हैदराबाद में एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार हो, तमिलनाडु में एक बच्ची के साथ सामुहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या का मामला हो, चाहें रांची में एक 25 वर्षीय छात्रा के साथ 12 लोगों ने रेप करके उसकी हत्या कर दी हो या फिर चंडीगढ़ में ऑटो ड्राइवर ने एक महिला के साथ रेप किया हो इस सब घटनाओं में मर्द ही शामिल थे. ये हमारा ‘मर्दाना साम्राज्य’ है
क्या इन मर्दों की मां, बहन या फिर बेटी नहीं थी. बहन, बेटी भले न हो लेकिन मां तो होगी ही. भारत में ये आम दिनों की खबरें हो गई हैं. इन घटनाओं के बारे में पढ़कर ऐसा लगता है कि मर्दानगी क्या सिर्फ महिलाओं के उपभोग में ही है. और एक दूसरी बात ये है कि क्या वो मर्द जो इन घटनाओं को लेकर आक्रोशित हो जाते हैं उनकी मर्दानगी इस में है कि इन घटनाओं को हैशटैग के जरिए ट्रेंड कराकर चुप बैठ जाएं.
क्या हम ये मान लें कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की खबरों से इंटरनेट पर लोगों को अपनी भावनाएं ज़ाहिर करने का एक नया हैशटेग मिल जाता है.
ये हैरानी की बात है कि भारत में बलात्कार की घटनाएं साला दर साल कागजी दस्तावेजों में दर्ज हो जाती हैं और एक आंकड़ा बन जाती है. जिन्हें हम जैसे लोग अपनी लेखनी में इस्तेमाल करते हैं. हैरानी है इस बात की महिला हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं बेगुनाह पीड़िताओं के साथ हुए जु़ल्म की कहानी एक हैशटैग में सिमट रही हैं और हम इन घटनाओं को ट्रेंड कराकर खुद को मर्द समझ रहे हैं.
एक बुजदिल मर्द वो भी है जो हमारी बच्चियों को अपना शिकार बनाता है और एक बेगैरत मर्द हम भी हैं जो अपने बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में असफल रहे है.
उपभोग का समान नहीं है स्त्री
क्या हम मर्द ये भूल गए हैं कि महिलाएं सिर्फ एक माँ, बहन और पत्नी नहीं हैं. बल्कि खुद में एक जीती-जागती शख्सियत हैं. और उन्हें वैसे ही देखे जाने की ज़रूरत हैं. वो कोई भोग की चीज नहीं हैं जिसे मर्दानगी दिखाकर हम भोगते और रौंदते रहें. जिस देश में लक्ष्मी, दुर्गा और तमाम दूसरी पौराणिक महिलाओं की देवियों के रूप में पूजा की जाती है. उस देश में एक हमारी बच्चियों को मर्द नोंच रहे हैं. बच्चियों पर, महिलाओं पर हिंसा की दास्तां हैरान करने वाली है. ये आकंड़े बताते हैं,
- दुनिया भर में 15 से 19 साल की ऐसी लगभग डेढ़ करोड़ लड़कियां हैं, जिन्हें सेक्स के लिए मजबूर किया गया.
- हर हफ्ते 15 से 24 साल की उम्र की लगभग सात हजार लड़कियां एचआईवी से संक्रमित हो रही हैं.
- दुनिया भर में 20 करोड़ ऐसी लड़कियां और महिलाएं हैं जिनका खतना यानी एफजीएम किया गया है.
- अलग अलग युद्धों और संघर्षों के कारण बेघर होने वाली लड़कियों की संख्या तीस लाख से भी ज्यादा है.
- शांतिपूर्ण देशों की तुलना में युद्धग्रस्त इलाकों में लड़कियों का स्कूल छूटने की संभावना दोगुनी होती है.
- आंकड़े बताते हैं कि 6.2 करोड़ लड़कियां ऐसी हैं जिनकी पढ़ने लिखने की उम्र है लेकिन वे स्कूल नहीं जा पा रही हैं.
- हर साल 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही कर दी जाती है. पांच में से एक 18 साल से पहले ही मां भी बन जाती है.
- ट्रेंड को देखें तो 2030 में ही एक करोड़ नाबालिग लड़कियों की शादी होगी, जिनमें 20 लाख की उम्र 15 साल से कम होगी.
इन आकंड़ों को देखकर मर्दों को शर्म से सिर नीचे कर लेना चाहिए क्योंकि बच्चियों की इस हालत का जिम्मेदार मर्द ही है. हैदराबाद में डॉक्टर रेड्डी के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद भले ही देश में उबाल हो लेकिन मर्द होने के नाते हम सब को ‘चुल्लू भऱ पानी में डूब मरना’ चाहिए. क्योंकि साल दर साल हम महिलाओ और बच्चियों के यौन उत्पीड़न की भयावह खबरें देखते, सुनते और अब इंटरनेट पर ट्रेंड कराते हैं. लेकिन हमारे बस की कुछ नहीं है.
पिछले साल थॉमसन-रॉयटर्स फ़ाउंडेशन की तरफ़ से महिला मुद्दों पर काम करने वालीं 550 महिला विशेषज्ञों ने एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें ये बताया गया था कि भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे ख़तरनाक देश है. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत महिला सुरक्षा के मामले में युद्धग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया से भी पीछे है. महिलाओं के लिए सबसे ख़तरनाक देश भारत है और उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया है. इसके बाद सोमालिया और सऊदी अरब का नंबर है. सबसे पहले तो हमें ये समझना चाहिए कि बलात्कार क्या है.
बलात्कार की परिभाषा बदलनी होगी?
ये बात सही है कि बलात्कार वो है जब एक मर्द अपने यौन इच्छा पूरी करने के लिए किसी महिला की इच्छा के खिलाफ उसका शोषण करता है. मर्द बलात्कार इसलिए करता है कि क्योंकि वो अपनी तनावभरी उत्तेजना को किसी और इच्छा और रजामंदी के बगैर शांत करना चाहता है. लेकिन बलात्कार वो भी है जब हम किसी महिला की इच्छा के खिलाफ कोई काम करते हैं, बलात्कार वो भी है जब हम अपनी ख्वाहिशों को जबरन किसी महिला पर थोपते हैं.
अब सवाल भी मर्दाना साम्राज्य से जुड़ा है. क्या ये मर्दानगी है ? क्या ये स्त्री देह को अपनी निजी जायदाद समझना नहीं है?
बलात्कार के कई रूप सामने आ गए हैं. जबरिया ही नहीं बहला-फुसलाकर भी बलात्कार हो रहे हैं. रिश्तेदार, जानने वाले और दोस्त भी ये गंदा काम कर रहे हैं. एक चॉकलेट पर फुसल जाने वाली बच्चियों को मर्द तलाश रहे हैं. ऐसा लगता है कि मर्दों की नियत में ही बलात्कार है. गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर मर्द बड़े चालाक बनते हैं और रिश्ते में हक से बलात्कार करते हैं. हमारे समाज में ऐसे लोग भी हैं जो सरेआम बलात्कार करके समाज में इज्जत भी पाते हैं और समाज की रक्षा का जिम्मा भी उठाते हैं. कुल मिलाकर हमारे समाज में ऐसे कई किस्म के बलात्कारी मर्दों की भरमार है. जिनकी पहचान किसी को नहीं है.
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एक और चलन चल पड़ा है कि जो मर्द महिला सुरक्षा की बात करे, अहिंसा की बात करे वो नामर्द, नपुंसक, डरपोक, कायर और हंसी का पात्र बन जाता है. क्योंकि हमें लगता है कि चढ़कर मारने को ही मर्दानगी कहते हैं.
मर्दाना साम्राज्य का मर्द कितना वहशी है कि वो कोई जगह नहीं छोड़ता. सड़क पर, घर में, दफ्तर में, गांव में, शहर में, ट्रेन में, टॉयलेट में, कहीं भी मर्द बलात्कार कर रहा है.
‘मर्द को दर्द नहीं होता’ वाला डॉयलॉग तो सुना है न आपने. अब मर्द को वाकई दर्द नहीं होता किसी का. उसे बस अपनी उत्तेजना शांत करनी है वो चांहे किसी को कितना भी दर्द देकर शांत हो. क्या फर्क पड़ता है कि मर्द की मर्दानगी ने किसी को इतने गहरे जख्म दिए हैं कि वो जिंदगी भर उसे तकलीफ देते रहेंगे.
मर्द की मर्दानगी का आंकलन कैसे हो या हमें तय करना होगा. हमारे समाज में एक मर्द है जो बलात्कार करता है, दूसरा मर्द है जो उस बलात्कार पर अपनी राय रखता है कि लड़की रात में बाहर क्या कर रही थी या लड़की कपड़े कम पहने हुए थी, तीसरा मर्द वो है जिसकी बेटी या बहन बलात्कार का शिकार हुई है.
तो हम क्या करें क्या हम अपने समाज को ऐसे ही होने दें. बलात्कार और महिला हिंसा की घटना को इंटरनेट पर ट्रेंड कराकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लें. क्या हम ये मान लें कि लड़की का तो जन्म ही पुरुषों के भोग के लिए होता है. या फिर हम इन हालातों को बदलने के लिए लड़ें ? हम इस ‘मर्दाना साम्राज्य’ में महिलाओं और बच्चियों के लिए भी थोड़ी जगह छोड़ें?
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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