कांग्रेस ने बिगाड़ दिया माया-अखिलेश का खेल ?

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MAYA AKHILESH

लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और नतीजों ने अखिलेश यादव को एक सबक दिया है. लोकसभा चुनावों से पहले और नतीजों से पहले तक इस बात की चर्चा थी कि अगर यूपी में कांग्रेस सपा-बसपा-रालोद के महागठबंधन में शामिल होती तो नतीजों पर असर पड़ सकता था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं इसके पीछे क्या कांग्रेस की कोई भूमिका है.

यूपी की 80 सीटों में से 62 सीटें बीजेपी और 2 सीटें उसके सहयोगी दल अपना दल ने जीती हैं. वहीं सपा बसपा गठबधंन को 15 सीटें मिलीं हैं. पांच सीटे सपा और 10 सीटें बसपा को मिली हैं. रालोद एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई. वहीं कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस सिर्फ 1 सीट जीत सकी. कांग्रेस ने यूपी में अमेठी की सीट गंवा दी. नतीजे आने के बाद ये आंकलन किया जा रहा है कि अगर सपा-बसपा कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ते तो क्या महागठबंधन को फायदा होगा. इसको आप कुछ आकंड़ों से समझ सकते हैं.

मिलकर लड़ते तो पांच सीटें और जीत जाता गठबंधन

नतीजों के बाद हुए आकंलन में ये कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस का साथ मिलता तो महागठबंधन को कम से कम पांच सीटों पर बढ़त हासिल थी. वहीं शिवपाल यादव और सुभासपा भी मिल जाते तो कम से कम दो सीटों का और फायदा होगा. कुछ सीटें ऐसी हैं जहां पर मार्जिन से ज्यादा कांग्रेस को वोट मिले हैं. जैसे पश्चिमी यूपी की मेरठ सीट की बात करें तो यहां बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा उम्मीदवार हाजी ममोहम्मद याक़ूब को 4,729 वोटों से हराया. यहां कांग्रेस के उम्मीदवार हरेंद्र अग्रवाल को 34,479 (2.83%) वोट मिले हैं. यानी कांग्रेस समेत महागठबंधन का वोट प्रतिशत 50% से अधिक था.

इसी तरह पूर्वी यूपी की संतकबीर नगर से बीजेपी के प्रवीन कुमार निषाद ने बसपा के भीष्म शंकर को 35,749 वोटों से हराया है और यहां कांग्रेस के उम्मीदवार भाल चंद्र यादव को 1,28,506 (12.08%) वोट मिले. महागठबंधन और कांग्रेस के उम्मीदवार का संयुक्त वोट प्रतिशत 52.69 रहा. अगर मिलकर लड़ते तो ये सीट भी बीजेपी से छीनी जा सकती थी. इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर सीट पर केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का मुकाबला बीएसपी उम्मीदवार चंद्र भद्र सिंह से था. इस सीट पर जीत का अंतर 14,526 था जबकि यहां के कांग्रेस उम्मीदवार संजय सिंह को 41,681 वोट मिले. गठबंधन और कांग्रेस का संयुक्त वोट प्रतिशत 48.62% रहा.

बदायूं सीट की बात करें तो यहां बीजेपी के संघमित्रा मौर्य को 5,11,352 (47.38%), समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र को 4,92,898 (45.59%) और कांग्रेस के उम्मीदवार सलीम इक़बाल शेरवानी को 51947 (4.88%) वोट मिले. जीत का अंतर 18,454 रहा जबकि महागठबंधन और कांग्रेस का संयुक्त वोट प्रतिशत 50.47 रहा. बलिया में भी कमोवेश ऐसे ही हालात रहे क्योंकि यहां पर बीजेपी के हरीश द्विवेदी ने क़रीबी मुकाबले में बसपा के राम प्रसाद चौधरी को 30,354 वोटों से हराया. कांग्रेस के उम्मीदवार राज किशोर सिंह को यहां 86,9,20 यानी कुल 8.24% वोट मिले. तो अगर गठबंधन और कांग्रेस को वोट शेयर मिला दें तो संयुक्त वोट प्रतिशत 50.12 रहा.

शिवपाल और राजभर की क्या भूमिका?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के पास की सीट चंदौली में महागठबंधन का खेल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने बिगाड़ा. यहां से बीजेपी के महेंद्रनाथ पांडे को 5,10,733 (47.07%) और समाजवादी पार्टी के संजय सिंह चौहान को 4,96774 (45.79%) वोट मिले. जबकि सुहेलदेव पार्टी के रामगोविंद को 18,985 (1.75%) वोट मिले. अगर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का साथ मिलता तो ये सीट महागठबंधन की होती. फिरोजाबाद में शिवपाल यादव, बीजेपी के चंद्र सेन जादोन और समाजवादी पार्टी के अक्षय यादव थे और जहां बीजेपी ने सपा को 28,781 वोटों से हराया. शिवपाल यादव को यहां 91869 (8.54%) वोट मिले. यूपी में 29 सीटें ऐसी रहीं जहां पर जीत का अंतर एक लाख से कम रहा है. सबसे कम अंतर मछलीशहर में रहा जहां बीजेपी के भोलानाथ ने बसपा के त्रिभुवन राम को 181 वोटों के अंतर से हराया. यूपी में सबसे बड़े अंतर से गाजियाबार से वीके सिंह जीते जिन्हें करीब 5 लाख वोटों से जीत मिली. दूसरे नंबर पर फतेहपुर सीकरी से राजबब्बर रहे जिन्हें बीजेपी के राजकुमार चहर ने 4.95 लाख से ज्यादा वोटों से हराया.

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