अखिलेश को धोखा देकर मायावती ने बीएसपी का बंटाधार कर दिया
मायावती की बीएसपी सिर्फ 12 साल पहले विजेता बनकर उभरी थी. लेकिन अब उसकी जमीन खिसक चुकी है. यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. 2007 के बाद वह लगातार अपनी जमीन गंवा रही हैं. लोकसभा चुनाव में अखिलेश के सहारे बीएसपी ने अपनी जमीन बचाने की कोशिश की लेकिन उपचुनाव में मायावती को अपनी ताकत का अंदाजा हो गया है.
उत्तर प्रदेश की 11 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने ये साफ कर दिया है कि 2022 के चुनाव में मुकाबला बीजेपी और एसपी का होगा. मायावती ये सोच रही थीं को वो अखिलेश को धोखा देकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में नंबर दो पर आ जाएंगी लेकिन नतीजों ने बता दिया है कि जनता एसपी को ही मुख्य विपक्षी पार्टी मानती है.
बीएसपी के पास इस बार ये मौका था कि वह राज्य के प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर अपनी दावेदारी पेश करे. लेकिन इस दौड़ में वह सपा से पीछे रह गई. बीएसपी ने पिछले लोकसभा चुनाव के बाद सपा के साथ गठबंधन तोड़कर उपचुनावों में अकेले हाथ आजमाने का फैसला किया था. ऐसा लगता है कि बीएसपी का वह दांव गलत पड़ गया है क्यूंकि जनता ने मायावती को नकार दिया है.
एसपी के मुखिया अखिलेश से हाथ मिलाकर लोकसभा चुनावों में 10 सीटें जीतने वाली बीएसपी राज्य की 11 विधानसभा सीटों में एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी. इतना ही नहीं बीएसपी सिर्फ जलालपुर सीट पर ही दूसरे नंबर पर रह सकी जो कि इसके पहले उसके ही पास थी और परंपरागत रूप से जिसे बीएसपी की सीट माना जाती है. जलालपुर सीट एसपी के खाते में चली गई.
उपचुनाव में हार के लिए बीएसपी ने जो सफाई दी है, वह बेहद हास्यास्पद है और तमाम राजनीतिक तर्कों से परे है. उनका कहना है कि सपा इसलिए जीत गई क्योंकि बीजेपी ऐसा चाहती थी. उनके मुताबिक बीजेपी ने जानबूझ कर बीएसपी को हराया है. इतना ही नहीं बीएसपी के 11 में 6 प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाए. रामपुर, लखनऊ कैंट, ज़ैदपुर, गोविंदनगर, गंगोह और प्रतापगढ़ विधानसभा सीटों पर उसके प्रत्याशी बुरी गति को प्राप्त हुए.
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सीटों के मामले में ही नहीं बल्कि मत प्रतिशत के मामले में भी एसपी बीएसपी से इक्कीस साबित हुई. एसपी को 22 फीसदी वोट मिले और बीएसपी को महज 17 फीसदी वोट मिले. ये आंकड़े बताते हैं कि की जनता अखिलेश यादव को तरजीह दे रही है और अगर एसपी ने सही से चुनाव लडा को नतीजे बीजेपी और बीएसपी दोनों को धराशाई कर सकते है.
एसपी की मुख्य विपक्ष की भूमिका इस बात से भी साबित होती है कि उसके साथ गठबंधन से अलग होकर कांग्रेस भी और नीचे गिरी है, और बीएसपी भी. 7 प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने के बाद कांग्रेस इस बार केवल गंगोह और गोविंदनगर में कुछ ठीक-ठाक प्रदर्शन कर पाई. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी का केवल प्रतापगढ़ सीट को छोड़कर सभी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन रहा.