हरियाणा और महाराष्ट्र में वोटिंग हो रही है. दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. इस बार मुकाबला एक तरफा कहा जा रहा है क्योंकि शुरुआती तौर पर बीजेपी बढ़त बनाती हुई लग रही है. लेकिन नतीजों क्या आएंगे ये 24 अक्टूबर को पता चलेगा.
हरियाणा
हरियाणा में एक तरफ बीजेपी से मुख्ममंत्री मनोहर लाल खट्टर की साख दांव पर लगी है और दूसरी तरफ हैं कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा. दोनों ही नेता अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. हरियाणा में कुल 90 सीटें हैं. 2014 में बीजेपी को 47 सीटें मिलीं थी और 33.2 फीसदी वोट मिले थे. वहीं आईएनएलडी को 19 सीटें मिलीं थी और 24.1 फीसदी वोट मिले थे. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस के कहीं ज्यादा बढ़ गया और बीजेपी को 58.02 फीसदी वोट मिले. क्या इस बार बीजेपी फिर से कामयाबी दोहराएगी ये बड़ा सवाल है?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में करीब दो दर्जन दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. भाजपा और मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस बार 75 से अधिक सीटें जीतने का टारगेट लेकर चल रहे हैं क्योंकि पिछले चुनाव में बीजेपी ने 47 विधानसभा सीटें जीती थीं. इसके बाद जींद उपचुनाव भी बीजेपी ने ही जीता और राज्य में लोकसभा की सभी 10 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. इस चुनाव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अलावा उनकी कैबिनेट के 10 मंत्री ताल ठोंक रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस है जहां पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की प्रतिष्ठा दांव पर है. हुड्डा और उनके समर्थक विधायकों के जबरदस्त दबाव के चलते कांग्रेस हाईकमान अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने को तैयार हुआ. तब कुमारी सैलजा को नई अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई.
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हुड्डा व सैलजा के बीच इस चुनाव में अच्छी ट्यूनिंग नजर आई है लेकिन 24 अक्टूबर को जब नतीजे आएंगे तो वो तय करेंगे कि राज्य में कांग्रेस का भविष्य क्या है? कुमारी सैलजा चुनाव नहीं लड़ रही हैं और हुड्डा ने अपनी परंपरागत सीट गढ़ी-सांपला-किलोई से ताल ठोंकी है. हुड्डा के साथ-साथ कांग्रेस में पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला, किरण चौधरी, कैप्टन अजय सिंह यादव और कुलदीप बिश्नोपई की प्रतिष्ठा दाव पर है. सुरजेवाला कैथल, किरण तोशाम, कैप्टन अजय के बेटे चिरंजीव राव रेवाड़ी तथा कुलदीप आदमपुर से चुनाव लड़ रहे हैं. इस बार के चुनाव नतीजे कांग्रेस में पूर्व सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा का भी राजनीतिक भविष्य तय करेंगे क्योंकि हुड्डा हरियाणा में अपनी राजनीति विरासत अपने बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंपना चाहते हैं.
हरियाणा में एक राजनीतिक पार्टी बनी है. नाम है, जननायक जनता पार्टी. इसे बने अभी एक साल ही हुआ है और ये पहली बात चुनाव मैदान में है. इतने मामूली समय में इसके मुखिया दुष्यंत सिंह चौटाला ने ऊंची उड़ान भरी है. दुष्यंत चौटाला, उनकी माता नैना चौटाला व भाई दिग्विजय सिंह चौटाला तीनों ही अपनी जननायक जनता पार्टी के खुद स्टार प्रचारक रहे हैं. ताऊ देवीलाल के परिवार में हुए राजनीतिक विघटन के बाद दुष्यंत चौटाला की जजपा बनाई. ये पार्टी कैसे प्रदर्शन करती है ये देखना अहम होगा. दुष्यंत खुद उचाना और नैना चौटाला बाढड़ा से चुनाव लड़ रहे हैं. अगर लोकसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 79 पर भाजपा ने बढ़त दर्ज की थी. कुल 10 लोकसभा सीटों में से छह में भाजपा ने सभी 54 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त ली थी.
महाराष्ट्र
अब बात करते हैं महाराष्ट्र की, यहां भी बीजेपी-शिवसेना गठबंधन मजबूत है. विधानसभा की कुल 288 सीटें पर भाजपा-शिवसेना गठबंधन और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के बीच टक्कर है. हालांकि चुनाव प्रचार के मामले में बीजेपी ने बाकी पार्टी को काफी पीछे छोड़ दिया था. बीजेपी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, नितिन गडकरी जैसे कई दिग्गज नेताओं ने प्रचार किया और सावरकर को भारत रत्न देने का मुद्दा उठाया. बीजेपी ने कश्मीर और पाकिस्तान का मुद्दा भी उठाया.
महाराष्ट्र में 288 सीटों में से बीजेपी की 122, शिवसेना की 63, कांग्रेस की 42 और एनसीपी की 41 सीटें हैं. 2014 में बीजेपी 260 सीटों पर चुनाव लड़ी, वहीं शिवसेना ने 282 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, शिवसेना की सिर्फ 19.35 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस ने एनसीपी से अलग होकर 287 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस बार बीजेपी 150 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और शिवसेना 124 सीटों पर. बाकी 14 सीटें सहयोगी दलों को दी गई हैं. यह सभी भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेंगे. यहां भी मुकाबले में बीजेपी गठबंधन आगे है.
दोनों ही राज्यों में चुनाव के लिहाज से सुरक्षा के पुख्या इंतजाम किए गए हैं. भारी तादाद में फोर्स लगाया गया है. बीजेपी एक बार फिर दोनों राज्यों में सरकार बनाने की कवायद में लगी है वहीं कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली बुरी हार के बाद दर्द से उबरने में लगी है. ये अहम होगा कि जनता किसे वोट देती है क्योंकि अगर कांग्रेस की बुरी हार हुई तो कई नेताओं के राजनीतिक करियर ग्रहण लग जाएगा.