“हम दलित हैं पिछड़े हुए हैं इसलिए हमारी कोई नहीं सुनता, जब से जन्म लिया तब से अंधेरे में हैं. हम लोग कहीं पर जाकर दरख्वास्त भी देते हैं तो भी यहां पर कोई भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी देखने नहीं आता है.”
बहराइच कारीपुरवा गांव में रहने वाले बृजेश कुमार को शासन और प्रशासन बहुत शिकायत है. बहराइच प्रशासन भले ही सरकार लोगो के घर घर बिलजी पहुँचाने का दावा कर रही हो लेकिन ज़मीनी हकीकत तो कुछ और ही है. महसी तहसील की गोचनपुर ग्राम पंचायत में पड़ने वाले कारीपुरवा मजरे में अंधेरा दूर करने के लिए लोग आज भी दीया और मोमबत्ती के भरोसे हैं.
बृजेश कुमार बताते हैं कि आज़ादी के 70 साल बाद भी यहां बिजली नही पहुंच पाई है. पूरे गाँव मे दलित आबादी रहती है और यहां के ज़्यादातर लोग मज़दूर पेशेवर हैं. इसी गांव में रहने वाले लालता प्रसाद बताते हैं कि डीएम साहब से कई बार शिकायत की है लेकिन हमारे यहां का अंधेरा दूर नहीं हुआ.
यहां के लोगों का कहना है कि लाख बार आला अधिकारियों से कहने के बाद भी इस गाँव में अबतक बिजली ना पहुंच पाई. इसी गांव में रहने वाले दुर्गेश बताते हैं, किस सौर ऊर्जा और मोमबत्ती के सहारे ही हैं, पहले मिट्टी का तेल भी मिल जाता था अब उसके भी लाले पड़े हैं. दुर्गेश कहते हैं कि सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को होती है क्योंकि लाइट ना होने की वजह से उनकी पढ़ाई ढंग से नहीं हो पाती.
गोचनपुर ग्राम पंचायत का कारीपुरवा मजरा दशकों से बदहाली का शिकार रहा है. चुनाव के समय यहां पर नेता वोट मांगने आते हैं. और चुनाव के बाद यहां कोई झांकने तक नहीं आता.
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रिपोर्ट: सय्यद रेहान कादरी
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