अयोध्या जमीन विवाद : 155 दिन बेकार, मध्यस्थता से नहीं सुलझा मसला
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद को सुलझाने के लिए जो मध्यस्थता पैनल गठित किया था उसने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. गुरुवार को पैनल एक बंद लिफाफे में ये रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को दी. 155 दिनों तक की गई मध्यस्थता के बाद भी ये मसला नहीं सुलझा है.
अयोध्या विवाद को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट गंभीर है. और इसके लिए गठित किए गए मध्यस्थता पैनल ने अपनी आखिरी रिपोर्ट तैयार कर ली है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को पैनल बंद लिफाफे में अंतिम रिपोर्ट सौंप दी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 11 जुलाई को एक याचिका पर पैनल से यह रिपोर्ट मांगी थी. सभी पक्षों के बीच सोमवार को दिल्ली स्थित उत्तर प्रदेश सदन में आखिरी मीटिंग हुई थी.
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी थी कि इस रिपोर्ट में क्या है. इससे पहले 18 जुलाई को मध्यस्थता पैनल ने कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट सौंपी थी. तब सीजेआई ने कहा था कि,
‘अभी मध्यस्थता की रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर नहीं लिया जा रहा, क्योंकि ये गोपनीय है. पैनल जल्द अंतिम रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दे. अगर इसमें कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला तो हम 2 अगस्त को रोजाना सुनवाई पर विचार करेंगे. उसी दिन सुनवाई को लेकर आगे के मुद्दों और दस्तावेजों के अनुवाद की खामियों को चिन्हित की जाएंगी’
मध्यस्थता पैनल ने जो रिपोर्ट तैयार की है उससे सकारात्मक परिणाम नहीं निकले. क्योंकि इससे पहले याचिकाकर्ता ने कहा था कि मध्यस्थता पैनल से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहा है. इसलिए कोर्ट को जल्द फैसले के लिए रोज सुनवाई पर विचार करना चाहिए. अब रिपोर्ट देखने के बाद पीठ आगे की कार्रवाई शुरु करेगी.
स्टेटस रिपोर्ट देखने बाद ही तय किया जाएगा कि अयोध्या मामले की सुनवाई रोजाना की जाए या नहीं. अयोध्या विवाद में पक्षकार गोपाल सिंह विशारद की याचिका और जल्द सुनवाई का निर्मोही अखाड़ा ने भी समर्थन किया. अखाड़ा ने कहा था कि मध्यस्थता प्रकिया सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रही है.
आपको बता दें कि 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. और इन याचिकाओं पर जल्द फैसले का इंतजार सभी को है. अयोध्या जमीन विवाद में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था- अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए. पहला-सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला लेकिन इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सभी पक्ष चले गए और तब से ये मामला लंबित है.