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सुपरफूड बन अमीरों की थाली में पहुंचा गरीबों का अनाज, Millets के फायदे आपको चौंका देंगे

सुपरफूड (superfood) या स्मार्ट फूड बढ़ती आबादी और भागमभाग भरी जिंदगी के लिए एक जरूरत बन गया है. कल तक जिस खाने को मजबूरी कहा जाता था आज वही खाना अमीरों की थाली की शान बन गया है.

सुपरफूड (superfood) खाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है. लोग तेजी से मोटे अनाज की ओर आकर्षित हो रहे हैं. जिन लोगों की पृष्ठभूमि गांव देहात से जुड़ी है वह जानते हैं कि गांव देहात में ज्वार बाजरा और मक्के की रोटी यों का चलन खूब था. हमारी दादी या हमारी मां चूल्हे पर ज्वार बाजरा (Millets) या मक्की की रोटियां बनाया करती थी जो काफी मोटी हुआ करती थी. लेकिन इन रोटियों का सौधांपन आज भी हमारे मुंह में पानी ले आता है. उस वक्त शहरों में या अमीर घरों में मोटे अनाज के सेवन का चलन नहीं था. लेकिन आज अमीर इसे सुपरफूड कहकर इस्तेमाल कर रहे हैं.

Millets है आज का सुपर फूड

खेती-किसानी के जानकार बीते कुछ सालों से यह करते आए हैं. बीते कुछ सालों में कई ऐसी फसलें खेतों में और ऐसा खाना प्लेटों में लौट आया है जिन्हें कुछ वक्त पहले तक बिल्कुल  भुला दिया गया था. इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फ़ॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स की डायरेक्टर जनरल डॉ. जैकलीन हॉग्स कहती हैं, “मोटे अनाज को खेत में और प्लेट में वापस लाने के लिए और इस पर लगे ‘भूली हुई फसल’ के टैग को हटाने के लिए ठोस वैश्विक प्रयास की ज़रूरत है.”

साल 2018 को भारत में ‘ईयर ऑफ़ मिलेट्स’ के रूप में मनाया गया. इसके अलावा भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स’ के रूप में मनाने का फ़ैसला किया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इस साल लोगों को मोटे अनाज से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में जागरुक किया जाएगा. साथ ही खेती के लिए उनकी उपयोगिता के बारे में भी लोगों को बताया जाएगा.

सुपरफूड (superfood) क्यों बन गया है मोटा अनाज?

मोटे अनाज तेज़ी से चलन में लौट रहे हैं. इन्हें स्मार्ट फ़ूड के तौर पर पहचाना जा रहा है क्योंकि वे धरती के लिए, किसानों के लिए और आपकी सेहत के लिए अच्छे हैं. इन्हें बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है और ये अधिक तापमान में आसानी से बढ़ते हैं. ये फसल किसानों के लिए अच्छी है क्योंकि इनकी पैदावार दूसरी फसलों की तुलना में आसान है और साथ ही ये कीट-पतंगों से होने वाले रोगों से भी बचे रहते हैं. मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं क्योंकि इनमें पौष्टिक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं. अध्ययनों के मुताबिक़, बाजरे से मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है और कोलेस्ट्रॉल लेवल में सुधार होता है. ये कैल्शियम, ज़िंक और आयरन की कमी को दूर करता है. और सबसे ज़रूरी बात यह कि यह ग्लूटेन-फ्री होता है.

डायबिटिक लोगों के लिए रामबाण है मिलेट्स (millets)

भारत में क़रीब 8 करोड़ डायबिटीज़ के मरीज़ हैं. हर साल क़रीब 1.7 करोड़ लोग हृदय रोग के कारण दम तोड़ देते हैं और देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, जिनमें आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित हैं. मिलेट्स या मोटा अनाज डायबिटीज के मरीजों के लिए और कुपोषित बच्चों के लिए बहुत जरूरी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अपने एक संबोधन में मेलेट्स रिवॉल्यूशन तक का जिक्र कर चुके हैं. ज्वार बाजरा जैसे सुपरफूड भारत में खूब पाए जाते हैं. भारत प्रतिवर्ष क़रीब 1.4 करोड़ टन बाजरे की पैदावार करता है. इतना ही नहीं भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक देश भी है.

लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि बीते कुछ सालों से मिलेट्स उत्पादन में कमी भी आई है. बीते सालों में चावल और गेहूं की उपज बढ़ाने पर बहुत अधिक ज़ोर दिया गया और इस दौरान बाजरा और कई दूसरे पारंपरिक खाद्य की उपेक्षा हुई और जिसकी वजह से उनका उत्पादन प्रभावित हुआ. इन्हें पकाना इतना आसान नहीं है और आज के समय में किसी के पास इतना वक़्त भी नहीं है. दशकों से इनका बेहद कम इस्तेमाल किया जा रहा है. बाज़ार ने भी इनकी उपेक्षा ही की है. लेकिन आपको ये जानना चाहिए कि आपकी प्लेट में अलग-अलग स्वाद और अलग-अलग तरह के पोषक तत्वों होना बहुत ज़रूरी है.

अब सुपरफूड (superfood) बंद बाजार में लौटा बाजरा

कृषि वैज्ञानिकों इन मोटे अनाज को दोबारा से चलन में लाने के लिए कई तरह के उपाय सुझाए थे और उनकी सुझाए रणनीति के परिणाम भी अब दिखने भी लगे हैं. पिछले दो सालों में बाजरे की मांग में 146 फ़ीसद की वृद्धि दर्ज की गयी है. मोटे अनाज जैसे बाजरा आदि से बने कुकीज़, चिप्स, पफ़ और दूसरी चीज़ें सुपरमार्केट और ऑनलाइन स्टोर्स में बेचे जा रहे हैं. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लाखों लोगों को एक रुपये प्रति किलो की दर से बाजरा और मोटा अनाज दिया जा रहा है. कुछ राज्यों में दोपहर के खाने में में भी इन मोटे अनाजों से बने व्यंजन परोसे जा रहे हैं.

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