‘जय अनुसंधान’ क्यों लगता है ‘जय जुमलिस्तान’

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पीएम मोदी ने 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में देश को एक नया नारा दिया था. उन्होंने दो पूर्व प्रधानमंत्री, लालबहादुर शास्त्री और अटल बिहारी वाजपेयी के ‘जय जवान जय किसान’ और ‘जय विज्ञान’ के नारों में ‘जय अनुसंधान’ जोड़ दिया. और नया नारा गढ़ दिया. ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान’, नारा ठीक है लेकिन जय अनुसंधान होगा कैसे?

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध संगठन (क्लेरिवेट एनालिटिक्स) की खबर पर ज़रा गौर करिए,

दुनिया के सबसे क़ाबिल 4,000 शोधकर्ताओं की लिस्ट में भारत के 10 वैज्ञानिक हैं, पिछले साल ये संख्या 5 थी. इस सूची में चीन के 482, अमेरिका के 2,639  और ब्रिटेन के 546 वैज्ञानिक शामिल हैं. यानी चीन भारत से करीब 48 गुना आगे है.

भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारत रत्न सीएनआर राव की प्रतिक्रिया भी आप देख लीजिए,

क़रीब 15 साल पहले भारत और चीन एक बराबर थे, लेकिन आज विश्व विज्ञान के क्षेत्र में चीन का योगदान 15-16 प्रतिशत है और हमारा केवल तीन-चार प्रतिशत.

इंडियास्पेंड की 2018 रिपोर्ट अगर आप देखेंगे तो भारत में जीडीपी का 4 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर ख़र्च किया जाता है और उससे बहुत कम शोध कार्यों पर खर्च किया जाता है, रिपोर्ट कहती है,

देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 5,606 शिक्षकों की कमी है जो उनके कुल पदों की संख्या का 33 प्रतिशत है.

केंद्र सरकार ने 23 जुलाई 2018 को संसद में खुद ये बात बताई थी कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की बात करें तो 34 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं. भारत की जीडीपी का एक प्रतिशत हिस्सा भी विज्ञान या शोध कार्यों पर खर्च नहीं होता. यहां ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि 2014 के चुनाव में उन्होंने कहा था कि सरकार बनने पर भारत की जीडीपी का 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर लगाया जाएगा. लेकिन 2015 में सरकार ने कह दिया कि अगर वैज्ञानिक शोध करना है तो ‘स्व-वित्तीय परियोजनाओं’ की शुरुआत करें. यानी अगर संस्थानों को शोध करना है तो उसके ख़र्च का जुगाड़ वे ख़ुद ही करें. अब आप भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के बयान पर ध्यान दें,

स्कूलों को सरकारी फ़ंड के लिए सरकार के सामने कटोरा लेकर मदद मांगने के बजाय पूर्व छात्रों से मदद लेनी चाहिए.

इतना तो ठीक है भारत में एक से एक बयान बहादुर पड़े हैं. जो विज्ञान की भजिया तलने में लगे रहते हैं ऐसे में ये उम्मीद करना कि भारत दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिकों की सूची में चीन को पीछे कर पाएगा दूर की कौड़ी मालूम पड़ता है.

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