काल में हो रहे मानसून सत्र में कुछ और भी बदलाव देखने को मिलेंगे जैसे, लोक सभा और राज्यसभा की कार्यवाही पहले दिन को छोड़ कर दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे तक होगी. पहले दिन दोनों ही सदन सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक चलेंगे.

यह भी पढ़ें:

अपनी राय हमें rajniti.on@gmail.com के जरिये भेजें. फेसबुक और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें |

Exit mobile version