#Abhinandan: इमरान खान वाकई शांति चाहते हैं या माजरा कुछ और है ?
भारत पाकिस्तान की हर गतिविधि पर पैनी नजर रख रहा है. फिर चांहे वो सैन्य हलचल हो या फिर अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पाकिस्तान की हालत हो. शांति की बात करने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान क्या वाकई में शांति चाहते हैं या फिर उनकी मजबूरी है क्योंकि उनके पास जंग में आने वाले खर्च को वहन करने का दम नहीं है.
14 फरवरी को जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद ने पुलवामा में आतंकी हमले को अंजाम दिया था. इस आतंकी हमले में 40 से ज्यादा सीआरपीएफ के जवानों की शहादत हुई थी. इस हमले के बाद से ही भारत का रुख गर्म था. पुलवामा हमले से लेकर अभी तक कराची स्टॉक एक्सचेंज में करीब 8 फीसदी की गिरावट आई है. इतना ही नहीं पिछले करीब पांच महीनों में पाकिस्तानी रुपया 14 फीसदी की गिरावट आई है. हालात इतने खराब हैं कि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान किसी जंग को लड़ने की हालत में नहीं है.
डूब रही है अर्थव्यवस्था
जुलाई 2018 से लेकर जनवरी 2019 तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान के भुगतान घाटे का संतुलन 23.78 बिलियन डॉलर हो गया है और चालू खाता घाटा 110.12 बिलियन डॉलर है. अब आप खुद सोचिए कि सिर्फ 315 बिलियन डॉलर की जीडीपी वाले पाकिस्तान को जंग के हालात में क्या अर्थव्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाएगा. सऊदी और यूएई के रहमो करम पर पल रहे पाकिस्तान की करेंसी की हालत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अगर जंग हुई तो पाकिस्तान का रुपया 160 प्रति डॉलर पर पहुंच सकता है अभी इसकी कीमत 139.82 प्रति डॉलर है.
कश्मीर मुद्दे से टूटी पाक करेंसी
मुद्रास्फीति की दर ऊंची है, रोजगार है नहीं, निर्यात आयात की बुरी हालत है, अब बताइए ऐसी हालत में पाकिस्तान जंग में कैसे जा सकता है. इस वक्त पाकिस्तान की मुद्रास्फीति की दर 7.15 प्रतिशत से ज्यादा है, बेरोजगारी दर 5.9 प्रतिशत है, विकास दर 2019 में 4 फीसदी तक धीमी हो सकती है. कश्मीर के बढ़ते संकट से निवेशक परेशान हैं और पाकिस्तान के शेयर बाजार में गिरावट इसी वजह से देखी जा रही है. पाकिस्तानी की अर्थव्यवस्था खाड़ी देश और आईएमएफ के दम पर जिंदा है अब आप अंदाजा लगाइए कि इमरान खान जंग में कैसे जा सकते हैं.