Uttrakhand news: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कौन सी पार्टी ज्यादा मजबूत है?

Uttrakhand news today latest: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव: हरिद्वार (Haridwar) में अभी तक पंचायत की राजनीति में बसपा और कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। बसपा सबसे लंबे समय इस राजनीति में हावी रही है। जबकि, BJP अभी तक कुछ खास नहीं कर पाई है।
Uttrakhand news today: हरिद्वार में अभी तक पंचायत की राजनीति में बसपा और कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। बसपा सबसे लंबे समय इस राजनीति में हावी रही है। इस बार पंचायत की राजनीति के दो दिग्गज मोहम्मद शहजाद और चौधरी राजेंद्र सिंह एक साथ बसपा के मंच पर मैदान में है। इसी कारण बसपा का कद बढ़ गया है। भाजपा एक ही बार अपना जिला पंचायत अध्यक्ष जिता पाई है। एक बार भाजपा और एक बार बसपा का मनोनीत अध्यक्ष रहा है।
Uttrakhand news: त्रिस्तरीय चुनाव में किसका पलड़ा भारी
- हरिद्वार में पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव 1995 में हुआ तो बसपा के राजेंद्र चौधरी जिला पंचायत अध्यक्ष बने।
- तभी से ही राजेंद्र चौधरी का पंचायत की राजनीति में अपना गुट बन गया।
- 2000 में हुए चुनाव में राजेंद्र चौधरी के खिलाफ तत्कालीन हरिद्वार विधायक अम्बरीष कुमार की अगुवाई में एक नया मोर्चा आ गया जिसने निर्दलीय ही बृजरानी को जिला पंचायत का अध्यक्ष बना दिया था।
- उस समय सपा के सदस्यों ने सामने आकर और अन्य पार्टियों ने अंदरखाने वोट किया था।
- निर्दलीय अध्यक्ष बनने वाली बृजरानी पहली जिला पंचायत अध्यक्ष थी।
- बसपा ने बृजरानी को कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया। अविश्वास प्रस्ताव लाकर बृजरानी की कुर्सी बीच में ही छीन ली।
- 2003 में चौधरी राजेंद्र की समर्थक बरखा देवी अध्यक्ष बन गई। अगले चुनाव में बसपा ने फिर बाजी मारी और रमेशो कश्यप कड़े मुकाबले में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गई।
- 2010-11 के चुनाव में विधायक शहजाद की भाभी अंजुम बेगम बसपा से अध्यक्ष बनीं।
इस चुनाव में भाजपा के सदस्यों की भूमिका पर सवाल भी उठे थे और भाजपा के कई नेताओं पर कार्रवाई भी की गई थी। वर्ष 2016 के चुनाव में बड़ा दल होने के बावजूद बसपा अपना अध्यक्ष नहीं बना पाई। 2016 में कांग्रेस की सविता चौधरी अध्यक्ष बनीं। सविता को कार्यकाल के बीच में ही सरकार ने विभिन्न आरोपों के आधार पर कराई गई जांच रिपोर्ट का हवाला देकर बर्खास्त किया गया तो चार महीने के लिए कांग्रेस के ही राव आफाक अली जो जिला पंचायत के उपाध्यक्ष थे।
त्रिस्तरीय चुनाव में बसपा का रहा है वर्चस्व
उन्हें अध्यक्ष बनने मौका मिला। इसके बाद मध्यावधि चुनाव हुए तो 2019 में भाजपा ने चार ही सदस्यों के दम पर अपना जिला पंचायत अध्यक्ष सुभाष वर्मा को बना लिया। यह पहला मौका भाजपा को मिला, जिसमें उसने चुनाव में जीत दर्ज की। इस राजनीति में बसपा का सबसे अधिक वर्चस्व रहा है।
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