प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) क्या प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठने लगा है क्योंकि अब उन्होंने देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी में फुल टाइम पॉलिटिशियन के तौर पर काम करने का निर्णय लिया है. और उनका संगठन आईपैक i-pac नई रणनीति के साथ काम करने में जुटा हुआ है.
प्रशांत किशोर और कांग्रेस (Prashant Kishor and Congress President Sonia Gandhi meeting)अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच दो बार लंबी-लंबी बैठकें हुई हैं. दिल्ली में इस बात की चर्चा गर्म है कि 2024 के चुनाव के लिए कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच मजबूत प्लानिंग को अमल में लाने की बात चल रही है. इन मुलाकातों के बीच यह भी कहा जा रहा है कि अब प्रशांत किशोर अपनी प्लानिंग को और आगे बढ़ाते हुए अपने लिए राजनीति में एक सुनहरा भविष्य तलाश रहे हैं. प्रशांत किशोर की रणनीति और उनके काम करने के तरीकों को समझने के लिए जरूरी है कि हम उनके अतीत में झांके और यह समझे कि वह और उनकी संस्था कैसे काम करती है. हमें यह भी समझना होगा कि कैसे पोलिटिकल प्लानिंग करने वाली एक संस्था ने देश की सभी सियासी पार्टियों को मजबूर कर दिया है कि वह प्रशांत किशोर या उनके जैसी कंपनियों को हायर करके चुनाव जीतें.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी (West Bengal chief minister Mamata Banerjee) की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को धमाकेदार बहुमत मिलने के बाद चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मांग पूरे देश में बढ़ गई है। हालांकि प्रशांत किशोर ने अब चुनाव रणनीति बनाने के काम से किनारा करने का फैसला किया है लेकिन उनकी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (Indian political action committee) प्रशांत किशोर के निर्देशन में ये काम करती रहेगी।
ममता बनर्जी की जित के बाद कई राजनितिक दाल प्रशांत किशोर को मुँह मांगी फीस देने को तैयार है। साथ ही प्रशांत ने जब जब जिस पार्टी को जित दिलाई तब उस पार्टी के लिए जमीनी समीकरण भी मददगार साबित हुए थे। लेकिन जीत दिलाने का सेहरा प्रशांत को मिला हलाकि प्रशांत को कई बार अपने फॉर्मूले को फ्लॉप होते भी देखना पड़ा।
दिलचस्प बात ये है की प्रशांत के फेलियर से ज्यादा उनके पास होने की चर्चा रही है। प्रशांत अब सीधे स्वयं रणनीति बनाने के लिए मैदान में नहीं उतरेंगे। बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर ने अपनी चुनाव रणनीति बनाने की फीस दोगुनी कर दी है।
इन दो आधार पर तय होती है प्रशांत किशोर की फीस !
कांग्रेस के लिए सेवाएं देने के दौरान उनके सम्पर्क में रहे कांग्रेस आईटी सेल के एक टेक इंजीनियर ने बताया कि प्रशांत चुनाव (Prashant Kishor) रणनीति बनाने की फीस चुनावी मुकाबले के हालात को देखकर तय करते हैं। इसके अलावा जहां चुनाव होना है, वहां की शैक्षिक हालत भी उनका पैमाना बनती है। आमतौर पर प्रशांत किशोर सीटवाइज फीस मांगते हैं।
Prashant Kishor के सामने नेताओ का विशवास पड रहा कमजोर
पीके यानी प्रशांत किशोर जितना अधिक सफल हो रहे हैं, भारत के नेता उतने ही दयनीय दिख रहे हैं। प्रशांत के पास ऐसा क्या है जो पिछले कई दशकों से भारत की जनता को झांसे दे रहे राजनेताओं के पास नहीं है। निश्चित रूप से, प्रत्येक पार्टी को पता है कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर मोटी फीस लेकर जो कुछ भी करेंगे, वह उनका संगठन और कार्यकर्ता भी कर सकता है लेकिन वे अपने संगठन और कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं कर पाते।लेकिन प्रशांत किशोर को करोड़ों की फीस देकर उन्हीं कार्यकर्ताओं की मदद से चुनाव जीतने पर प्रशांत किशोर का इस्तकबाल करते हैं।
इन विफलताओं में छुपी है प्रशांत किशोर की रणनीति
ऐसा नहीं है कि प्रशांत किशोर असफल नहीं होते। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश चुनाव 2017 में निराशाजनक विफलता के बाद उनका भाव काफी गिर गया था लेकिन पंजाब के अभियान ने उनकी लाज बचा ली थी।
और फिर 2019 में जगनमोहन रेड्डी की किस्मत पलटने का जो लेवल उनके साथ चिपका, उसने उन्हें नीतीश कुमार का काम दिला दिया हालांकि वे नीतीश को धमाकेदार जीत नहीं दिला पाए लेकिन ममता बनर्जी ने उन्हें अपने लिए बुक कर लिया।
प्रशांत किशोर की फीस का आधार
मतलब जितनी सीट जीतने का टारगेट, उतनी ही उनकी फीस होती है। 2017 तक प्रशांत किशोर विधानसभा की प्रति सीट दस करोड़ रुपए मांग रहे थे। पंजाब में शैक्षिक स्तर अधिक होने से उन्होंने फीस कम कर दी थी लेकिन उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की फीस में उन्होंने कोई कटौती नहीं की थी।
कैम्पेन में असीमित खर्च है करोडों की फीस का कारण !
- प्रशांत किशोर जिस पार्टी को जिताने का ठेका लेते हैं, उसकी पूरी कंडीशन का अध्ययन करने, डाटा जुटाने और उसके प्रति जनता की भावनाएं जानने में खुलकर खर्च करते हैं।
- वे सर्वे करने वाली एक से अधिक एजेंसियों से अलग-अलग सर्वे कराकर डेटा का एनालेसिस कराते हैं और उसके बाद अपनी टीम से फाइनल सर्वे कराते हैं।
- इस पूरी प्रक्रिया पर मोटा खर्च आता है सूत्रों के अनुसार सर्वे और एनालेसिस में जुटी उनकी टीम का रहने-खाने और परिवहन का खर्च कई करोड़ रुपए आता है।
- इसके अलावा पूरे चुनाव कैम्पेन के दौरान टीम के सदस्यों की अलग-अलग इलाकों में यात्राएं, रात्रि प्रवास, जनता के साथ जुड़ाव जैसे कामों पर भी प्रतिदिन लाखों का खर्च आता है।
- पूरे राज्य में कई हाईटेक कार्यालय स्थापित करते हैं और उनमें इंटरनेट की हाईस्पीड लीज लाइन, आधुनिक संचार उपकरण, बेहतरीन मोबाइल, लेपटॉप इत्यादि की व्यवस्था भी करते हैं।
- सूत्रों के अनुसार प्रशांत किशोर की फीस का अधिकांश हिस्सा कैश देना होता है। वे बैंकिंग सिस्टम से सिर्फ उतना ही रुपया लेते हैं जिसे वे अपनी कम्पनी की आयकर रिटर्न में दिखा सकें।
कब कब जीते और हारे प्रशांत किशोर
- नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए 2014 लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने नरेंद्र मोदी की मार्केटिंग से लेकर ब्रांडिंग का जो फॉर्मूला लांच किया, वह सुपरहिट साबित हुआ।
- चाय पे चर्चा, रन फॉर यूनिटी, मंथन जैसे पब्लिक प्रोग्राम् के अलावा सोशल मीडिया पर भी प्रशांत किशोर की रणनीति का फोकस रहा।
- 2014 की सफलता के बाद प्रशांत किशोर ने इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPAC) नाम से अपना संगठन खड़ा कर दिया।
- कांग्रेस को हार से नहीं बचा पाए प्रशांत किशोर
- प्रशांत किशोर और IPAC के लोग जब बिहार में नीतीश कुमार के साथ काम कर रहे थे। प्रचार की कमान प्रशांत किशोर के हाथ में थी। मुकाबला बीजेपी से था और प्रशांत किशोर की रणनीति से जदयू-राजद का गठबंधन जीत गया तो ब्रैंड PK और मजबूत हो गया।
- नीतीश के साथ प्रशांत किशोर की नजदीकियां बढ़ने लगी थीं। बीजेपी और जदयू के साथ सफल रहने के बाद, 2016 में प्रशांत किशोर को कांग्रेस ने अपने साथ लिया।
- पंजाब में लगातार दो चुनाव हार चुकी कांग्रेस को 2017 में पीके के साथ से जीत मिली।
- कैप्टन अमरिंदर सिंह की जीत का क्रेडिट पीके को भी मिला। पार्टी के कई नेताओं ने प्रशांत किशोर का नाम लेकर उन्हें श्रेय दिया।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश में चटा दी थी धूल
पंजाब का साथ उत्तर प्रदेश में भी जारी रहा, मगर वहां पीके का प्लान फेल हो गया। बीजेपी की रणनीति के आगे पीके की दाल नहीं गली। कांग्रेस राज्य में करीब तीन दशक से सत्ता से बाहर थी। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का दांव भी काम नहीं आया।
बीजेपी अकेले 300 से ज्यादा सीटें जीत ले गईं। कांग्रेस के हिस्से केवल 7 सीटें आईं। कई राजनीतिक पंडितों ने यूपी में कांग्रेस के साथ जाने के पीके के फैसले को गलत बताया था।
जगन को 151 सीट मिलते ही बढ़ा दी थी फीस
मई 2017 में प्रशांत किशोर को वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने अपना राजनीतिक सलाहकार बनाया। IPAC ने जगन की इमेज बदलने के लिए कई कैंपेन चलाए।
विधानसभा चुनाव में YSRCP को 175 में से 151 सीटें मिलीं तो दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने उन्हें हायर कर लिया। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 70 में से 62 सीटें जीतने में सफल रही।
देश किसी में किसी पार्टी को Prashant Kishor से कितना फायदा होगा ये कहा नहु जा सकता लेकिन प्रशांत अपने लिए ऐसी रणनीति बना रहे है जो उन्हें भविष्य में एक बड़े नेता के रूप में सेट कर दें।
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