ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ से किसे क्या मिलेगा ?
अमेरिका के ह्यूस्टन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘हाउडी ह्यूस्टन‘ क्या भारत की वैश्विक स्तर पर उपस्थिति दिखाता है. या फिर ‘हाउजी मोदी’ भारत-अमरीका के बीच कारोबार को लेकर बढ़े तनाव को खत्म कर पाएगा. जब कश्मीर को लेकर बड़ी-बड़ी बयानबाजी हो रही है तब ये कार्यक्रम क्या भारत सरकार को राहत दे पाएगा.
‘हाउडी मोदी’ ह्यूस्टन के इतिहास में सबसे बड़ा राजनीतिक कार्यक्रम है इसमें कोई शक नहीं है. इस कार्यक्रम में करीब 50 हज़ार अमरीकियों के आने की उम्मीद है. साथ ही वहां ऐसा पहली बार होगा कि कोई अमरीकी राष्ट्रपति ऐसे कार्यक्रम में शामिल होंगे, जिसे राजधानी से बाहर दूसरे देश के प्रधानमंत्री संबोधित कर रहे हैं. कोशिश ये है कि इस कार्यक्रम के जरिए दोनों देशों की करीबी को दिखाया जाए. घनिष्ठ आर्थिक और सामरिक रिश्तों का प्रदर्शन किया जाए. अब यहां सवाल ये है कि हजारों लोगों के मजमें में क्या आर्थिक और सामरिक मुद्दों पर बातचीत संभव है. या फिर हकीकत वो है जो बंद कमरों में तय होता है. डिजिटल युग में कूटनीति का ये दिखावा बंद कमरे में होने वाली वास्तविक राजनीति के आगे क्या नाकाम नहीं हो जाएगा.
क्या ‘हाउडी मोदी’ का चुनाव से है मतलब?
‘हाउडी मोदी’ को दो तरह से समझ सकते हैं. एक, अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और यहां करीब 20 फीसदी एशियाई रहते हैं जिनका झुकाव डेमोक्रेट्स की तरफ है. ऐसे में अमरीका में दूसरे वर्गों से ज़्यादा तेजी से बड़ रहे एशियाई समुदाय से मिलने वाले फ़ायदे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इस एशियाई समुदाय में भारतीय मूल के लोगों की भी अच्छी खासी संख्या है. ट्रंप की कोशिश है कि अगर इस समुदाय का झुकाव रिपब्लिकन पार्टी की तरफ हो गया तो उनको फायदा होगा. बात भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करें तो उन्हें ट्रंप की बहुत जरूरत है. भारत में विश्व पटल पर छा जाने वाले नेता की छवि और जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद एक ताकतवर मुल्क को अपने साथ खड़ा दिखाने की कोशिश इन दोनों में मोदी कामायाबी चाहते हैं.
अर्थव्यवस्था को क्या कोई फायदा होगा?
देखिए इसनें कोई दोराय नहीं है कि अपने हितों को देखते द्विपक्षीय संबंध ही आज की सच्चाई हैं. एक तरफ चीन-अमेरिका के बीच छिड़े ट्रेड वॉर में भी नरमी बरती गई है क्योंकि दोनों की आर्थिक हालात खराब होने लगी थी. डाटा सुरक्षा क़ानून को लेकर तनातनी के बावजूद भी दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश अब भी जारी है. उधर भारत में अर्थव्यवस्था को लेकर घिरी मोदी सरकार से भी लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अच्छे दिन आएंगे. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उम्मीदें और आकांक्षाएं पैदा करने की जबरदस्त क्षमता दिखाई है. लेकिन क्या अमेरिका और भारत के बीच आर्थिक मोर्चे पर तनाव को खत्म कर सकते हैं. ‘हाउडी मोदी’ में भारत और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष अपने-अपने हिसाब से गोटियां सैट करेंगे. लेकिन इसका नतीजा इसपर निर्भर करेगा कि दोनों नेता क्या चुनते हैं.