बलात्कार के बढ़ते मामले और अदालतों से उठता भरोसा
उन्नाव में एक लड़की को जिंदा जलाकर मार दिया गया, हैदराबाद में एक वेटरनरी डॉक्टर के साथ रेप करके उसे जिंदा जला दिया गया. इसके अलावा अनगिनत ऐसे मामले हैं जिनकी जिक्र भर सिहरत पैदा कर देता है. हैदराबाद की घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश पैदा हुआ और पुलिस ने जब आरोपियों का एनकाउंटर कर दिया तो खाकी पर फूल बरसाए गए. इस घटना से सवाल खड़ा हो गया कि क्या भारत का न्याय तंत्र इतना फिसड्डी है कि रेप के मामलों में समय पर इंसाफ नहीं दे सकता?
सरकारी आंकड़ा कहता है कि भारत में रोजाना औसतन 90 से ज्यादा रेप के मामले दर्ज किए जाते हैं. ये सरकारी रिकॉर्ड है जिसे आप एनसीआरबी के डेटा में देख सकते हैं. इनमें सैकड़ों वो मामले शामिल नहीं हैं जो सरकारी रजिस्टर में किन्हीं कारणों से दर्ज नहीं हो पाए. अब इन 90 मामलों में से भी बहुत ही कम मामले ऐसे होते हैं जिसमें वो लड़की जिसके साथ रेप हुआ है वो अपने साथ इंसाफ होता हुआ देखती है. जिस आंकड़े की बात हम कर रहे हैं वो 2017 का है 2019 में तो ये और ज्यादा बढ़ गया है.
हैदराबाद की घटना में जब 9वें दिन पुलिस ने डॉक्टर रेड्डी के साथ दुष्कर्म करने वाले चारों आरोपियों का एनकाउंटर कर दिया तो पुलिस की जय-जयकार होने लगी. पुलिस पर फूल बरसाए जाने लगे. इस घटना में पुलिसिया कार्रवाई को लेकर देश में दो राय हो गईं एक जो ऑन द स्पॉट फैसले से खुश था और दूसरी वो जो तरह आरोपियों को सजा देने के खिलाफ था. ऐसा हुआ क्यों ? क्या ये मान लिया जाए कि भारत का न्याय तंत्र फेल हो गया है? चलिए ये बात आकंड़ों से समझते हैं.
भारत के न्याय तंत्र की स्थिति क्या है?
आपको याद होगा 2012 के दिसंबर महीने में दिल्ली की एक मेडिकल छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ था. इस घटना के बाद पूरे देश में आंदोलन हुए और मौजूदा सरकार को महिला सुरक्षा को लेकर गंभीरता से सोचना पड़ा. एनसीआरबी के डेटा पर नजर डालें तो जब दिल्ली में मेडिकल छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ था तब रेप के मामले की 25,000 से कम रिपोर्ट हुईं थीं लेकिन 2016 में ये मामले 38,000 से पार पहुंच गईं. हालांकि 2017 में इसमें थोड़ी कमी जरूर आई लेकिन महिलाओं उत्पीड़न की घटना और ज्यादा वीभत्स रूप में सामने आईं. एक तरफ जहां पुलिस के रजिस्टर में रेप के मामलों के आंकड़े लगातार बढ़े वहीं देश की अदालतों में इन सभी मामलों का फैसला करने का काम भी बढ़ा.
आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 के आखिर तक अदालत में 1 लाख 27 हज़ार 800 से ज्यादा मामले लंबित पड़े थे. उस साल सिर्फ 18 हज़ार 300 मामलों पर ही अदालतें फ़ैसला सुना सकी थीं. ये एनसीआरबी क आंकड़े हैं और इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि रेप के मामले में अदालतों की सुनवाई की प्रक्रिया कितनी धीमी है. अगर हम 2012 के आकंड़े देखें तो अदालतों में 20 हज़ार 660 मामलों का निपटारा किया था जबकि उस साल के आखिर तक 1 लाख 13 हज़ार मामले लंबित रह गए थे. तो अदालतों में रेप के मामलों के लंबित रहने की वजह से हैदराबाद में घटना के 9वें दिन जो हुआ उससे लोग पुलिस की वाहवाही करने लगे.
बहुत देरी से मिलाता है इंसाफ
2002 से 2011 के बीच अगर इंसाफ मिलने की दर देखी जाए तो आप हैरान हो जाएंगे ये जानकार कि ये लगभग 26 प्रतिशत तक रही थी. 2012 में इसमें सुधार जरूर हुआ लेकिन 2016 में ये भी से 25 फीसदी पर आ गई. और 2017 आते-आते ये दर 32 फीसदी से ऊपर चली गई. इंसाफ मिलने में देरी की वजह से लोग अपने त्वरित न्याय चाहते हैं. जिस तरह से अदालतों में मामले साल-दर-साल आगे बढ़ते जाते हैं उससे कई बार पीड़ित और चश्मदीदों को धमकाने और लालच देकर बयान बदलने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं. कुलदीप सिंह सेंगर और आसाराम के मामलों में भी हम ये देख चुके हैं कि पीड़िता को इंसाफ पाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं.
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रेप पीड़िताओं को जल्द से जल्द न्याज दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किए गए लेकिन जजों की कमी है और इस तरह के कोर्ट भी कम हैं. पिछले साल सरकार ने कहा था कि वह एक हज़ार अतिरिक्त फ़ास्ट ट्रैक अदालतों का गठन करेगी जिससे लंबित पड़े रेप के मामलों को जल्दी निपटाया जा सकेगा. लेकिन महिला सुरक्षा के मामले में या फिर रेप जैसे मामलों में महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए मामले में भारत से भी खराब हालात दुनिया के दूसरे देशों हैं.
दक्षिण अफ्रीका और बांग्लादेश जैसे देशों में भी रेप जैसे मामलों में महिलाओं बड़ी देर से इंसाफ मिलता है. वहीं अगर विकसित देशों की बात करें तो वहां न्याय मिलने की दर को ठीक है लेकिन वहां रेप के मामले कोर्ट तक बहुत कम पहुंचते हैं. तो भारत के मामले में न्याय तंत्र की जिम्मेदारी है कि वो लोगों का भरोसा डिगने न दे.