उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य के प्लास्टिक से निर्मित कचरे पूर्ण रूप प्रतिबंध लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
उत्तराखंड हाईकोर्ट जिलाधिकारियों द्वारा कोर्ट में दिए गए शपथ पत्रों नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा सरकार द्वारा इसके निस्तारण के लिए कोई कानूनी कदम नही उठाए गए है। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के गठित कमेटी को पक्षकार बनाते हुए कहा है कोर्ट ने कहा आज के बाद जो भी कम्पालयन्स होंगे उसके लिए कमेटी जिम्मेदार होगी।
साथ ही कोर्ट ने सभी डीएफओ को निर्देश जारी किए है कि वे अपनी क्षेत्रों में आने वाली वन पंचायतों का मैप बनाकर डिजिटल प्लेटफार्म पर अपलोड करेगे और एक शिकायत एप बनाएंगे। ताकि इसमे दर्ज शिकायतों का निस्तारण किया जा सके। मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने 19 अक्टूबर की तिथि नियत की है।
आपकों बता दे कि अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई गई थी। परन्तु इन नियमों का पालन नही किया जा रहा है। 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए गए थे जिसमे उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व बिक्रेताओ को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे।
अगर नही ले जाते है तो सम्बंधित नगर निगम , नगर पालिका व अन्य फण्ड देंगे जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सकें। परन्तु उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए है और इसका निस्तारण भी नही किया जा रहा है।
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