अमित शाह ने बहुत बुरा वक्त देखा. वो जेल में रहे, अपने राज्य से बाहर रहे, लेकिन इतना सब होने के बाद भी वो देश के गृहमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. अमित शाह कांग्रेस राज में उनके ऊपर जो आरोप लगे थे उनसे बरी हो चुके हैं और अब उन्होंने एक नई छवि गड़ ली है.
मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं या नहीं ये बात पहले भी कई बात चर्चाओं में रही है. लेकिन पांच अगस्त को जब राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने और दो केंद्र शासित राज्य बनाने का विधेयक पेश हुआ, तो प्रधानमंत्री ने पूरे देश को बता दिया कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन है? इतना ही नहीं शाह यहीं नहीं रुके उन्होंने इसके बाद कई ऐसे काम किए जो सिर्फ शाह ही कर सकते थे.
ये विधेयक पहले लोकसभा चुनाव से पहले ही लाने की तैयारी हो चुकी थी. विधेयक के मसौदे से लेकर पीडीपी से रिश्ता कब और कैसे तोड़ना है इसकी सारी रणनीतिक व्यूह रचना अरुण जेटली, अमित शाह और मोदी ने तैयार की. लेकिन ये विधेयक इसलिए पेश नहीं हो पाया क्योंकि उसी वक्त पुलवामा हमला हो गया और फिर सरकार ने बालाकोट एयरस्ट्राइक का फैसला किया.
नागरिकता संशोधन विधेयक की कमान भी शाह के हाथ में ही रही. इस विधेयक को पेश करने में अमित शाह की भूमिका अहम रही. दोनों ही मामलों में मोदी की जगह शाहर ने मोर्चा संभाला और देश के लोगों को अपने संसदीय कौशल से चौंकाया. संसद के दोनों सदनों में उनके प्रदर्शन से देश का पहली बार परिचय हुआ. कहते हैं कि मोदी का शाह पर अटल भरोसा है और इस तरह की राजनीतिक जोड़ी इतिहास में मिलना बेहद कठिन है.
पिछले कुछ महीनों में अमित शाह ने जो कारनामे किए हैं उसने देश को चौंका दिया है. इन कारनामों को देखकर गता है कि शाह ने अब अपनी छवि गढ़ ली है और वो मोदी की छाया से बाहर आ गए हैं. बीजेपी को वोट देने वाले कई लोग ये कहते हैं कि अमित शाह अगले प्रधामंत्री हैं.
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लेकिन अमित शाह के लिए हमेशा से हालात इतने सुलभ नहीं थे. ये बात इसलिए अहम हो जाती है क्योंकि एक दौर ऐसा भी था जब बीजेपी के बड़े नेता कांग्रेस राज में अमित शाह को पार्टी के लिए बोझ मानते थे. संसदीय बोर्ड की बैठक में सुषमा स्वराज ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की ओर देखते हुए पूछा,
“आखिर हम कब तक अमित शाह को ढ़ोएंगे?”
इस बैठक में वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे और उन्होंने इस बात पर कहा था,
“क्या बात करते हैं जी. पार्टी के लिए अमित के योगदान को कैसे भुला सकते हैं.”
नरेंद्र मोदी ने अरुण जेटली की ओर देखते हुए ये कहा था कि,
“अरुण जी आप जेल जाइए और अमित शाह से मिलिए. उन्हें लगना चाहिए कि पार्टी उनके साथ है.”
इसके बाद अमित शाह से मिलने अरूण जेटली जेल गए थे और जेल से छूटने के बाद अमित शाह के गुजरात जाने पर जब कोर्ट ने रोक लगा दी तो वो दिल्ली आए थे.
ये वो दौर था जब दिल्ली में अमित शाह को दायरा काफी सीमित था. ये वो वक्त था जब दिल्ली में अमित शाह का सहारा अरुण जेटली थे और जेटली ने पार्टी के कुछ युवा नेताओं से कहा था कि वो दिल्ली में अमित शाह का ख्याल रखें.
आज भले ही अमित शाह से मिलने के लिए लोगों को घंटों लगान लगानी पड़ती हो लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब नितिन गडकरी पार्टी के अध्यक्ष थे तब शाह को उनसे मिलने के लिए दो-दो, तीन-तीन घंटे बाहर इंतज़ार करना पड़ता था.
लेकिन 2014 आते आते हालात अमित शाह के पक्ष में होने लगे. साल 2013 में राजनाथ सिंह के हाथ में एक बार फिर से पार्टी की कमान आई और वो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. मोदी के कहने पर राजनाथ सिंह ने अमित शाह को पार्टी का राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया. इसके बाद पार्टी ने शाह को यूपी की जिम्मेदारी सौंपी. राजनाथ के इस फैसले के बाद यूपी के नेताओं के बीच से आवाज उठी लेकिन किसी को ये नहीं पता था कि अमित शाह का यूपी आना कैसे बीजेपी की तकदीर पलट सकता है?
अमित शाह ने 2013 में 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में जब काम शुरु किया तो उन्होंने सीट नहीं बल्कि बूथ जीतने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि हमें सीट जिताने वाले नहीं बल्कि बूथ जिताने वाले लोग चाहिए. शाह की ये रणनीति रंग लाई. 2014 के नतीजे जब मई महीने में आए शाह शहंशाह बन गए. उनकी कामयाबी शिखर छूने लगी और वो पार्टी के अध्यक्ष बन गए. उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के काम करने के तरीकों में बड़े पैमाने पर बदलाव किया और बूथ कार्यकर्ताओं की अहमियत बढ़ गई.
इसके बाद अमित शाह ने तमाम राजनीतिक पंड़ितों को गलत साबित किया और शाह जिस भी राज्य की बैठक में जाते हैं राज्य के पदाधिकारियों के पसीने छूट जाते हैं. वजह यह है कि उन्हें हर चुनाव क्षेत्र, उसके प्रमुख कार्यकर्ताओं और मुद्दों की उनसे ज़्यादा जानकारी होती है. शाहर ने अपने कार्यकाल में ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने का काम किया. सबकी वैचारिक प्रतिबद्धता संदेह से परे रखकर काम किया. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उनके राजनीति कौशन ने उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद बीजेपी प्रचंड जीत दिलाई.
मौजूदा परिस्थितियों को देखकर लगता है कि गृह मंत्री सरकार में नंबर दो भले ही होता हो लेकिन शाह के मामले में ये बात अलग है क्योंकि वो नंबर एक बनने के करीब पहुंच रहे हैं.
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