चीन के चंगुल में फंसा भारत का एक और पड़ोसी

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श्रीलंका की सरकार एक बार फिर से चीन की शरण में जा रही. श्रीलंका ने ऐसा ही 2014 में भी किया था. ऐसे में भारत के लिए यह पूरा मामला चिंता बढ़ाने वाला साबित हो सकता है.

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार 13 मई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे की बीच बातचीत हुई थी. चीन श्रीलंका को 50 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ देने के लिए तैयार है ताकि वो अपनी माली हालत सुधार सके. अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार फ़रवरी महीने में जब प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे भारत के दौरे पर आए थे तब भी उन्होंने भारत से क़र्ज़ अदायगी को टालने का अनुरोध किया था. लेकिन भारत की ओर से कोई लाभ उसे नहीं मिला.

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार 96 करोड़ डॉलर के भारतीय क़र्ज़ की अदायगी को लेकर और मोहलत देने पर श्रीलंका और भारत में बात हो रही है. इसके अलावा श्रीलंका ने भारत से मुद्रा की अदला-बदली की सुविधा की भी मांग की है. भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि श्रीलंका को वर्चुअल बैठक के लिए कहा गया है लेकिन अभी तारीख़ तय नहीं हो पाई है. श्रीलंका ने वर्चुअल बैठक को लेकर अभी कुछ भी नहीं कहा है.

अप्रैल महीने में श्रीलंका के केंद्रीय बैंक ने आरबीआई से 40 करोड़ डॉलर की मुद्रा की अदला-बदली की कोशिश की थी. इसके बाद मई महीने में भी यही कोशिश की थी. श्रीलंका ने सार्क सहयोग के तहत यह कोशिश की थी. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे प्रधानमंत्री मोदी से चाहते थे कि वो 1.1 अरब डॉलर की मुद्रा की अदला-बदली की अनुमति दें.

श्रीलंका की माली हालत है खराब

श्रीलंका पर कुल विदेशी क़र्ज़ क़रीब 55 अरब डॉलर है और यह श्रीलंका की जीडीपी का 80 फ़ीसदी है. इस क़र्ज़ में चीन और एशियन डिवेलपमेंट बैंक का 14 फ़ीसदी हिस्सा है. जापान का 12 फ़ीसदी, विश्व बैंक का 11 फ़ीसदी और भारत का दो फ़ीसदी हिस्सा है. मसला सिर्फ लंका का नहीं है मालदीप भी चीन की ओर खिसक रहा है. हालांकि मालदीव पर भारत का बहुत छोटा क़र्ज़ है. मालदीव चाहता है कि भारत वहां की परियोजनाओं और विकास की योजनाओं में निवेश करे. मालदीव पर चीन का 1.5 अरब डॉलर का क़र्ज़ है. 60 करोड़ डॉलर तो सीधे दोनों सरकारों के बीच का क़र्ज़ है. सोलेह सरकार इससे पहले चीन के क़र्ज़ को ख़तरनाक बता चुकी है. हालांकि ऐसी रिपोर्ट है कि चीन ने इस साल की अदायगी को 10 करोड़ डॉलर से कम कर 7.5 करोड़ डॉलर कर दिया है.

इन परिस्थितियों में भारत यह कतई नहीं चाहेगा कि नेपाल के बाद श्रीलंका और मालदीव भी चीन की गोद में जाकर बैठ जाएं . लेकिन श्रीलंका और मालदीप की आर्थिक स्थिति इस ओर इशारा कर रही है कि वह आज नहीं तो कल ड्रैगन के चंगुल में फंसकर भारत के लिए ही मुसीबत खड़ी करेंगे .

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