राजनेता की कहानी: 250 रुपए के चक्कर में चली गई थी इस CM की कुर्सी

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राजनेता की कहानी: मई 1963 में कसडोल उपचुनाव को निरस्त कर दिया गया. जबलपुर हाई कोर्ट ने इस मामले के सामने आने के बाद डीपी मिश्र को 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य साबित कर दिया.

राजनेता की कहानी: हिंदुस्तान की राजनीति एक से एक दिलचस्प किस्सों से भरी पड़ी है. ऐसा ही एक किस्सा है मध्य प्रदेश से जुड़ा. राजनीति ऑनलाइन की खास सीरीज राजनेता की कहानी हम आपको आज बताने जा रहे हैं. महज 249 रुपए और 72 पैसे में सीएम पद की कुर्सी गंवाने वाले राजनेता की कहानी. ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते महज 250 के लिए एक सीएम को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी?

25 मार्च 1969 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेशचंद्र सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद राजनीति के गलियारों में ये खबर फैल गई थी कि द्वारका प्रसाद मिश्र फिर से प्रदेश के सीएम बनने वाले हैं। क्योंकि कांग्रेस का पूरा कंट्रोल उस समय द्वारका प्रसाद मिश्र के हाथ में ही था। डीपी मिश्रा को सीएम बनाने की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हुई हो गई थीं. लेकिन फिर एक हैरान करने वाली घटना हुई.

वासुदेव चंद्राकर की जीवनी नाम की किताब में लेखक रामप्यारा पारकर, अगासदिया और डॉ परदेशीराम वर्मा हैं लिखते हैं कि डीपी मिश्र यानी द्वारका प्रसाद मिश्र मध्य प्रदेश की राजनीति का बड़ा नाम थे। वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे लेकिन उन्हें एक ऐसे राजनेता के रूप में भी याद किया जाता है, जिन्होंने महज 249 रुपए और 72 पैसे की वजह से सीएम पद गंवा दिया था.

डीपी मिश्रा के साथ ऐसा क्यों हुआ यह जानने के लिए हमें कुछ तारीखों पर गौर करना होगा. दरअसल 25 मार्च 1969 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेशचंद्र सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया था वह सिर्फ 13 दिन तक मध्य प्रदेश के सीएम रहे और 14 दिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया. न सिर्फ इस्तीफा दिया बल्कि कभी राजनीति में वापस ना आने का फैसला लिया.

12 मार्च 1969 को तत्कालीन सीएम गोविंद नारायण सिंह के इस्तीफा देने के बाद 13 मार्च को नरेशचंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 13 दिन बाद 25 मार्च को उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा. मध्यप्रदेश में एक सियासी संकट था लेकिन उसी समय डीपी मिश्रा सीएम पद की रेस में आ गए. तैयारियां शुरू हो गई लेकिन तभी मध्य प्रदेश की राजनीति का पूरा समीकरण ही बदल गया. कमलनारायण शर्मा की याचिका पर फैसला आया और ये सिद्ध हो गया कि डीपी मिश्रा द्वारा कसडोल के उपचुनाव में अनियमितताएं बरती गईं, जिसका नतीजा ये हुआ कि इस चुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया.

कमलनारायण शर्मा को डीपी मिश्र के खिलाफ मिल गया था अहम सबूत: कसडोल के उपचुनाव में डीपी मिश्र के चुनाव एजेंट श्यामचरण शुक्ल थे, लेकिन जब डीपी मिश्र चुनाव जीत गए तो उनकी टीम से चुनाव पर किए जाने वाले खर्चों के बिल कहीं खो गए।

बाद में कमलनारायण शर्मा ने इस जीत के खिलाफ याचिका दायर की और शर्मा को कहीं से 6300 रुपए का एक बिल मिल गया, जिस पर डीपी मिश्र के चुनाव एजेंट श्यामचरण शुक्ल के हस्ताक्षर थे। यहीं से इस चुनाव का पूरा गणित ही बदल गया। हालांकि कहा ये भी जाता है कि श्यामचरण शुक्ल ने डीपी मिश्र को धोखा दिया था और अहम दस्तावेज कमलनारायण शर्मा को उपलब्ध करवाए थे।

इसके बाद मई 1963 में कसडोल उपचुनाव को निरस्त कर दिया गया, क्योंकि ये पाया गया कि डीपी मिश्र ने चुनाव के लिए निर्धारित रकम से 249 रुपए और 72 पैसे ज्यादा खर्च किए थे। जबलपुर हाई कोर्ट ने इस मामले के सामने आने के बाद डीपी मिश्र को 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य साबित कर दिया। कोर्ट के इस फैसले ने डीपी मिश्र के पूरे राजनीतिक जीवन को बदलकर रख दिया।

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