बड़े बड़े कारपोरेट को कोरोना महामारी के दौरान “वर्क फ्रॉम होम” कल्चर को प्रमोट करने का सुनहरा अवसर मिला, बहुत से कर्मचारियों ने इसे खुशी खुशी अपना भी लिया, लेकिन साल भर में असलियत बाहर आ गयी कि “वर्क फ्रॉम होम” में तो कर्मचारियों पर दुगुना काम थोपा गया, और वे इसे सर झुकाकर करने के लिए मजबूर हुए!
ऑफिस स्टाफ में छटनी की गयी, बचे स्टाफ़ पर छटनी कर दिए कर्मचारियों के कामो का बोझ डाल दिया गया, कर्मचारी कुछ बोल भी नही पाए!
इसमे कारपोरेट को दोहरा फायदा हुआ. सबसे बड़ी बात कि ऑफिस स्पेस के रेंटल से मुक्ति मिल गई, सेकड़ो किस्म के ऑफिस इक्विपमेंट, जिसमे कम्प्यूटर से लेकर AC तक सम्मिलित है, इन सबकी मेंटनेंस कॉस्ट बच गयी ….दूसरी बात जो स्किल्ड स्टाफ की तनख्वाह, जो आसमान छू रही थी, वो जमीन पर आ गयी,
अब एक नए तरह की कटौती की जा रही है, और यह काम गूगल में शुरू हो गया है, जिसका असर सिलिकॉन वैली पर देखने को मिल रहा है और देर सबेर यह ट्रेंड भारत भी आ जाएगा क्यो कि Silicon Valley को दुनिया भर की बड़ी कंपनियों के लिए ट्रेंड सेट करने के लिए जाना जाता है.
गूगल ने उसके ऐसे सभी कर्मचारी जो परमानेंट तौर पर “वर्क फ्रॉम होम” कर रहे हैं, उनकी सैलरी में 10 % कटौती करने करने की योजना बनाई है. यह कटौती लोकेशन बेस होगी यानी कर्मचारी महंगे शहरों के बजाए किसी छोटे शहर से “वर्क फ्रॉम होम” कर रहे हैं तो उन्हें कम सेलेरी दी जाएगी.
रॉयटर्स के अनुसार जो कर्मचारी न्यूयॉर्क से एक घंटे की ट्रेन की दूरी पर है, अगर वह घर से काम करता/ती हैं तो उन्हें न्यूयार्क में रहने वाले अपने साथी की तुलना में 15 % कम सैलरी मिलेगी.
गूगल कर्मचारी किसी कम खर्चीले शहर में रहना शुरू करते हैं, तो उनकी सैलरी में 25 % तक की कटौती संभव है. वहीं, सिएटल, बोस्टन और सैन फ्रैंसिस्को में रहने वाले कर्मचारियों की सैलरी में 5 और 10 फीसदी कम हो सकती है.
गूगल के इस फैसले के बाद से, कई छोटी कंपनियां भी अब हायरिंग (नियुक्ति) लोकेशन के आधार पर करने लगी हैं.
ऐसे उपाय अपनाने के बाद, बड़ी टेक कम्पनियो के मुनाफे में बेहिसाब वृद्धि देखी गयी है……
और यही पूंजीवाद का असल उद्देश्य है!!
सिर्फ और सिर्फ मुनाफा बढ़ाने के लिए काम करना!!!
लेखक: गिरीश मालवीय रीबोर्न
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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