द हिंदू अख़बार में छपी खबर कहती है कि मुकदमा दायर करने वालों की मांग यह भी है कि (पीएम केयर्स- पीएम सिटिज़न असिस्टेंस एंड रिलीफ़ इन इमरजेंसी सिचुएशन) रद्द घोषित करते हुए जिन भी लोगों ने इसमें अनुदान दिया है उन्हें वो रकम वापस कर दी जाए.
पुणे की एक स्थानीय अदालत में पीएम केयर्स फ़ंड को आरटीआई के तहत लाए जाने के लिए मुक़दमा दायर किया गया है. मुकदमा दायर करने वाले वक़ील तोसिफ़ शेख ने समाजिक कार्यकर्ता राजेश बजाज और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के सतीश गायकवाण की ओर से मुक़दमा दायर किया है.
क्या है पूरा मामला?
ग्रेटर नोएडा निवासी और पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोगड़ ने 21 अप्रैल 2020 को एक सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन दायर कर प्रधानमंत्री कार्यालय से कुल 12 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी. पीएमओ ने आनन-फानन में छह दिन बाद ही 27 अप्रैल को जवाब भेजकर जानकारी देने से मना कर दिया और कहा कि आरटीआई के एक ही आवेदन में कई विषयों से संबंधित सवाल पूछे गए हैं, इसलिए जानकारी नहीं दी जा सकती है. पीएमओ ने कहा, ‘आरटीआई एक्ट के तहत आवेदनकर्ता को ये इजाजत नहीं है कि वे एक ही आवेदन में विभिन्न विषयों से जुड़ी जानकारी मांगे, जब तक कि इन अनुरोधों को अलग-अलग से नहीं माना जाता है और उसके अनुसार भुगतान किया जाता है.‘
अब इसको लेकर केस किया गया है, इस मामले में मांग की गई है कि अगर केंद्र सरकार पीएम केयर्स के तहत जमा हुई धनराशि से जुड़ी जानकारी सार्वजिनिक नहीं करती है तो इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए. गायकवाण के हवाले से लिखता है कि एक बार इसे रद्द घोषित कर दिया गया तो जिन जिन लोगों ने इसमें अनुदान दिया है उन्हें उनकी रकम वापस मिल जाएगी. या फिर ये रकम महाराष्ट्र सरकार को कोविड19 की स्थिति को संभालने के लिए आर्थिक सहायता के तौर पर दी जा सकती है. क्योंकि महाराष्ट्र देश का सबसे अधिक प्रभावित राज्य है.
आपको बता दें कोरोना वायरस संक्रमण के इस दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मार्च को पीएम केयर्स फंड की घोषणा की थी जबकि आपातकालीन परिस्थितियों और स्वास्थ्य से जुड़ी आपात स्थिति के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष पहले से ही है. जिसकी स्थापना क़रीब 70 साल पहले की गई थी.
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