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कोरोना का ‘जल्दी वाला टेस्ट’ कर के टारगेट पूरा कर रहा है भारत

क्या आपने कोरोना के जल्दी वाले टेस्ट के बारे में सुना है. अगर नहीं हो आपको ये जानकारी दे दें कि भारत टारगेट पूरा करने के लिए कोरोना का ‘जल्दी वाला’ टेस्ट कर रहा है. क्या होता है ये टेस्ट और क्यों किया जा रहा है इसके बारे में आपको बताते हैं.

कोरोना वायरस से जंग में टेस्टिंग को बढ़ाना एक अहम कड़ी है, लेकिन जिस तरह की टेस्टिंग हो रही है उसे लेकर एक्सपर्ट्स चिंता जता रहे हैं. पूरी दुनिया में सबसे आम पीसीआर (पॉलीमेरास चेन रिएक्शन) टेस्ट है. इसमें जेनेटिक मैटेरियल को एक स्वॉब सैंपल से अलग किया जाता है. केमिकल्स का इस्तेमाल प्रोटीन और फैट को जेनेटिक मैटेरियल से हटाने में होता है और सैंपल को मशीन एनालिसिस के लिए रखा जाता है.

इन्हें टेस्टिंग के गोल्ड स्टैंडर्ड के तौर पर देखा जाता है, लेकिन भारत में ये सबसे महंगे हैं और इसमें टेस्टिंग को प्रोसेस करने में आठ घंटे तक का वक्त लगता है. रिज़ल्ट आने में एक दिन तक का वक्त लग सकता है. यह सैंपल्स को लैब्स तक पहुंचाने में लगने वाले वक्त पर भी निर्भर करता है. अपनी टेस्टिंग कैपेसिटी को बढ़ाने के लिए भारतीय अधिकारियों ने सस्ते और जल्दी नतीजे देने वाले तरीकों का इस्तेमाल करने पर ज़ोर दिया. इन्हें रैपिड एंटीजन टेस्ट कहा जाता है. इन्हें दुनियाभर में डायग्नोस्टिक या रैपिड टेस्ट कहा जाता है.

क्या होते हैं रैपिड टेस्ट?

भारत की मेडिकल रिसर्च संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने दक्षिण कोरिया, भारत और बेल्जियम में विकसित हुए तीन एंटीजन टेस्ट को मंजूरी दी है. लेकिन, इनमें से एक को स्वतंत्र रूप से आईसीएमआर और एम्स ने परखा है. इस पड़ताल में सामने आया कि सही नेगेटिव रिजल्ट देने की इनकी एक्युरेसी 50 से 84 फीसदी के बीच है.

भारत में क्या है टेस्टिंग के आंकड़े?

अगस्त की शुरुआत में एक हफ्ते के औसत के हिसाब से भारत में क़रीब 5 लाख टेस्ट रोज़ाना हो रहे थे. भारत में हर दिन हर 1 लाख लोगों पर करीब 36 टेस्ट हो रहे हैं. इसके मुक़ाबले दक्षिण अफ्रीका में यह आंकड़ा 69, पाकिस्तान में 8 और युनाइटेड किंगडम के लिए यह आंकड़ा 192 है. प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षा इस आंकड़े को दोगुना करने की है ताकि हर दिन 10 लाख टेस्ट हो सकें. भारत की आबादी 1.3 अरब से ज्यादा है. ऐसे में रैपिड एंटीजन टेस्टिंग पर जाना परफॉर्मेंस टारगेट्स को भले ही पूरा कर दे और ज्यादा टेस्टिंग की लोगों की मांग को भी पूरा कर दे, लेकिन यह वायरस के फैलने की वास्तविक हकीकत का पता लगाने में नाकाम रहने का जोखिम लाती है.

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