जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक़ दुनिया भर में कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या 33,34,416 हो चुकी है. इनमें से कम से कम अब तक 2,37,943 लोगों की जान जा चुकी है. पिछले 24 घंटों में भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण के 2,293 नए मामले सामने आए हैं. इसके साथ ही संक्रमितों की कुल संख्या 37,336 हो गई है. वायरस के संक्रमण से मरने वालों संख्या 1218 हो गई है.
रेमडेसिवियर कोरोना के ख़िलाफ़ पहली कामयाब दवा मानी जा रही है. अमरीका में 1063 लोगों के ऊपर इसे इस्तेमाल करने के बाद वायरस के प्रभाव को रोकने में असरदार पाया गया है. अमरीकी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्सियस डिजीज (NIAID) के डायरेक्टर एंथोनी फाउची ने कहा है, “आँकड़ों के मुताबिक़ रेमडेसिवियर का साफ़ तौर पर मरीज़ों के ऊपर सकारात्मक असर दिख रहा है.”
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उन्होंने इसकी तुलना 1980 के दशक में एचआईवी के ख़िलाफ़ रेट्रोवायरल की कामयाबी से की. अमरीकी फ़ूड एंड ड्रग एडिमिनिस्ट्रेशन ने इसकी इमर्जेंसी की हालत में इस्तेमाल की अनुमति दे दी है. इस दवा को अमरीकी दवा कंपनी गिलिएड ने बनाया है. इबोला के इलाज के लिए यह दवा बनाई गई थी. चीन में रेमडेसिवियर ट्रायल के दौरान फेल हो गई थी.
ऐसा लगता है कि दुनिया को आख़िर कोविड-19 की इलाज की दवा मिल गई है लेकिन अब भी यह जन सामान्य के लेने के लिए नहीं है. यह दवा अस्पताल में भर्ती मरीज़ को ही दी जा सकती है. अगर अमरीका में इस दवाई को देने की अनुमति दे दी गई है तो क्या भारत भी कोरोना के मरीज़ों में इसके इस्तेमाल पर विचार करेगा?
जाने-माने वैज्ञानिक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के पूर्व महानिदेशक डॉ निर्मल गांगुली ने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा है, ”रेमडेसिवियर के शुरुआती ट्रायल में दिखा है कि यह दवाई कोरोनो संक्रमितों की रिकवरी अवधि 15 दिनों से 11 दिन कर दे रही है. जैसा कि एन्फ्लुएंजा की दवाई में होता है. ज़ाहिर है कि बहुत असरदार नहीं है लेकिन रिकवरी में मदद मिल रही है. NIAID के ट्रायल में रेमडेसिवियर मरीज़ों को पांच और दस दिनों तक दी गई. जिन्हें यह दवाई दी गई उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट की ज़रूरत नहीं पड़ी. पहला डोज 200 एमजी और फिर एक दिन में 100 एमजी दी गई. यह मरीज़ों में नस के ज़रिए दी गई. मरीज़ों के एक समूह को पाँच दिनों के लिए दी गई और दूसरे समूह को 10 दिनों के लिए. जिन मरीज़ों के रेमडेसिवियर दी गई उनमें से बड़ी संख्या में लोगों को वेंटिलेटर सपोर्ट की ज़रूरत नहीं पड़ी. स्पष्ट है कि अस्पताल में मरीज़ों को कम दिन रहना पड़ेगा. जिन्हें यह दवाई दी जाएगी वो 10 से 14 दिनों में डिस्चार्ज हो जाएंगे.”
गांगुली कहते हैं कि गिलिएड साइंस की योजना है कि वो इसका ट्रायल दुनिया के कई देशों में बढ़ाए. गांगुली कहते हैं, ”भारत को भी इस पर विचार करना चाहिए. भारत ने पहले लाखों लोगों की जान न केवल अपनी आबादी बल्कि दूसरे देशों में भी सस्ती और प्रभावी एंटी-रेट्रोवायरल दवाई देकर बचाई है.”