अगर आप कहीं नौकरी करते हैं. तो आप जानते होंगे कि रोस्टर का मतलब क्या होता है…लेकिन फिर भी आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रोस्टर से ये तय होता है कि आपको किस दिन, किस शिफ्ट में काम पर आना है और किसी दिन आपको छुट्टी दी जाएगी. ये सब रोस्टर से तय होता है. अब आप सोच रहे होंगे कि अगर रोस्टर का ये काम है तो फिर आजकल इसको लेकर आंदोलन क्यों हो रहा है. तो चलिए इसे समझने की कोशिश करते हैं.
सैकड़ों की तादाद में लोग सड़कों और रेलवे लाइन पर जमा हो गए हैं और एक सुर में 13 पॉइंट रोस्टर का विरोध कर रहे हैं…13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर एसटी, एससी और ओबीसी वर्ग में ज्यादा नाराजगी है क्योंकि सबसे ज्यादा यही लोग सरकार के मौजूदा फैसले से प्रभावित हो रहे हैं. विरोध कर रहे लोगों की मांग है कि सरकार इसमें हस्तक्षेप करके इसमें बदलाव करे.
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क्या है 13 प्वाइंट रोस्टर ?
13 प्वाइंट रोस्टर वो प्रणाली है जिससे यनिवर्सिटी में शिक्षकों की नियुक्तियां की जानी हैं. 13 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली यानी ऐसा रजिस्टर बनाना जिसमें 13 नियुक्तियों को सिलसिलेवार तरीके से दर्ज करना होगा. यानी अगर किसी विभाग में चार भर्तियां होनी हैं तो शुरुआती तीन स्थानों को सामान्य वर्ग और चौथे स्थान को ओबीसी दर्ज करना होगा. जब अगली वैकेंसी आएगी तो ये संख्या एक से न शुरू होकर पाँच से शुरू होगी और इसे रजिस्टर में दर्ज करना होगा इसी प्रक्रिया को 13 प्वाइंट तक करना होगा. इस प्रणाली के विरोध में शिक्षकों का बड़ा वर्ग हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे हैं. हालांकि सरकार का कहना है कि वो इसको लेकर विचार करेगा लेकिन शिक्षकों को लग रहा है कि इससे कुछ होना जाना नहीं है. कई राज्यों में आदिवासी समूहों और दलितों को भारत बंद इसलिए करना पड़ा क्योंकि उन्हें ये महसूस हो गया था कि अब बात हाथ से निकल गई है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी, सपा, जैसी पार्टियों और संगठनों ने भारत बंद का एलान किया है. भारत बंद की प्रमुख मांगों में
- 13 प्वाइंट रोस्टर की जगह 200 प्वाइंट रोस्टर लागू करने
- सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रद्द करने
- आरक्षण की अवधारणा बदलकर संविधान पर हमले बंद करने
- देश भर में 24 लाख खाली पदों को भरने
- लगभग 20 लाख आदिवासी परिवारों को वनभूमि से बेदखल करने के आदेश को पूरी तरह निरस्त करने
- 2 अप्रैल 2018 के भारत बंद के दौरान बंद समर्थकों पर दर्ज मुकदमें और रासुका हटाने
जैसी मांगे शामिल हैं…इस बंद में आरएसएस से जुड़े अध्यापकों के एक संगठन एनडीटीएफ़ (नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ़्रन्ट) का भी कहना है कि 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम से ही नियुक्तियां होनी चाहिए, जैसा कि अब तक होता आया है…पहले अध्यापकों की नियुक्ति के लिए यूनिवर्सिटी को एक इकाई के तौर पर माना जाता था और आरक्षण के हिसाब से शिक्षकों को नियुक्तियां दी जाती थीं. लेकिन 13 प्वाइंट रोस्टर से यूनिवर्सिटी में अध्यापकों की नियुक्ति विभागीय आधार पर की जाएगी. पहले नियुक्तियां 200 प्वाइंट रोस्टर के आधार पर की जाती थीं लेकिन अब इसे 13 प्वाइंट रोस्टर बना दिया गया है जिसे ‘एल शेप’ रोस्टर भी कहते हैं.
- इलाहाबाद HC ने 2017 में संस्थान के आधार पर आरक्षण निर्धारित करने के सर्कुलर को ख़ारिज किया
- हाई कोर्ट ने कहा यूनिवर्सिटी में शिक्षकों की नियुक्ति 13 प्वाइंट रोस्टर के आधार पर हो
- सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को जारी रखा, सरकार ने फैसला लागू किया
13 प्वाइंट रोस्टर से पहले यूनिवर्सिटी और कॉलेज को यूनिट मानकर आरक्षण दिया जाता था और ये 200 प्वाइंट रोस्टर था…इसमें एक से लेकर 200 प्वाइंट तक जाते थे…इसको आप ऐसे समझ सकते हैं कि कि पहला पद जनरल है, दूसरा पद जनरल है, तीसरा पद जनरल है तो चौथा पद ओबीसी के लिए आरक्षित हो जाएगा और इसी तरह आगे के भी आरक्षण निर्धारित हो जाते थे लेकिन 13 प्वाइंट रोस्टर में सीमा कम हो गई है और ये सिर्फ 13 प्वाइंट तक जा सकते हैं और इस वजह से आरक्षण पूरा नहीं हो पाता…शिक्षकों को कहना है कि इससे सीधे सीधे आरक्षित वर्ग को नुकसान हो रहा है जो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 13 प्वाइंट रोस्टर की वजह से रिज़र्व कैटेगरी की सीटें कम हो रही हैं और इसका सबसे ज्यादा असर उन विभागों पर पड़ेगा जो काफी छोटे हैं. जो लोग आंदोलन कर रहे हैं उनका कहना है कि 200 प्वाइंट रोस्टर को ख़त्म करके 13 प्वाइंट रोस्टर लाया जाना आरक्षण के लिए ख़तरा है.
- 200 पर्सेंट या प्वाइंट रोस्टर सिस्टम में 49.5% आरक्षित और 50.5% पद अनारक्षित थे
- 13 प्वाइंट रोस्टर आ जाने के बाद अब सभी आरक्षित पदों को पूरा नहीं किया जा सकता
- शुरू के तीन पद अनारक्षित होंगे और इसके बाद चौथा पद ओबीसी को जाएगा
- इसके बाद सातवां पद एससी को मिलेगा, फिर आठवां पद ओबीसी को मिलेगा
- विभाग में 14 वां पद आता है तब जाकर वो एसटी को मिलेगा, यानी एसटी को नुकसान है
कहा ये जा रहा है कि 13 प्वाइंट रोस्टर को ईमानदारी से लागू कर भी दिया जाए तो भी रिज़र्व कैटेगरी को 30 % ही संतुष्ट कर पाएंगे जबकि अभी केंद्र सरकार में 49.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. यहां एक और पेंच ये है कि इंटर-डिसीप्लीनरी कोर्सेज़ की संख्या बढ़ने की वजह से विभाग छोटे हो गए हैं और छोटे विभागों में आरक्षित सीटों आएंगी ही नहीं. 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर शिक्षक भी बंटे हुए हैं…आरक्षित वर्ग जहां इसका विरोध कर रहा है वहीं एक वर्ग इसके पक्ष में भी है. दिल्ली विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन का तो ये कहना है कि 13 प्वाइंट रोस्टर ना सिर्फ आरक्षित वर्ग के लिए नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि उन सैकड़ों अस्थाई शिक्षकों के लिए भी मुसीबत बन गया है जिन्होंने 200 प्वाइंट रोस्टर के आधार पर ज्वाइन किया था.
कैसे आया था रोस्टर ?
यूपीए के कार्यकाल में उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण लागू करने का मामला उठा था. इस मामले में सरकार ने यूजीसी को एक चिट्ठी लिखकर आरक्षण के नियमों को स्पष्ट करने कि लिए कहा. इसके बाद प्रोफ़ेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई और 200 प्वाइंट रोस्टर अस्तित्व में आया. इस रोस्टर में यूनिट विश्वविद्यालय को बनाया गया और उसी आधार पर आरक्षण लागू हुआ. इसका उद्देश्य ये था कि जितने प्रतिशत आरक्षण के लिए निर्धारित किए गए हैं उनका पालन हो सके.
इसके मुताबिक जब किसी कैटेगरी का एक अंक पूरा जाता है तो फिर दूसरा पद बनता है. जैसे एससी का आरक्षण 15 पर्सेंट है, एसटी का 7.5 पर्सेंट है और ओबीसी का 27 पर्सेंट है. इस हिसाब से समझें तो एक नंबर पूरा करने के लिए ओबीसी को चौथी पोस्ट का इंतज़ार करना होगा और इसी क्रम में एससी को 7वीं सीट का, एसटी को 14वीं सीट का. अब जब 13 प्वाइंट रोस्टर से नियुक्ति होगी तो सीधे सीधे आरक्षित वर्ग का आरक्षण खतरे में पड़ जाएगा. अब यहां देखना बहुत अहम हो गया है कि 13 प्वाइंट रोस्टर के बाद शुरु हुआ ये विरोध क्या असर दिखाता है.