जन्मदिन: ‘जग’ की आवाज़ तो आत्मा को ‘जीत’ लेती थी
गज़ल के लफ्ज़ कैसे भी हों लेकिन अगर वो जगजीत के गले से गाए गए हैं तो कमाल हो जाते थे. ना जाने कितनी हल्की गज़लों को उन्होंने अपने आवाज़ देकर भारी बना दिया था. आज जब जगजीत दुनिया में नहीं हैं तो उनकी आवाज़ आपको सुनाई देती है. वो आवाज़ जो आत्मा को जीत लेती है.
सैकड़ों गज़ले जगजीत सिंह ने गाईं और हर गज़ल को गाने का अंजाद जुदा होता था. कहानी है कि जब जगजीत पढ़ते थे तो उनके हॉस्टल के आसपास वाले कमरों में लड़के रहना पसंद नहीं करते थे.
जालंधर का डीएवी कॉलेज के हॉस्टर के जिस कमरे में जगजीत रहते थे वहां आसपास लड़के इसलिए नहीं रहते थे क्योंकि वो सुबह पांच बचे उठकर 2 घंटे रियाज करते थे. लड़कों की नींद हराम न हो इसलिए लड़के उनके कमरे के आसपास रहने से कतराते थे.
किसे पता था कि ऑल इंडिया रेडियो का जालंधर स्टेशन जिसे उप-शास्त्रीय गायन की शैली में फेल करेगा वो आगे चलकर गज़ल गायकी का उस्ताद बनेगा. एक और कहानी है जगजीत से जुड़ी हुई. कहते हैं कि एक बार जगजीत सिंह अपनी यूनिवर्सिटी की ओर से बेंगलुरु गए थे.
कहते हैं कि बेंगलूरु में एक प्रतियोगीता में शामिल होने के लिए वो वहां गए थो और जब रात में 11 बजे माइक पर ये बताया गया कि पंजाब यूनिवर्सिटी का छात्र शास्त्रीय संगीत गाएगा तो वहां मौजूद लोग ठहाके लगाने लगे थे. लोगों को लगता था कि पंजाब का तो भंगड़ा ही कर सकता है
जैसे ही जगजीत सिंह स्टेज पर पहुंचे तो लोग सीटी बजाने लगे. लोगों को लगा कि ये शो फ्लाप हो जाएगा. लेकिन शोर के बीच जब जगजीत ने अलाप लिया तो पूरी महफिल में जादू सा हो गया. श्रोता शास्त्रीय संगीत को समझते थे लिहाजा शार तालियों की गड़गड़ाहट में बदल गया.
इस कार्यक्रम में जगजीत को पहला पुरस्कार मिला था. 1965 में जगजीत सिंह मुंबई गए.वहीं पर उनकी मुलाकात उस समय उभर रही गायिका चित्रा सिंह से हुई थी. चित्रा के साथ मुलाकात की भी एक कहानी है. कहते हैं कि जब चित्रा सिंह ने पहली बार जगजीत सिंह को बालकनी से देखा था तो वो इतनी टाइट पैंट पहने हुए थे कि वो चल भी नहीं पा रहे थे. उस वक्त जगजीत चित्रा सिंह के पड़ोस में गाने के लिए गए थे.
चित्रा सिंह के पड़ोसी ने उन्हें जगजीत को सुनने के लिए बुलाया था. चित्रा ने जब जगजीत को सुना तो पहली बार उन्हें जगजीत की आवाज पसंद नहीं आई. और उन्होंने एक मिनट में ही टेप बंद कर दिया. दो साल बाद जगजीत और चित्रा सिंह एक स्टूडिया में गाना रिकॉर्ड करने के लिए मिले.
रिकॉर्डिंग खत्म होने के बाद चित्रा ने अपनी कार में जगजीत को लिफ्ट दी. जब जगजीत के साथ चित्रा अपने घर पहुंची तो उन्होंने कहा कि चाय पीकर ही जाइए. चित्रा चाय बनाने के लिए किचन में चली गईं और जगजीत ने वहां रखी हारमोनियम पर तान छेड़ दी. चित्रा बताती हैं कि उसी दिन से वो उनके संगीत की कायल हो गईं थीं बाद में दोनों ने शादी कर ली.
जगजीत सिंह ने मीठा संगीत गाया और सही नज़्मों का चुनाव किया. गजलों के बीच में चुटकुले सुनाने शुरू किए. चुटकलों को असर ये हुआ कि लोग उनसे कनेक्ट हो जाए थे. जगजीत सिंह ने ‘कम अलाइव’ एलबम को मुंबई के एक स्टूडियो में काल्पनिक कंसर्ट के तौर पर रिकॉर्ड किया था. जिससे लोगों को लाइव शो जैसा मजा आए.
गालिब को सभी ने गाया लेकिन जगजीत ने जैसा गाया वो असर किसी ने पैदा नहीं किया. गुलजार की नज़्मों को सबने गाया लेकिन जगजीत की आवाज में जब गुलजार की नज़्म ढली तो मजा आ गया. उनकी आवाज में एक चैन था जो आपकी आत्मा को जीत लेता था.