स्वच्छता अभियान के शोर में युवा सीवर सफाईकर्मियों की कौन सुने ?
देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है. सरकार बड़े पैमाने पर योजनाएं बना रही है. मोदी सरकार सफाई को लेकर अपनी प्रतिबद्धता कई बार जाहिर कर चुकी है लेकिन सफाईकर्मियों का का क्या ? खासकर उन सफाईकर्मियों का जो सीवर साफ करते हैं.
देश की राजधानी दिल्ली में ही सीवर की सफाई के दौरान 49 लोगों की मौत हो गई. लेकिन सरकार तंत्र की उदासीनता का आलम ये है कि आधे के ज्यादा परिवारों नियत 10 लाख का मुआवज़ा नहीं मिला है. इंडियन एक्सप्रेस ने केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग की एक रिपोर्ट के आधार पर ये जानकारी दी. राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि 20 पीड़ित परिवारों को 10 लाख और 4 को उससे कम मुकावजा दिया गया. 25 मृतकों के परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है.
ये सिर्फ दिल्ली की बात नहीं है राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग की एक रिपोर्ट यानी एनसीएसके के डेटा बताता है,
1993 से अब तक देश में 709 सीवर सफाईकर्मियों की मौत हुई है. इनमें से 367 के परिवारों को दस लाख और 90 को उससे कम मुआवज़ा मिला है. 204 परिवारों को कोई पैसा नहीं मिला और 46 मामले ऐसे रहे जिनमें मृतक के उत्तराधिकारी का पता नहीं चल सका.
एक और आंकड़ा कहता है कि जिन सफाईकर्मयों की मौत हुई उनमें से ज्यादातर युवा थे. आरजीए ने एक सर्वे कर बताया था,
पिछले 26 सालों के दौरान देश के 11 राज्यों में सीवर की सफाई के दौरान जिनते सफाईकर्मी मारे गए उनमे से 37 प्रतिशत की उम्र 15 से 25 साल के बीच थी. 35 प्रतिशत सफ़ाईकर्मी 25 से 35 साल थी. 23 प्रतिशत की उम्र 35 से 45 साल थी.
ये युवा स्वेच्छा से नहीं बल्कि मजबूरी में सीवर सफाई का काम कर रहे थे. सीवर सफाई के लिए सुरक्षा उपकरण व अन्य इंतजाम नहीं होने के चलते घटनाए होती हैं. यहां सवाल ये है कि क्या तमाम क़ानूनी प्रावधानों और नियमों को ताक पर रखकर यह सब हो रहा है, क्या ऐसी मौतों को दुर्घटना माना जाना चाहिए ? क्योंकि इसके लिए स्थानीय एजेंसियां, ठेकेदार और अधिकारी जिम्मेदार नहीं माने जाते. हालांकि बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक सर्वोच्च अदालत में जनहित याचिका दायर कर यह मांग की गई है कि सीवर सफाई कर्मियों की मौतों के मामले में इन सभी पर आपराधिक कार्यवाही करनी चाहिए. अब सीवर सफाईकर्मियों को सरकार से नहीं बल्कि अदालत से उम्मीद है.