भारत में शिक्षा व्यवस्था की हालत बेहद खराब है. भारत को उसकी युवा आबादी के कारण संभावनाओं का देश कहा जाता है. संभावनाओं का इस्तेमाल करने के लिए शिक्षा की जरूरत है. लेकिन हकीकत डरावनी है.
भारत में शिक्षा व्यवस्था कितनी बदहाल है इसका अंदाजा यूनेस्को की ताजा रिपोर्ट से लगा सकते हैं जिसमें यह कहा गया है कि देश में एक लाख स्कूल ऐसे हैं जिनमें महज एक ही शिक्षक है. इसके अलावा स्कूलों में शिक्षकों के 11 लाख पद खाली हैं जिनमें से 69 फीसदी ग्रामीण इलाकों में हैं. इन आंकड़ों को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि भारत की सरकार युवाओं की शिक्षा को लेकर कितनी संवेदनशील है.
बड़े-बड़े मंचों पर लंबे चौड़े भाषण देना एक बात है और बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा देना दूसरी बात है. रिपोर्ट ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के तमाम सरकारी दावों का पोल खोल दी है. कुछ महीने पहले केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट से भी शिक्षा की बदहाली की तस्वीर सामने आई थी. शिक्षाविदों ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है.
भारत में शिक्षा व्यवस्था पर क्या कहती है यूनेस्को की रिपोर्ट?
यूनेस्को ने ‘2021 स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया – नो टीचर्स, नो क्लास’ शीर्षक अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में करीब 1.10 लाख ऐसे स्कूल हैं जो महज एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. इसके अलावा शिक्षकों के 11.16 लाख पद खाली हैं, उनमें से 69 फीसदी ग्रामीण इलाके के स्कूलों में हैं. अरुणाचल और गोवा जैसे राज्यों में ऐसे स्कूलों की संख्या सबसे ज्यादा है. प्रोफेसर पद्म. एम. सारंगपाणि की अगुवाई में मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के विशेषज्ञों की एक टीम ने यूनेस्को की एक टीम के साथ मिलकर यह रिपोर्ट तैयार की है.
शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए रिपोर्ट में शिक्षकों के रोजगार की शर्तों और ग्रामीण इलाकों में काम करने की स्थिति में सुधार करने के लिए जरूरी जिलों की पहचान करने के साथ शिक्षकों को फ्रंटलाइन कार्यकर्ता के रूप में मान्यता देने की सिफारिश की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, जिन राज्यों में शिक्षकों के पद खाली हैं उनमें से उत्तर प्रदेश 3.30 लाख के आंकड़े के साथ शीर्ष पर है. इनमें से 80 फीसदी पद ग्रामीण इलाकों में हैं. उसके बाद क्रमशः बिहार (2.20 लाख) और पश्चिम बंगाल (1.10 लाख) का स्थान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में इस मामले में काफी असमानता है. साथ ही पूर्वोत्तर में योग्य शिक्षकों की उपलब्धता और भर्ती में सुधार की जरूरत पर भी जोर दिया गया है.
- पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में एक शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या 18.22 फीसदी है.
- गोवा में ऐसे स्कूलों की तादाद 16.08 फीसदी, तेलंगाना में 15.71 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 14.4, झारखंड में 13.81 और उत्तराखंड में 13.64 फीसदी है.
- मध्यप्रदेश और राजस्थान में यह आंकड़ा क्रमशः 13.08 और 10.08 फीसदी है.
- एकमात्र शिक्षक वाले स्कूलों के मामले में 21 हजार के आंकड़े के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर है.
- रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षकों का औसत लैंगिक अनुपात संतुलित होने के बावजूद इस मामले में शहरी और ग्रामीण इलाकों में असंतुलन साफ नजर आता है.
भारत की लचर शिक्षा व्यवस्था को लेकर यूनेस्को ने बहुत विस्तार से रिपोर्ट छापी है और बताया है कि भारत का भविष्य खतरे में है. रिपोर्ट में बताया गया है कि प्री-प्राइमरी के 7.7 फीसदी, प्राइमरी के 4.6 फीसदी, अपर प्राइमरी के 3.3 फीसदी और सेकेंडरी के 0.8 फीसदी शिक्षकों के पास समुचित योग्यता की कमी है. बिहार में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है. ऐसे शिक्षकों में से करीब 60 फीसदी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में काम करते हैं और 24 फीसदी सरकारी में. यूनेस्को ने कहा है कि सेकेंडरी स्कूलों में शिक्षक और छात्रों का अनुपात भी खराब है. इसके साथ ही संगीत, कला, और शारीरिक शिक्षा जैसे विषयों के शिक्षकों की भारी कमी है. लेकिन इसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 15 वर्षों में मौजूदा शिक्षकों में 30 फीसदी को विभिन्न वजहों से बदलना जरूरी होगा. ऐसे में शिक्षकों की मांग बढ़ेगी. इसके लिए अभी से इस दिशा में ठोस पहल की जरूरत है.
कैसे सुधार सकते हैं हालात?
सबसे बड़ी चिंता स्कूलों में कम योग्यता वाले शिक्षकों का होना भी है. कम योग्यता वाले शिक्षकों का 60 फीसदी तो सिर्फ बिहार में है. यही वही राज्य है जहां से सबसे ज्यादा लोग पलायन कर दूसरे प्रांतों में पढ़ने और नौकरी की तलाश में जाते हैं. योग्य कर्मियों के अभाव का असर राज्य के आर्थिक विकास पर भी दिखता है. जहां लोग निजी स्कूलों को शिक्षा का वैकल्पिक माध्यम समझ रहे हैं वहां इस रिपोर्ट के अनुसार कम योग्यता वाले 60 फीसदी शिक्षक निजी स्कूलों में ही हैं.
यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट में स्थिति में सुधार के नुस्खे भी दिए हैं. रिपोर्ट में शिक्षकों के लिए करियर में बेहतरी के रास्ते, नौकरी से पहले पेशेवर विकास और तकनीक और कंप्यूटर ट्रेनिंग देने जैसे सुझाव दिए गए हैं. 1968 के बाद जारी सारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत को अपने सकल राष्ट्रीय उत्पादन का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करना चाहिए. लेकिन 2019-20 के आर्थिक सर्वे के अनुसार पहली रिपोर्ट के 52 साल बाद भारत ने शिक्षा पर सिर्फ 3.1 फीसदी का खर्च किया है. सरकारी खर्च का बड़ा हिस्सा करीब 10 लाख सरकारी स्कूलों पर जाता है जबकि उसका छोटा हिस्सा सरकारी सहायता से चलने वाले स्कूलों को जाता है. निजी स्कूलों को सरकार से कुछ नहीं मिलता.
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