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पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं ला रही मोदी सरकार?

जीएसटी काउंसिल की शुक्रवार को हुई बैठक के बाद वित्त मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उसके फैसलों के बारे में बताया. लेकिन पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात पर उन्होंने स्पष्ट इंकार कर दिया.

पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमतों के चलते आम आदमी की कमर टूटती जा रही है. उम्मीद थी कि इस बार जीएसटी काउंसिल की बैठक में पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर चर्चा होगी लेकिन ऐसा हो न सका. पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि केरल हाईकोर्ट के आदेश की वजह से इस पर चर्चा की गई थी. लेकिन कुछ सदस्यों ने कहा कि वो यह नहीं चाहते हैं. इसके बाद जीएसटी काउंसिल ने फैसला किया कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का अभी वक्त नहीं है.

मोदी सरकार की मोटी कमाई का जरिया

हाल के दिनों में पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दामों के मद्देनज़र ग़ैर बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार से इन उत्पादों पर लगे एक्साइज़ ड्यूटी को कम करने की गुहार लगाई थी. इस लिस्ट में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हैं, जिन्होंने जुलाई में इस बारे में चिट्ठी भी लिखी थी. उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, “2014-15 के बाद से ऑयल और पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स वसूली के ज़रिए जमा होने वाली राशि में 370 फ़ीसदी का इज़ाफा हुआ है. वित्त वर्ष 2020-21 में ही 3.71 लाख करोड़ की कमाई केंद्र सरकार को इससे हुई है.” केंद्र सरकार इस बात को स्वीकार भी करती है. इसी कमाई को आधार बनाते हुए राज्यों की दलील है कि केंद्र सरकार अपने टैक्स कम करें. 

पेट्रोल और डीजल जीएसटी के दायरे में आया तो…

अगर ऐसा होता है तो आम जनता का बहुत फ़ायदा होगा. पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में 25 से 30 फ़ीसदी तक गिरावट आ सकती है. लेकिन इससे केंद्र और राज्य सरकार को काफी नुकसान होगा और उनके राजस्व में कमी आएगी. ये जानना ज़रूरी है कि केंद्र और राज्य सरकार की जेब में पेट्रोल-डीज़ल के दाम का कितना हिस्सा जाता है. 16 सितंबर 2021 को इंडियन ऑयल के पेट्रोल का दाम राजधानी दिल्ली में 101.19 रुपए प्रति लीटर था.

इनमें से 32.90 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज़ ड्यूटी केंद्र सरकार की जेब में जाती है. और 23.35 रुपए प्रति लीटर का वैट दिल्ली सरकार की जेब में जाता है. यानी जितना बेस प्राइस से उससे दोगुने से अधिक दाम पर पेट्रोल दिल्ली में मिल रहा है. और वो पैसा राज्य और केंद्र सरकार के ख़ज़ाने में जा रहा है. अब मोदी सरकार पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाती है तो साइड से बात है कि उसे काफी नुकसान उठाना पड़ेगा.

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