कन्नौज : अखिलेश के नव समाजवाद की परीक्षा
कन्नौज में आज सियासी सिक्का किसका चलेगा, कौन बनेगा कन्नौज का सांसद, ये साल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि पीएम मोदी और सपा मुखिया अखिलेश यादव दोनों ही नेता कन्नौज को लेकर पूरी ताकत झोंक रहे हैं. शनिवार को कन्नौज में मोदी ने भी रैली की और अखिलेश भी अपनी पत्नी डिंपल के साथ वोट मांगते हुए नजर आए.
इत्र से महकती कन्नौज की माटी दशकों से समाजवादियों को अपनी खुशबू से सराबोर करती आई है. प्रयोगधर्मिता के लिहाज से समाजवाद के पैरोकारों ने कन्नौज में 50 साल के दौरान तमाम ‘प्रयोग’ कर डाले और कामयाबी भी हासिल की है. लेकिन क्या इस बार अखिलेश यादव यहां अपनी पत्नी को जीत दिला पाएंगे.
यहां यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथ में आने के बाद ना सिर्फ समाजवाद को नई परिभाषा मिली बल्कि उसकी चाल, चरित्र और चिंतन में भी बदलाव आया और अब इस लोकसभा चुनाव में ‘अखिलेश के ‘नव समाजवाद’ का ‘लिटमस टेस्ट’ होगा.
अखिलेश यादव ने उठाया आवारा पशुओं का मुद्दा
चुनाव प्रचार के दौरा अखिलेश यादव ने आवारा मवेशियों का मुद्दा उठाया, उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि आवारा मवेशियों को लेकर सरकार क्या कर रही है यहां देखिए.
अखिलेश ने की नव समाजवाद की शुरुआत
अखिलेश ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कन्नौज से ही की थी और बीते दो दशक से वह निरंतर कन्नौज की नुमाइंदगी किसी ना किसी रूप में करते रहे . 1963 में यहां से लोहिया ने लोकसभा का चुनाव जीता था. उस वक्त कन्नौज फर्रूखाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा हुआ करता थी. 1967 में जब पहली बार कन्नौज लोकसभा सीट बनी तो लोहिया ने आम चुनाव में कन्नौज से ही दोबारा चुनाव जीता और उस दौर में कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया. लोहिया ने ही इस इलाके में समाजवाद का नया बीज बोया था.
इस बार है कांटे का मुकाबला
2014 में बीजेपी के सुब्रत पाठक ने यहां से डिंपल के खिलाफ जबरदस्त चुनाव लड़ा था. पाठक पिछली बार अखिलेश की पत्नी और एसपी प्रत्याशी डिम्पल यादव से 20 हजार से भी कम वोटों से हारे थे, जो इस बार बदली हुई परिस्थितियों में उनके ‘असेट’ (पूंजी) के रूप में देखा जा रहा है. आपको बता दें कि 1996 में चंद्रभूषण सिंह ने यहां से बीजेपी के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था उसके बाद से यहां पर सपा का कब्जा रहा है. 2014 ही नहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में से चार पर बीजेपी ने कब्जा किया था. तो क्या इस बार बीजेपी यहां से डिंपल यादव को हरा सकती है. कन्नौज में लगभग 35 फीसदी मुस्लिम, 16 फीसदी यादव और 15 फीसदी ब्राहमण तथा 10 फीसदी अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के अलावा सात फीसदी क्षत्रीय वोटर हैं. यहां सपा के साथ ‘माई’ फैक्टर रहता है. जिसमें मुस्लिम और यादव वोट है.