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क्या है अल्मोड़ा के मल्ला महल के अच्छे दिनों का प्लान, बहुत कुछ बदलने वाला है

अल्मोड़ा का मल्ला महल अब धरोहर में तब्दील हो जाएगा। करीब 452 साल तक यहीं से कुमाऊं का राजकाज चलता रहा। आजादी के बाद यहां पर कलक्ट्रेट संचालित होती रही।

उत्तराखंड का अल्मोड़ा जिला किसी परिचय का मोहताज नहीं है. इस पूरे इलाके का अपना इतिहास है और यहां का भूगोल दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है. इसी जिले में है 4 सदी पुराना मल्ला महल. अब यहां से कलक्ट्रेट, तहसील, सब रजिस्ट्रार समेत सभी कार्यालय पांडेखोला में बने नए भवन में शिफ्ट हो गए हैं। पूरे कुमाऊं का यह केंद्र अब म्यूजियम में बदल जाएगा।

आजादी से पहले और उसके बाद से ही मल्ला महल से एक ही प्रकार के काम संचालित होते रहे। इस महल का निर्माण राजा रुद्र चंद ने करीब 1570 में कराया था। राजा यहीं से पूरे कुमाऊं के राजकाज का खाका तैयार करते थे। 1790 में गोरखाओं ने आक्रमण कर इस महल पर कब्जा जमा लिया था।

गोरखाओं का राज भी इसी महल से चलने लगा था। 1815 में में अंग्रेज यहां आए तो उन्होंने पूरे कुमाऊं पर शासन अल्मोड़ा के मल्ला महल से ही चलाया था। बकायदा अग्रेजों ने कमिश्नर और उसके बाद डिप्टी कमिश्नर की भी नियुक्ति की थी।

आजादी के बाद कई जिलों का रहा मुख्यालय


आजादी के बाद से मल्ला महल में कलक्ट्रेट संचालित होने लगी थी। इसी कलक्ट्रेट से अल्मोडा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत आदि क्षेत्रों के काम संचालित होते थे, हालांकि कालांतर में पिथौरागढ़, बागेश्वर और चम्पावत पृथक जिले बन गए थे। उसके बाद भी मल्ला महल की धमक कम नहीं हुई।

मल्ला महल का इतिहास

● 1570 से 1597 तक में चंद शासक राजा रुद्रचंद ने राज्य चलाया।

● 1790 से 1815 तक गोरखाओं ने राज किया।

● 1815 में अंग्रेजों ने यहां से ब्रिटिश कुमाऊं की व्यवस्थाएं संचालित की

● 1815 में एडवर्ड गार्डनर पहला कमिश्नर बना

● 1815 में ही जॉर्ज विलियम ट्रेल असिस्टेंट कमिश्नर नियुक्त किया गया।

● 1947 से 2022 मल्ला महल से अल्मोड़ा जिले की प्रशासनिक व्यवस्थाएं चलाई गई, अब बन रहा म्यूजियम

मल्ला महल ब्रिटिश कुमाऊं का केंद्र था। इतिहासकार प्रो. अजय रावत की ‘उत्तराखंड का समग्र राजनीतिक इतिहास’ किताब के अनुसार अंग्रेजों ने ब्रिटिश कुमाऊं को 26 परगनों में बांट रखा था। अंग्रजों ने 1819 में पटवारी व्यवस्था की भी शुरुआत की थी। वर्तमान में जिस भवन में तमाम सरकारी दफ्तर संचालित होते थे वहां पर जीर्णोद्धार का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। भवन को पुराने स्वरूप के अनुसार संरक्षित किया जा रहा है। उसके बाद यहां पर एक म्यूजियम बनना है, जिसमें लोग अल्मोड़ा के गौरवशाली इतिहास से रूबरू हो सकेंगे। 

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