तालिबान का ‘देहरादून कनेक्शन’ आ सकता है भारत के काम, PM मोदी को है बड़ी उम्मीद

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तालिबान ने अफगानिस्तान पर अब पूरी तरह से कब्जा कर लिया है. एक वक्त में जब भारत सरकार इसे आतंकी संगठन करार दे रही थी वह अब अफगानी ऊपर तालिबानियों की हुकूमत को स्वीकार्यता देने की दिशा में सोच रही है. और इसमें देहरादून का बड़ा योगदान है.

तालिबान पर जहां दुनिया की निगाह टिकी हुई है वहीं भारत की निगाह टिकी है उस शख्स पर जिसका देहरादून से कनेक्शन है. जी हां हम उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की बात कर रहे हैं. ऐसे समय में जब मोदी सरकार यह सोचने पर विवश हो गई है कि वह तालिबान के साथ दोस्ती का हाथ बड़ा है या फिर उसे आतंकवादी संगठन माने तब एक शख्स सामने आया है और उसका नाम है शेर मोहम्मद अब्बास.

भारत का तालिबान को लेकर रुख़ बदलता दिख रहा है. मंगलवार शाम भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया कि क़तर की राजधानी दोहा स्थित भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानेकज़ई से मुलाक़ात की. भारतीय राजदूत ने तालिबान के जिस प्रतिनिधि (शेर मोहम्मद अब्बास) से मुलाक़ात की है, उन्होंने देहरादून स्थित इंडियन मिलिटरी अकादमी से ट्रेनिंग ली है. शेर मोहम्मद अब्बास ने शनिवार को कहा था कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान से राजनीतिक और कारोबारी संबंध बनाए रखना चाहिए.

क्या अब तालिबान को आतंकवादी संगठन नहीं मानती मोदी सरकार?

यह बहुत महत्वपूर्ण सवाल है क्योंकि भारत सरकार इससे पहले भारत तालिबान को एक आतंकवादी समूह मानता था. भारत को हक़्क़ानी ग्रुप को लेकर भी चिंता रही है. यह तालिबान का ही हिस्सा है. 2008-09 में तालिबान के उपनेता सिराजुद्दीन हक़्क़ानी को ही भारतीय दूतावास पर हमले का दोषी माना गया था. पिछले कुछ महीनों में भारत ने कहा है कि वो अफ़ग़ानिस्तान में कई गुटों से संपर्क में है. लेकिन इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ये भी कहा था कि भारत अफ़ग़ानिस्तान में शक्ति से हासिल की गई सत्ता को स्वीकार नहीं करेगा.

तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ाबिज़ हुआ तो भारत ने अपना दूतावास खाली करने का फ़ैसला किया था. द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार काबुल से भारत ने तालिबान के आने के बाद भी राजनयिक संबंध तोड़ा नहीं है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मंगलवार को कहा था कि अमेरिका क़तर के दोहा से ही अफ़ग़ानिस्तान मामलों को देखेगा और भारत भी ऐसा ही करता दिख रहा है. अब मोदी सरकार ने तालिबान से राजनयिक संवाद शुरू कर दिए हैं और ऐसा लग रहा है कि वहाँ सरकार बनने के बाद मान्यता भी दी जा सकती है.

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