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‘नौकरी छोड़िए नौकरी के आंकड़े भी नहीं हैं मोदी सरकार के पास’

बेरोजगारी तो आप अपने आसपास नजर दौड़कर देख सकते हैं. लेकिन नौकरियों के आंकड़े तो आपको सरकार से ही मिलेंगे. कितनी नौकरियां हैं? कितने लोगों के लिए सरकार ने ने नौकरियां पैदा कीं? ये आंकड़े तो सरकार के पास ही होते हैं. सरकार को अपने कामकाज का हिसाब संसदीय समिति को देना होता है. सरकार अलग अलग क्षेत्रों के आंकड़े संसदीय समिति के सामने रखती है. इस समय में बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी इस समिति के अध्यक्षता कर रहे हैं.

खबर ये है कि मोदी सरकार ने नौकरियों के संबंध में कोई वास्तविक और विश्वसनीय आंकड़ा संसदीय समिति के सामने पेश नहीं किया. नरेंद्र मोदी सरकार ने एक संसदीय समिति के सामने स्वीकार किया है कि उनके पास 2014 के बाद से नई नौकरियों की संख्या का कोई वास्तविक आंकड़ा नहीं है. हैरानी की बात ये है कि पीएम खुद नौकरियों के आंकड़े देते हैं लेकिन संसदीय समिति के लिए उनके पास आकंड़े नहीं हैं. समिति का कहना है कि भारत में रोजगार को मापने के लिए विश्वसनीय तंत्र नहीं है.

ख़बर ये भी है कि मुरली मनोहर जोशी लोकसभा में रिपोर्ट पेश करेंगे. अब सवाल ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि मुद्रा लोन की बढ़ती संख्या और ईपीएफओ के साथ नए पंजीकरण बताते हैं कि नौकरियों में वृद्धि हुई है. लेकिन संसदीय समिति का कहना है कि ये कोई विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है. संसदीय समिति ने पारंपरिक रूप से रोजगार डेटा संग्रह के तरीकों को सख्ती से स्वीकार किया है. इसमें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के आंकड़ों को शामिल किया गया है.

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सरकार ने माना है कि 2011-12 के बाद कोई एनएसएसओ आंकड़ा नहीं है. एनएसएसओ सर्वेक्षण हर पांच साल में कराए जाते हैं लेकिन मोदी सरकार ने 2018 के आखिर तक इस आंकड़े को जारी नहीं किया. 2016-17 में अखिल भारतीय वार्षिक श्रम ब्यूरो के सर्वेक्षण को भी जारी नहीं किया. सरकार ने इस सर्वेक्षण को ही बंद कर दिया. खबर ये है कि 2016-17 में बेरोजगारी चार साल के शिखर पर थी. श्रम विभाग ने रिपोर्ट को संसदीय समिति के साथ साझा नहीं किया है. यही कारण है कि समिति ने कहा है कि सरकार के पास 2011-12 के एनएसएसओ सर्वेक्षण के बाद रोजगार का कोई आंकड़ा नहीं है.

इस समिति में राजीव प्रताप रूडी, निशिकांत दूबे और रमेश बिधुरी हैं इन तीन सांसदों ने असंतोष जताते हुए विरोध पत्र दिया और कहा कि प्राक्कलन समिति के निष्कर्षों का वास्तिक नौकरी के आंकड़ों में मेल नहीं है. आपको यहां भी बता दें कि राजीव प्रताप रूडी तो समिति एक भी बैठक में शामिल ही नहीं हुए. ये रिपोर्ट जल्द ही संसद में पेश की जाएगी. मोदी सरकार ने कहा था कि ईपीएफओ के आंकड़ो से रोजगार सृजन का हिसाब लगाया जाए लेकिन जोशी ने इसे मानने से इंकार कर दिया था. अब देखना होगा जब ये रिपोर्ट आएगी तो सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है.  

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