यूपी में चरम पर भ्रष्टाचार, ठेकेदार बता रहे हैं विभागों की सच्चाई

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यूपी में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का दावा करने वाली योगी सरकार में हाल बुरा है. लोक निर्माण और सिंचाई जैसे विभागों में हर स्तर पर लूट मची है.

  1. वाराणसी में पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर अंबिका सिंह के कक्ष में एक ठेकेदार ने खुद को गोली मार ली. ठेकेदार अवधेश श्रीवास्तव की कार से पुलिस को एक नोट मिला जिसमें इंजीनियर अंबिका सिंह पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए थे.
  2. लखनऊ में लोकभवन यानी मुख्यमंत्री सचिवालय और विधान भवन के सामने एक ठेकेदार ने आत्मदाह का प्रयास किया. ठेकेदार वीरेन्द्र कुमार रस्तोगी  ने खुद पर केरोसिन डाल लिया और आत्महत्या की कोशिश की. सीतापुर के ठेकेदार रस्तोगी का मामला भी अभियन्ताओं के भ्रष्टाचार से ही जुड़ा है.

हाल के दिनों में ये दो घटनाएं तब ही हैं जब बीते महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था. हैरानी इस बात की है जब पीएम ने भ्रष्टाचार को खत्म करने की बात की तो उन्हीं के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक ठेकेदार ने पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर अंबिका सिंह के कक्ष में ही खुद को गोली मारकर जीवन लीला खत्म कर ली. ठेकेदार ने 6 पन्नों का जो सुसाइड नोट लिखा उसमें कई इंजीनियरों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाने के साथ चार करोड़ के बकाए का भुगतान न होना भी आत्महत्या की वजह बताया गया है.  

वाराणसी में आत्महत्या करने से पहले ठेकेदार ने चीफ इंजीनियर से कहा था कि बकाया भुगतान कर दीजिए. लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो ठेकेदार ने खुद प्रताड़ित महसूस करते हुए गोली मार ली. सूसाइड नोट में अवधेश श्रीवास्तव ने लिखा था,

‘पीडब्ल्यूडी के अफसरों के शोषण के कारण आर्थिक तंगी के दौर में पत्नी के गहने गिरवी रखकर भी काम करता रहा लेकिन अब हिम्मत टूट गई है. इसलिए आत्महत्या कर रहा हूं. मौत की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की है.’

सुसाइड नोट में ठेकेदार अवधेश ने आरोप लगाए थे कि उनके ऊपर बार-बार ड्रॉइंग और नक्शे बदलने और ज्यादा कमीशन के लिए दबाव बनाया जा रहा है. किये गए कार्य के बारे में मुख्यमंत्री के चाणक्य ऐप पर जानकारी अपलोड न करने और ब्लेकलिस्ट कर देने की धमकी देकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है. सुसाइड में नोट में काफी विस्तार से पीडब्ल्यूडी विभाग के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में लिखा गया है. ठेकेदार ने लिखा है कि आप्रवासी भारतीय सम्मेलन, जिलाधिकारी आवास और सर्किट हाऊस के निर्माण कार्य के लिए उन्हें पांच करोड़ का भुगतान भी नहीं कराया गया. उन्होंने चीफ इंजीनियर के अलावा सहायक अभियंता आशुतोष सिंह और अवर अभियन्ता मनोज कुमार सिंह पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि वाराणसी में जमकर कमीशनखोरी होती है.

लोकभवन के आगे ठेकेदार ने की आत्मदाह की कोशिश

वाराणसी में एक ठेकेदार की आत्महत्या से पहले प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी सीतापुर का एक ठेकेदार इस तरह की कोशिश कर चुका था. लखनऊ में लोकभवन और विधान भवन के सामने ठेकेदार वीरेन्द्र कुमार रस्तोगी  ने खुद पर केरोसिन डालकर आत्महत्या करने की कोशिश की. हालांकि उन्हें बचा लिया गया लेकिन उन्होंने चीख चीखकर बताया की वो भ्रष्टाचार से परेशान हैं. उनका आरोप है कि उन्होंने निर्माण निगम से मथुरा में शटरिंग का ठेका लिया था. लेकिन रिश्वत न दे पाने के कारण उन्हें 40 लाख रुपयों का भुगतान नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सीएम योगी से लेकर सभी बड़े अधिकारियों को उन्होंने इस बारे में बताया है लेकिन सुनवाई नहीं हुई.

ठेकेदार वीरेन्द्र कुमार ने 21 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर आत्मदाह करने की जानकारी भी दी थी. उस पत्र में उन्होंने लिखा था कि, ‘5 अगस्त को निर्माण निगम ने भुगतान के लिए 15 दिन का समय मांगा था. वह समय भी पूरा हो चुका है, मगर भुगतान की कोई बात नहीं हुई. अतः अब वह 27 अगस्त को लखनऊ में विधान भवन के सामने आत्मदाह करेगा. इसकी पूरी जिम्मेदारी शासन व राजकीय निर्माण निगम की होगी.’

उप मुख्यमंत्री के नाम पर हो रही वसूली’

वाराणसी और लखनऊ की घटनाओं से पहले राज्य के सरकारी विभागों में ठेकेदारी से जुड़े भ्रष्टाचार के कई मामले में सामने आए थे. इसी साल मार्च में पीडब्ल्यूडी के एक ठेकेदार राजेन्द्र यादव ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर धन वसूले जाने का आरोप लगाया था. ठेकेदार राजेंद्र यादव ने एक अवर अभियंता का अपहरण कर लिया और उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि इस अभियंता ने काम दिलवाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर उससे 20 लाख रूपये वसूले थे.

इस मामले में राजेन्द्र यादव और अभियन्ता पंकज यादव के खिलाफ तो मुकदमा चल रहा है लेकिन केशव प्रसाद मौर्य का नाम रिश्वतखोरी में क्यों आया इस पर कोई भी जांच तक नहीं बिठाई गई. सिर्फ इतना ही नहीं इस भ्रष्टाचार के चलते ही लोकसभा चुनाव से पहले लखनऊ में ठेकेदारों ने पीडब्ल्यूडी मुख्यालय पर प्रदर्शन किया था. ये सब घटनाएं ये बताती है कि यूपी में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात तो करती है लेकिन अमल में नहीं लाती.

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भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके सिंचाई, स्वास्थ्य और लोक निर्माण जैसे विभागों में ई-टेंडरिंग प्रणाली की शुरूआत होने के बाद भी इस तरह के मामले में सामने आ रहे हैं. मंत्रियों को भी भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए हिदायतें दी गईं लेकिन राज्य में भ्रष्ट तंत्र की जड़ें उखड़ नहीं रहीं. बात सिर्फ अधिकारियों की नहीं हैं. अभी हुए मंत्रीमंडल विस्तार में जिन मंत्रियों के इस्तीफे लिए गए और जिनके महत्वपूर्ण विभाग छीने गए उन सभी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे.

सच्चाई ये है कि सरकार ने ई-टेंडरिंग की जो व्यवस्था की थी उस पर भी भ्रष्ट तंत्र और ठेकेदार-इंजीनियरों के गठजोड़ ने पार पा लिया है. ठेकेदारी से जुड़े कामों में ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच कट और कमीशन का खुला खेल चल रहा है. क्योंकि पांच लाख तक के काम बिना ई-टेंडरिंग के करवाए जा सकते हैं तो ऐसे में भ्रष्टाचारियों की सुविधा के लिए बड़े कार्यो को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट दिया जाता है. यूपी में भ्रष्टाचार का आलम ये है कि कमीशन खोरी 50 फीसदी तक पहुंच चुकी है. कुछ मामलों में तो 65 प्रतिशत तक कमीशन खोरी होती है.

यूपी में भ्रष्टाचार कैसे होता है ?

ई-टेंडरिंग में कैसे भ्रष्टाचार होता है. ये भी समझ लीजिए. ई-टेंडरिंग प्रणाली में पारदर्शिता नहीं है. अधिकारी अपने चहेतों को काम देने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं. जैसे ई-टेंडर प्रक्रिया को बार-बार रद्द की जाती है, शर्तें जोड़ी जाती है. भुगतान रोक दिए जाते हैं. अब पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में 100 से ज्यादा ठेकेदारों 30 करोड़ से ज्यादा का भुगतान नहीं हुआ. जनवरी में हुए प्रवासी भारतीय सम्मेलन में जो काम कराए गए उसके पूरे भुगतान नहीं हुए हैं. प्रयाग कुम्भ के लिए आकस्मिक तौर पर कराए गए 12 करोड़ से ज्यादा के कामों के लिए ठेकेदार सिंचाई विभाग के मंत्री से लेकर शासन तक गुहार लगा चुके हैं. सड़क निर्माण और बिजली विभाग के भुगतानों के लिए तो ठेकेदार चक्कर काट रहे हैं.

किरकिरी होने के बाद सक्रिय हुई सरकार

वाराणसी में ठेकेदार की आत्महत्या और लखनऊ में आत्मदाह की कोशिश के बाद रूके हुए भुगतान के लिए आनन-फानन में फाइलें दौड़ने लगी हैं और अधिकारी अपनी गर्दन बचाने के लिए दूसरों पर जिम्मेदारियां डालने लग गए हैं. सीतापुर वाले मामले में अधिकारियों पर कार्रवाई हो गई है. वाराणसी के मामले में एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी कर्मचारी नपे हैं. अवधेश श्रीवास्तव आत्महत्या मामले में 8 लोगों के खिलाफ FIR हुई है. इन सब के बावजूद भी यूपी में भ्रष्टाचार चरम पर है. और इसको खत्म करने की दिशा में कोई पुख्ता कदम अभी तक कारगर नहीं हुआ है.

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