गुजरात दंगे : मोदी पाकसाफ, उन अफसरों की जांच हो जिन्होंने उनकी सरकार पर उठाए सवाल

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Gujarat riots: Modi Paksaf, investigation of officers who raised questions on his government

गुजरात दंगों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 17 साल बाद क्लीनचिट मिल गई है. लेकिन इस दंगों में सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े करने वाले अफसरों की शामत आ सकती है. 

2002 के गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों की जांच के लिए 6 मार्च 2002 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने नानावटी-मेहता आयोग का गठन किया था. नानावटी-मेहता आयोग की रिपोर्ट का पहला हिस्सा 2008 में पेश किया गया था, इसमें भी मोदी, उनके मंत्रियों और अफसरों को क्लीन चिट दी गई थी. इस रिपोर्ट का दूसरा और आखिरी हिस्सा बुधवार को विधानसभा में पेश किया गया जिसनें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके तीन मंत्रियों को क्लीनचिट दे दी गई.

इस रिपोर्ट में उन तीन अफसरों की भूमिका पर जांच करने की सिफारिश की गई है जो उस वक्त इस मामले की जांच कर रहे थे. तीन पुलिस अधिकारियों संजीव भट्ट, आरबी श्रीकुमार और राहुल शर्मा के खिलाफ जांच की सिफारिश की गई है. नानावटी आयोग का गठन 6 मार्च 2002 को उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इस रिपोर्ट का पहला हिस्सा सितंबर 2008 में पेश किया जा चुका है, जिसमें भी मोदी को क्लीनचिट मिल गई थी.

क्या है नानावटी आयोग और कब बना था?

नानावटी आयोग का गठन 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे को जलाने के मामले में किया गया था. इस ट्रेन में अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवकों की मौत हो गई. क्योंकि इस घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे, जिसमें 1,044 लोग मारे गए. मरने वालों में 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे. गोधरा कांड की जांच के लिए 6 मार्च 2002 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने नानावटी-शाह आयोग का गठन का किया. इस आयोग में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज केजी शाह और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जीटी नानावटी थे.

2009 में जस्टिस केजी शाह के निधन के बाद उनकी जगह गुजरात हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अक्षय मेहता में शामिल हुए. जिसके बाद इसका नाम नानावटी-मेहता आयोग पड़ गया. इस आयोग 2008 में अपनी रिपोर्ट का जो पहला हिस्सा पेश किया उसमें गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया. इसके साथ ही इसमें नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों को भी क्लीन चिट दी गई. इसी तरह अपनी दूसरी रिपोर्ट में भी मोदी को क्लीनचिट मिल गई है. नानावटी आयोग ने अपनी रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा नवंबर 2014 को गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को दे दिया था लेकिन इस रिपोर्ट को 5 साल बाद 11 दिसंबर 2019 को विधानसभा में पेश किया गया.

किनके खिलाफ जांच की सिफारिश

इस रिपोर्ट में भी गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया. इसके साथ ही इन दंगों में नरेंद्र मोदी या उनके तत्कालीन मंत्रियों अशोक भट्ट, भरत बारोट और हरेन पंड्या की भूमिका को भी नकारा गया. लेकिन इस रिपोर्ट में तीन अफसरों के खिलाफ जांच करने की सिफारिश की गई है. इन अफसरों में संजीव भट्ट हो जो निलंबित डीआईजी है और जिनके बारे में कहा गया  है कि उन्होंने गुजरात दंगों की जांच करने वाली एसआईटी और नानावटी आयोग से कहा था कि वे उस मीटिंग में मौजूद थे जिसमें गोधरा कांड के बाद नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों से दंगाईयों से नरमी से निपटने को कहा था.

जून 2019 में भट्ट को 1990 के एक मामले में निचली अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. इस रिपोर्ट में आरबी श्रीकुमार हैं जो पुलिस महानिदेशक के पद से रिटायर हो चुके हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने एसआईटी के सामने गुजरात सरकार के खिलाफ दस्तावेज सौंपे थे. तीसरे अधिकारी हैं  राहुल शर्मा जो पूर्व डीआईजी रह चुके हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने जांच एजेंसियों को गुजरात दंगों के दौरान कुछ भाजपा नेताओं की फोन पर हुई बातचीत की सीडी दी थी. फरवरी 2015 में राहुल शर्मा ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी. फिलहाल वे गुजरात हाईकोर्ट में वकालत कर रहे हैं.

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तो नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों को क्लीनचिट मिलने के बाद इन तीन अधिकारियों के खिलाफ अब जांच की सिफारिश की जाएगी. क्योंकि इन तीनों अधिकारियों ने मौजूदा सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए थे.

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