बिहार सरकार के एक ज़िम्मेदार नेता ने कहा है कि इस बात की भी आशंका है कि कि बड़ी तादाद में आ रहे प्रवासी राज्य में संक्रमण के मामले बढ़ा न दें.
कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से अलग-अलग शहरों से बिहार लौट रहे प्रवासी राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं. राज्य में अगले पांच महीने बाद चुनाव हैं. और ऐसे में ये प्रवासी मजदूर बिहार सरकार के लिए सिरदर्द बन गए हैं. मजदूर के प्रति सरकार की उदासीन नीति समस्या को और बड़ा कर रही है.
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इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी और जेडीयू के नेता लगातार प्रवासियों की वापसी से चिंतित हैं. हालांकि हर ज़िले में क्वारंटीन सेंटर बनाए गए हैं जहां बाहर से आने वाले लोगों को 14 से 21 दिनों के लिए रखा जा रहा है लेकिन इस बात की भी आशंका है कि कि बड़ी तादाद में आ रहे प्रवासी राज्य में संक्रमण के मामले बढ़ा न दें.
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा, ”प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की कि जो जहां है वहीं रहे. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यही बात कही. लेकिन लोगों ने सुना नहीं. जिन राज्यों में ये लोग काम करते थे वहां इन्हें खाना नहीं मिला. जब कोई विकल्प नहीं रहा तो घर लौटना मजबूरी बन गया.”
राज्य की खराब स्वास्थ्य व्यवस्था इस चुनौती को और बढ़ा देती है. यहां वेंटिलेटर और टेस्टिंग किट की भी कमी है. राज्य में अच्छे अस्पतालों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भी कमी है. कोरोना संक्रमण की वजह से पनपे हालात से सामान्य जीवन की ओर लौटने की तमाम कोशिशें जारी हैं. इस बीच मंगलवार से शुरू हुई रेल सेवा में टिकट बुकिंग के लिए काफ़ी मारा-मारी दिखी. रेलवे ने पटना के लिए ट्रेन चलाई है लेकिन ये मज़दूरों के लिए नहीं है.