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अयोध्या विवाद दुश्मनी के लिए ही नहीं दोस्ती के लिए भी याद किया जाएगा

दशकों पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का सुप्रीम कोर्ट में पटाक्षेप कर दिया है. इस विवाद के चलते कई दंगे हुए, हिंदू मुसलमान के बीच दूरियां बढ़ी . लेकिन यह विवाद एक अटूट दोस्ती का भी सबब बना. इसके मुकदमे की पैरवी करने वाले दो लोगों की दोस्ती न सिर्फ अयोध्या में नहीं बल्कि इस विवाद से जुड़े हुए हर शख्स के जहन में हमेशा जिंदा रहेंगी.

जिस दोस्ती की हम बात कर रहे हैं उसमें एक हैं हिंदू पक्षकार और दूसरे हैं मुस्लिम पक्षकार. अयोध्या में दिगंबर अखाड़े के महंत रहे रामचंद्र परमहंस हिंदू पक्ष की पैरवी कर रहे थे और अयोध्या क़स्बे के रहने वाले एक सामान्य दर्जी हाशिम अंसारी मुस्लिम पक्ष की पैरवी कर रहे थे. यह दोनों एक दूसरे के ख़िलाफ़ इस मुक़दमे की आजीवन पैरवी करते रहे लेकिन कभी भी अदालत की दुश्मनी जमीन पर दिखाई नहीं दी. आपको हैरानी होगी यह जानकर कि यह दोनों जब मुकदमे की पैरवी के लिए कोर्ट जाते थे तो एक ही रिक्शे पर बैठकर जाते थे.

एक और दिलचस्प बात यह है कि रामचंद्र परमहंस और हाशिम अंसारी की मौत के बाद भी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम रही. इस सांप्रदायिक सद्भाव को न सिर्फ़ दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास और हनुमानगढ़ी के महंत स्वामी ज्ञानदास समेत तमाम साधु संतों और हाशिम अंसारी के बेटे इक़बाल अंसारी ने बनाए रखा है बल्कि इसकी वजह से पूरे अयोध्या में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द क़ायम है. 2016 में जब हाशिम अंसारी की मृत्यु के बाद उनके बेटे इक़बाल अंसारी बाबरी मस्जिद के मुख्य पक्षकार बने. इकबाल अंसारी भी हमेशा यह कहते रहे कि वह हक की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन आपस में कोई दुश्मनी नहीं है.

हाशिम अंसारी वही व्यक्ति थे जो साल 1949 में गर्भगृह में मूर्तियां रखे जाने के मामले को फ़ैज़ाबाद की ज़िला अदालत में ले गए थे जबकि उनके ख़िलाफ़ हिन्दू पक्षकार के तौर पर दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस अदालत पहुंचे और साल 1950 में उन्होंने वहां पूजा-अर्चना के लिए अर्जी दाख़िल की. आपको जानकर हैरानी होगी कि जब साल 2003 में महंत रामचंद्र परमहंस की 92 वर्ष की उम्र में मृत्यु हुई तो हाशिम अंसारी पूरी रात उनके शव के पास बैठे रहे और वह गहरे सदमे में थे. बताते हैं कि रामचंद्र परमहंस के अंतिम संस्कार के बाद ही हाशिम अंसारी अपने घर वापस गए थे और कई दिनों तक वह काफी परेशान रहे थे.

इन दोनों की दोस्ती नहीं अयोध्या विवाद के बावजूद सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखा यही कारण है कि हाशिम अंसारी के निधन के बाद उनके बेटे इकबाल अंसारी में भी अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए कभी भी हिंदू पक्ष कार और हिंदुओं से रिश्ते खराब नहीं किए. अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला अयोध्या विवाद पर आ गया है तब भी इकबाल अंसारी और हिंदू पक्षकारों के बीच कोई मनमुटाव नहीं है दोनों आपस में आपसी सद्भाव से रह रहे हैं.

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परमहंस रामचंद्रदास के मरने के बाद हाशिम अंसारी ने हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञानदास से मिलकर दोस्ती की परंपरा आगे बढ़ाई और सुलह की कोशिशों को जारी रखा. साल 2016 में 96 साल की उम्र में हाशिम अंसारी की भी मृत्यु हो गई तो उस मौक़े पर महंत ज्ञानदास ने कहा कि मैंने अपना मित्र खो दिया है.

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