पूर्वांचल की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट पर सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों के नाम का एलान कर दिया है. बीजेपी की ओर से खुद पीएम मोदी, कांग्रेस की टिकट पर अजय राय और गठबंधन ने शालिनी यादव को मैदान में उतारा है. उम्मीदवारों के नाम का एलान होने के बाद ये भी स्पष्ट हो गया कि बनारस में मोदी बनाम प्रियंका नहीं होगा.
राजनीति में घारणाओं की लड़ाई जीतना भी जरूरी होता है. बनारस में ये आम धारणा बन गई है कि यहां से पीएम मोदी को हराना मुमकिन नहीं है. अगर प्रियंका इस धारणा को खत्म करने के इरादे से बनारस से चुनाव लड़ती तो क्या होता ? अब ये सवाल पूछा जाने लगा है. और लोग तो ये भी पूछ रहे हैं कि क्या ये कांग्रेस की बड़ी गलती है ?
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अगर लड़ना नहीं था तो सस्पेंस क्यों बनाया ?
पिछले कई दिनों प्रियंका गांधी के बनारस से चुनाव लड़ने को लेकर सस्पेंस चला आ रहा था. लेकिन कांग्रेस ने इस लोकसभा सीट से अजय राय को एक बार फिर से टिकट दे दिया है. पिछली बार भी कांग्रेस ने अजय राय को आखिर में भी टिकट दिया उस चुनाव में वो बुरी तरह हारे थे. 2014 में मोदी को बनारस में 581,022 वोट, आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को 209,238 वोट और कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय को सिर्फ 75,614 वोट मिले थे.
क्या कांग्रेस 2014 के परिणाम से घबरा गई ? अगर ऐसा है तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कई मौकों पर ये क्यों कहा कि वो बनारस से चुनाव लड़ना चाहती हैं. अगर ऐसा है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी बीते दिनों चुटकी लेते हुए क्यों कहा था कि वे प्रियंका गांधी को लेकर सस्पेंस बनाए रखना चाहते हैं. कयोंकि अगर आखिर में पार्टी ने अजय राय पर ही दांव लगाना था तो फिर संस्पेस क्यों बनाया गया. इसके पीछे कारण चांहे जो भी हो लेकिन कहा ये जा रहा है कि प्रियंका बनारस से चुनाव लड़ें या ना लड़े इसको लेकर पार्टी में दो धड़े बन गए थे.
एक धड़े की राय थी कि अगर प्रियंका यहां से चुनावी मैदान में उतरती हैं तो सपा-बसपा महागठबंधन पर उम्मीदवार वापस लेने का दबाव पैदा होगा. इन लोगों को यह भी लग रहा था कि प्रियंका की उम्मीदवारी की स्थिति में कुछ और छोटे दल अपने उम्मीदवार वापस ले लेंगे ताकि मुकाबला सीधा नरेंद्र मोदी और प्रियंका गांधी के बीच हो. दूसरी तरफ, कांग्रेस के अंदर ही एक दूसरा धड़ा प्रियंका गांधी के वाराणसी से उतरने के खिलाफ था. उसकी राय थी कि अगर प्रियंका चुनाव लड़ेंगी तो इससे नरेंद्र मोदी बनाम प्रियंका गांधी का राजनीतिक विमर्श न सिर्फ वाराणसी बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी शुरू हो सकता है.
दूसरे पक्ष के लोगों को मानना था कि अगर ऐसा हुआ तो लोगों के मन में बीजेपी ने जो धारणा बैठा दी है कि नरेंद्र मोदी के विकल्प राहुल गांधी नहीं हो सकते, उन्हें प्रियंका गांधी के तौर पर नया विकल्प मिल जाता. और राहुल गांधी को लेकर जो सवाल लोगों के दिमाग में हैं वो बने रहते. लेकिन यहां एक मत ये भी है कि प्रियंका गांधी ये कतई नहीं चाहेंगी वो ऐसी सीट से चुनाव लड़ें जो उनके हारने की संभावना हो लिहाजा उन्होंने मैदान छोड़ दिया.
आंतरिक सर्वे में हार रही थीं प्रियंका गांधी
खबर तो ये भी है कांग्रेस ने मोदी को टक्कर देने के लिए प्रियंका पर दांव खेलने की योजना बनाई थी. लेकिन जब पार्टी ने आंतरिक सर्वे कराया तो पता ये चला कि अगर कांग्रेस पूजा जोर लगा दे तो भी वोटों का आंकड़ा साढ़े तीन लाख के पार नहीं जा रहा था. ये सर्वे पूरे बनारस में करीब दो हफ्ते तक चला था. अब जब बनारस में करीब 15 लाख वोटर है और मुस्लिम वोटर ही करीब 3 लाख है. दूसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटरों का नंबर आता है जिनकी संख्या पौने तीन लाख के करीब है. इसके अलावा वाराणसी लोकसभा सीट पर दो लाख वैश्य, डेढ़ लाख कुर्मी, डेढ़ लाख यादव, डेढ़ लाख भूमिहार, 65 हजार कायस्थ और 80 हजार चौरसिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मतदाता हैं. दलित वोटरों की संख्या भी 80 हजार के आसपास है.
सर्वे के मुताबिक कांग्रेस सोच रही थी कि अगर सपा-बसपा महागठबंधन यहां उम्मीदवार न उतारे तो मुस्लिम समुदाय के दो लाख वोट प्रियंका गांधी को मिल जाएंगे. इसके अलावा अंदाजा लगाया जा रहा था कि बाकी समुदायों के मिलाकर डेढ़ लाख वोट पार्टी के खाते में आ सकते हैं. लेकिन सपा-बसपा महागठबंधन ने यहां से शालिनी यादव को उतार दिया. ऐसे में कांग्रेस के लिए समीकरण और मुश्किल हो गए. यहां यह भी याद रखना जरूरी है कि फिलहाल वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली पांचों विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास एक भी नहीं है.
2014 के चुनाव को देखें तो मोदी को 2014 में करीब 6 लाख वोट मिले थे. और कांग्रेस के सर्वे में भी ये साफ हो रहा था कि वो इस बार पिछली बार से ज्यादा वोट हासिल करेंगे. ऐसे में प्रियंका का यहां से चुनाव लड़ना घाटे का सौदा होता.