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आरक्षण: सत्ता का ‘रिजर्वेशन’

7 जनवरी से लेकर 15 जनवरी तक मोदी सरकार ने सवर्णों को 10 आरक्षण देने के फैसले पर जिस रफ्तार के अमल किया है और इसको निजी क्षेत्र तक पहुंचाया है आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आने वाले चुनाव में इस फैसले के क्या माएने हैं.  सवर्णों को जो कोटा दिया गया है वो एसएसी\एसटी और ओबीसी को मिलने वाले मौजूदा 50 फीसदी कोटा के अलावा है लिहाजा इसमें संवैधानिक पेंच है. फिर भी मोदी सरकार अपने फैसले को जमीन तक ले जाने के लिए चीते की रफ्तार से दौड़ रही है.  जिन सवर्णों के पास कृषि भूमि 5 हेक्टेयर से कम है,  मकान है तो 1000 स्क्वायर फीट से कम है, निगम में आवासीय प्लॉट है तो 109 गज से कम जमीन है, निगम से बाहर प्लॉट है तो 209 गज से कम जमीन पर है उन सवर्णों को इसका फायदा मिलेगा यानी इस हिसाब से करीब 95 फीसदी सवर्ण इस खांचे में फिट हो जाएंगे बाकी बचे सवर्ण बचे 40 फीसदी आएंगे. इस फैसले का चुनाव पर क्या असर होगा ये अलहदा मसला है लेकिन अगर निजी क्षेत्र में भी ये लागू हो गया तो क्या होगा ये समझना जरूरी है.

सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण के बाद अब सरकार निजी संस्थानों में सामान्य, ओबीसी और एससी\एसटी आरक्षण को लागू करने के लिए बजट सत्र में एक बिल लाने की तैयारी कर रही है. आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगले सत्र यानी जुलाई 2019 से देश के सभी सरकारी, गैर सरकारी हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट में सामान्य वर्ग के 10 फीसदी का आरक्षण लागू किया जाएगा…निजी शैक्षणि‍क संस्थाओं में आरक्षण के लिए संसद के बजट सत्र में एक अलग बिल पेश किए जाने की संभावना है. निजी क्षेत्र में आरक्षण का रास्ता खोलने के लिए करीब 12 साल पहले संविधान संशोधन किया गया था. इसे लागू कराने के लिए ही सरकार बिल लाएगी. प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक

क्यों महत्वपूर्ण है प्रकाश जावड़ेकर का बयान ?

PIB

जावड़ेकर ने कहा है कि सीटों को बढ़ाने का फ़ैसला इसलिए किया गया है ताकि 10 फीसदी आरक्षण लागू होने के बाद किसी भी वर्ग को पहले से मिल रही सीटों पर कोई असर नहीं पड़े. वैसे अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को पहले ही 10 फ़ीसदी आरक्षण के दायरे से बाहर रखा गया है. हालांकि सवाल ये है कि निजी क्षेत्रों के संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण सरकार लागू कैसे कराएगी ये बड़ा प्रश्न है.

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2009 में पारित ‘शिक्षा के अधिकार कानून’ के तहत आर्थिक रूप से कमजोर और उपेक्षित वर्ग के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित किये जाने का प्रावधान किया था. लेकिन उसका फायदा बहुत ज्यादा हुआ नहीं. केंद्र सरकार बार बार यह कह रही है कि 10 फ़ीसदी आरक्षण के लिए सीटें बढ़ाई जाएंगी. यूजीसी से मान्यता प्राप्त सभी विश्वविद्यालय और शैक्षिक संस्थान चाहे वो सरकारी हो या निजी उन्हें आरक्षण लागू करना होगा.

ऑल इंडिया उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण 2018-19 के हिसाब से भारत में कुल 950 विश्वविद्यालय, 41748 कॉलेज और 10,510 स्टैंडअलोन शिक्षण संस्थान हैं. मौजूदा वक्त में निजी कॉलेजों में आरक्षण लागू नहीं है लेकिन जब ऐसा होगा तो केंद्रीय विश्वविद्यालय, IIT, IIM जैसे प्रतिष्ठित उच्च शैक्षिक संस्थानों समेत देश भर के शिक्षण संस्थानों में करीब 10 लाख सीटें बढ़ानी होंगी. अब ऐसे में सबसे बड़ी समस्या ये है कि कई शिक्षण संस्थानों में वर्तमान ढांचा ऐसा नहीं है कि वो इतना बोझ उठा सकें. शिक्षकों की भी भारी कमी है. चुंकि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले सरकार ने निजी संस्थानों से बात करके उन्हें विश्वास में नहीं लिया है लिहाजा परेशानी हो सकती है क्योंकि निजी संस्थानों ने आधारभूत ढांचे के विकास के लिए काफ़ी ज़्यादा खर्च किया है और उन्हें अपने खर्चों को निकालना है.

एक और आकंड़ा ये है कि बीते पांच सालों में दाखिले कम हुए हैं. अप्रैल 2018 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने 800 इंजीनियरिंग कॉलेजों को बंद करने का फ़ैसला किया था. इसका कारण ये था कि सीटें फुल नहीं हो पा रही थी. एक सच्चाई ये भी है कि नौकरियों की कमी की वजह से पहले से चल रहे कई उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र घट रहे हैं. ऐसे में सीटें बढ़ाने का फ़ैसला और निजी संस्थानों में आरक्षण पर सरकार क्या करेगी इस पर सभी की नज़रें बनी हुई हैं ?

सरकार ने जुलाई 2019 से इसे लागू करने के बात कही है लेकिन सवाल यह भी है कि इतने कम समय में इसे कैसे लागू करेंगे क्योंकि मौजूदा मूलभूत सुविधाओं के साथ छात्रों की संख्या कैसे बढ़ाएंगे. सबसे पहला सवाल तो यही है कि बुनियादी सुविधाएं कहां हैं? 10 फ़ीसदी आरक्षण को लागू करने के लिए जिन सीटों को बढ़ाने की बात की जा रही है. उन छात्रों को बिठाएंगे कहां? ये वो सवाल है जिसके जवबा अभी सरकार की ओर से नहीं दिए गए हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इन सवालों के जवाब देगी.

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