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#PanchayatOnline: ‘शौचालय के चक्कर जिस बच्चे को 9 महीने कोख में रखा उसका मुंह तक नहीं दे पाई एक मां’

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22 जून 2020, ये तारीख सिम्पी कभी नहीं भूलेगी. 22 जून शाम करीब 7.30 बजे सिम्पी शौच के लिए गांव के पीछे खेत में गई थी. सिम्पी गर्भवती थी, सिम्पी और उसके पति सुनील कुमार घर आने वाले नन्ने मेहमान की किलकारियों के इंतजार में तैयारियां कर रहे थे. सिम्पी बच्चे के लिए छोटे-छोटे कपड़े सिलती, सुनील बाजार से खिलौने लाते. लेकिन 22 जून को सब कुछ बदल गया. सिम्पी और सुनील की खुशियां एक शौचालय ने तबाह कर दीं.

PanchayatOnline: आगरा के पिनहाट ब्लॉक में एक चचिहा ग्राम पंचायत है. इस ग्राम पंचायत के एक छोटे से मजरे जोधपुरा में सिम्पी अपने पति सुनील के साथ रहती हैं. करीब 8 महीने पहले वो जोधपुरा में रहने आईं थीं इससे पहले वो पिनाहट में रहती थीं. जोधपुरा में सिम्पी के सास-ससुर रहते हैं. सिम्पी गर्भवती थी और पूरे परिवार नन्हें मेहमान के आने का इंतजार कर रहा था. 22 जून को रात करीब 8 बजे सिम्पी गांव के पीछे बीहड़ में शौच के लिए गईं थीं. तब तब उन्होंने ये ख्वाबों में भी नहीं सोचा था कि घर में शौचालय न होना उनकी खुशियों को खा जाएगा. शौच के वक्त उन्हें पेट में तेज दर्द हुआ और वो बेहोश हो गईं. जब उन्हें होश आया उन्हें प्रसव हो चुका था. सिम्पी ने बदहवासी में अपने पति से बच्चे के बारे में पूछा तो पता चला बच्चे को जानवर उठा ले गया है.

आधार कार्ड के चक्कर में नहीं मिला शौचालय

क्या सुनील और सिम्पी ने सपनों में भी सोचा होगा कि एक शौचालय का नाम होना इतना दर्दनाक हो सकता है? शायद नहीं. और इसीलिए उन्होंने शौचालय को गंभीरत से नहीं लिया. सिम्पी ज्यादा कुछ बताने की हालत में नहीं हैं. वो बस अब खुद को कोस रही हैं कि वो शौच के लिए खुले में गईं ही क्यों थीं. सिम्पी और सुनील ने तो अपने बच्चे के नाम के बारे में भी सोच लिया था लेकिन उन्हें क्या बता था कि एक शौचालय उनके बच्चे को खा जाएगा. सुनील के सवाल खुद से भी हैं और सिस्टम से भी. क्योंकि सूनील और सिम्पी पिछले 8 महीनों से जिस जोधपुरा मजरे में रह रहे थे वहां 11 घर थे और जिनमें से 10 घरों में शौचालय बना हुआ था. सिम्पी को शौचालय इसलिए नहीं मिला था क्योंकि सुनील के पास चचिहा का आधार कार्ड नहीं था.

प्रधान को नहीं थी इस परिवार की जानकारी

गांव के प्रधान गजेंद्र सिंह बताते हैं कि उनकी ग्राम पंचायत की आबादी करीब 4500 है. और सभी को शौचालय मिले हुए हैं. लेकिन भी करीब 200 लोग शौच के लिए खुले में जाते हैं. उनका कहना है कि जोधपुरा में जो कुछ भी हुआ इसके लिए उनका कोई दोष नहीं है क्योंकि ओडीएफ योजना के लिए तहत जो शौचालय बनते हैं उसमें प्रधान की भूमिका शून्य है. पैसा सीधे लाभार्थी के खाते में आता है. उन्होंने बताया कि सुनील की पारिवारिक स्थिति ठीक है और शौचालय बनवाने में सक्षम है. प्रधान के मुताबिक गांव की आगंवाड़ी और आशा कार्यकत्री को सुम्पी के बारे में जानकारी नहीं थी. सिम्पी का रिकॉर्ड इन लोगों के पास नहीं था क्योंकि ये पिनहाट में ही टीका बगैरहा लगवा रही थीं. प्रधान का कहना है कि उन्हें घटना की जानकारी 23 जून को हुई और वो सुबह करीब 9 बजे जोधपुरा गए थे.

आगरा के ओडीएफ होने का दावा गलत

चचिहा ग्राम पंचायत के सैकेटरी राहुल बताते हैं कि वो अभी यहां नए हैं और ग्राम पंचायत को पहले ही ओडीएफ घोषित किया जा चुका है. वो बताते हैं कि नियमन सुनील को शौचालय नहीं मिल सकता क्योंकि उनके पास चचिहा का आधारकार्ड नहीं है. लेकिन फिर भी घटना के बाद हम उनके घर पर शौचालय बनवा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें 24 तारीख को इस घटना की जानकारी हुई और इसके बाद जिले के सभी अधिकारी सक्रिय हुए. आपको बता दें कि 25 नवंबर 2018 को आगरा को ओडीएफ घोषित किया गया था. जिले में 361948 शौचालय बनवाए गए. आपको बता दें कि एक शौचालय के लिए सरकार 12 हजार रुपये देती है. निर्बल भारत अभियान, संपूर्ण स्वच्छता अभियान, स्वच्छ भारत अभियान के तहत इन शौचालयों का निर्माण किया गया है.

चचिहा की घटना के बाद डीपीआरओ और एसडीएम बाह ने सक्रियता दिखाई है. डीपीआरओ सुजाता ने बताया है कि आगरा में 80 फीसदी शौचालय बन चुके हैं 20 फीसदी काम बाकी है. कुल मिलाकर चचिहा के जोधपुरा मजरे की घटना के बाद कुछ बातें स्पष्ट हो जाती है. एक तो ये कि आगरा ओडीएफ नहीं है, दूसरी बात ये कि अगर आपको सरकारी शौचालय नहीं मिला और आप सक्षम हैं तो आपको शौचालय बनवाना चाहिए, खुले में शौच से बचना चाहिए. तीसरी और सबसे अहम बात, देश अभी ओडीएफ नहीं हुआ तो जो लोग इसका ढिढोंरा पीट रहे हैं उन्हें सच्चाई से दो चार होना चाहिए.

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