केंद्र सरकार गंगा सफाई के लिए लंबी लंबी हांक रही हैं. यूपी सरकार गंगा एक्सप्रेस वे बना रही है. लेकिन जो करना चाहिए शायद वो हो नहीं रहा और इसलिए एक और संत अपने अंत के करीब है.
ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के अनशन को सौ दिन से ज्यादा हो गए हैं. लेकिन सरकार ने उनकी सुध नहीं ली. इससे पहले स्वामी सानंद भी गंगा को अपनी जान दे चुके हैं. गंगा सफाई के लिए ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद लंबे वक्त से संघर्ष कर रहे हैं.
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ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद मातृ सदन से जुड़े हैं और भूख हड़ताल करते करते उन्हें सौ से ज्यादा दिन हो गए हैं. पिछले साल प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने कुल 111 दिनों के अनशन के बाद अपने प्राण त्याग दिए थे. मातृ सदन लंबे वक्त से गंगा के लिए संघर्ष कर रहा है.
स्वामी गोकुलानंद, स्वामी निगमानंद और स्वामी सानंद (प्रो जीडी अग्रवाल) के बाद अब आत्मबोधानंद भी उस श्रेणी में आ गए हैं जिनके प्राण कभी भी जा सकते हैं. सरकार के अभी तक उनकी ओर ध्यान नहीं दिया है. कई लोग आथ्मबोधानंद के समर्थन में आ गए हैं
स्वामी आत्मबोधानंद की सरकार से मांग है कि,
- गंगा व उसकी धाराओं – अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर और धौली गंगा पर सभी प्रस्तावित व निर्माणाधीन विद्युत परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए.
- गंगा में खनन पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए, गंगा के ऊपरी क्षेत्र में वन कटान प्रतिबंधित किया जाए और गंगा ऐक्ट लागू किया जाए.
अब जिस संत ने गंगा के लिए अनशन शुरू किया है उनकी उम्र सिर्फ 26 साल है. मूल रूप से केरल के रहने वाले ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद कम्प्यूटर साइंस के स्टूडेंट हैं लेकिन 21 साल की उम्र में ही संन्यास लेने के बाद वे मातृ सदन से जुड़ गए थे.
11 अक्टूबर को स्वामी सानंद की मौत के ठीक 10 दिन बाद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था और कहा था कि जिन मांगों को लेकर स्वामी सानंद ने अपने प्राणों का बलिदान किया, उन्हीं मांगों को लेकर वो अनशन करेंगे.
पीएम ऑफिस से अभी इस पत्र का जवाब नहीं आया है. पीएमओ ने ये बताया कि ये पत्र उत्तराखंड के मुख्य सचिव को भेज दिया गया है. लेकिन न उत्तराखंड ने कोई प्रतिक्रिया दी और न ही केंद्र सरकार ने. हालात ये हैं कि गंगा के लिए एक और संत अपने प्राणों को समर्पित करने वाला है.