height badhane ka tarika: भारत में लोगों की औसत लंबाई कम होती जा रही है. यह तब हो रहा है जब दुनिया भर में लोग लंबे हो रहे हैं. लोगों के कद को लेकर किए गए नए शोध ने विशेषज्ञों को हैरान कर दिया है. ऐसा क्यों है जब दुनिया भर में लोग लंबे हो रहे हैं तब भारत नाटों का देश बनता जा रहा है.
height badhane ka tarika: पर भारत में लोगों के कद को लेकर काफी जागरुकता देखी जाती है. कद में लंबे लोग आकर्षक भी लगते हैं. शादी ब्याह के लिए लड़का और लड़की की लंबाई काफी मायने रखती है. अगर आपको सेना में या पुलिस में नौकरी करनी है तो भी आप का लंबा होना जरूरी है. लेकिन एक ताजा शोध में यह बताया गया है कि भारत में लोगों की लंबाई या कद घट रहा है और दुनिया भर में लोग भी लंबे होते हैं. विशेषज्ञों के लिए यह बड़ा चिंता का विषय है.
भारतीय समाज में लंबे लड़कों और लड़कियों को छोटे कद वालों के मुकाबले बेहतर माना जाता है. लंबे कद वालों को समाज में ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है और भारतीय समाज में मां-बाप भी चाहते हैं कि उनका बच्चा दूसरे बच्चों के मुकाबले लंबाई में ज्यादा हो. लेकिन अब नए शोध ने परेशान कर दिया है.
दिल्ली के प्रमुख शैक्षणिक संस्थान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ ने सरकार के वार्षिक राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण पर आधारित एक शोध किया है. इस शोध रिपोर्ट के परिणामों के मुताबिक भारत में वयस्कों की औसत लंबाई चिंताजनक रूप से गिर रही है.
भारत क्यों बन रहा नाटों का देश, क्या कहता है शोध?
अध्ययन में 15 से 25 वर्ष की आयु के बीच और 26 से 50 वर्ष की आयु के बीच के पुरुषों और महिलाओं की औसत लंबाई और उनकी सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण किया गया. ओपन एक्सेस साइंस जर्नल पीएलओएस वन में यह शोध छपा है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1998-99 की तुलना में 2005-06 और 2015-16 के बीच वयस्क पुरुषों और महिलाओं की लंबाई में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है. कद में सबसे ज्यादा गिरावट गरीब और आदिवासी महिलाओं में देखी गई.
कद के लिए आर्थिक हैसियत भी जिम्मेदार
इस रिपोर्ट के मुताबिक पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की औसत लंबाई तेजी से घट रही है. इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वो महिलाएं हैं जो एससी या एसटी समुदाय से आती हैं. अनुसूचित जनजाति समुदाय से आने वाली एक पांच साल की लड़की की लंबाई में सामान्य वर्ग की लड़की के मुकाबले 2 सेंटीमीटर की कमी आई है. जबकि अमीर घरों से आने वाली महिलाओं की औसत लंबाई में बढ़ोतरी हुई है.
पुरुषों के मामले में किसी भी वर्ग के लिए स्थिति अच्छी नहीं है, इसका मतलब पुरुष चाहे अमीर हो या गरीब या पिछड़ी जाति के, उनकी औसत लंबाई में करीब एक सेंटीमीटर की कमी आई है.
भारतीय लोगों की औसत लंबाई में गिरावट वैश्विक प्रवृत्ति के खिलाफ है. शोध में शामिल शोधकर्ताओं ने लिखा, “भारत में वयस्कों की औसत लंबाई में गिरावट दुनिया भर में औसत लंबाई में वृद्धि के कारण चिंता का विषय है और इसके कारणों की तुरंत पहचान करने की जरूरत है. साथ ही भारतीय आबादी के विभिन्न आनुवंशिक समूहों के लिए लंबाई के विभिन्न मानकों के तर्कों पर और विचार करने की आवश्यकता है.”
लंबाई कब से घटना शुरू हुई?
देश के लोगों में औसत लंबाई में यह कमी साल 2005 के बाद से आई है जबकि साल 1989 के बाद से देश के लोगों का कद बढ़ रहा था.
भारत में महिलाओं की औसत लंबाई पांच फीट एक इंच और पुरुषों की औसत लंबाई पांच फीट चार इंच है. हालांकि कुछ शोधकर्ता इसे दावे से असहमत नजर आते हैं.
क्या कद के लिए खानपान भी है जिम्मेदार?
शोधकर्ताओं का कहना है कि विभिन्न कारक वयस्क पुरुषों और महिलाओं के शरीर की लंबाई को प्रभावित करते हैं. आनुवंशिक कारक किसी व्यक्ति की लंबाई के 60-80 प्रतिशत में एक भूमिका निभाते हैं, पर्यावरणीय और सामाजिक कारण भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि यह चिंता का विषय है कि भारत में लोगों की औसत लंबाई में गिरावट गैर-आनुवंशिक कारकों के कारण भी है. इनमें जीवनशैली, पोषण, सामाजिक और आर्थिक कारक शामिल हैं.
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